सोमवार, 28 जनवरी 2008
मेरे ब्लॉगर मित्रों की पोस्ट और शायद उसका अनुचित कारण ये भी हो सकता है.....
जनवरी के पहले ही दिन से काफ़ी सार्थक बहस,चिंतन,चर्चाएं और विवादास्पद लेखों ने जन्म लिया जो केवल नारी-लड़कियों और समाज में बढते खुलेपन और शर्मनाक परिस्थियों के ऊपर केंद्रित हैं......
पहले-पहल भड़ास ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर हुयी घटना पर चिंतन और आक्रोश व्यक्त किया जो जायज है, भड़ास का ये रूप भी काफ़ी प्रशंसनीय है,उसके लेख जो क्रमवार प्रकाशित हुये वो ये हैं.......
लड़कियों यदि तुम घर से बाहर निकली तो तुम्हारे साथ भी यही होगा
भारत मे नारी का अपमान
हम भारतीय शायद ही कभी जिम्मेवार माता-पिता रहे हो ?
अब उसके बाद जीतू भाई ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप एक पोस्ट लिखी जो इसी घटना के ऊपर सचित्र है,जागो मुम्बईकर, ढूंढ निकालो इन दरिंदो को
अभी ये थमा ही नहीं था कि शिवकुमार जी ने एक नया सार्थक मंच बनाकर इस बहस को आगे बढाया जो सराहनीय कदम बना,रीढ़हीन समाज निकम्मी सरकार और उससे भी निकम्मी पुलिस डिजर्व करता है नाम से प्रकाशित ब्लॉग चर्चा में काफ़ी रहा.इस बात की चर्चा टिप्पणीकार ने भी एक पोस्ट में की जो इस चर्चा को आगे बढाने के लिये काफ़ी था.ऐसे-वैसे वस्त्र पहनने या न पहनने वाली स्त्रियों लड़कियों का बलात्कार करना मैन्डेटरी है ये शब्द इस पोस्ट को घातक बनाने के लिये काफ़ी थे.
अब बारी थी एक नारी यानी ममता जी की, उन्होने बदलती मानसिकता के ऊपर जो प्रश्न किया वो काफ़ी हद तक जायज था.काफ़ी कुछ मीडिया और बदलती मानसिकता के ऊपर लिखने का साहस उन्होने इस कपडे या मानसिकता क्या खराब है ... नाम के ब्लॉग मे किया जो सराहनीय कदम था.
तेज रफ़्तार चलते हुये आम से सनसनी बनने वालों में पद्मनाभ मिश्र ने काफ़ी हो-ह्ल्ला मचाकर अपनी सार्थक उपस्थिति को दर्ज करवाया है.
मोहल्ला ये शब्द भी अपने आप में सनसनी है जो तेज प्रतिक्रिया के लिये काफ़ी मशहूर हो चुका है, उन्होने तो लगभग एक सीरीज बनाकर इस समाज की बखिया उधेड़नें में कोई कसर नहीं छोड़ी है..मादा होने से बड़ी सज़ा कुछ नहीं नाम का ब्लॉग अपने आप में काफ़ी कुछ है जो चर्चा बन गया.
मेरे हिन्दी-लेखन प्रेरणा गुरू और सम्मानीय शास्त्री.जे.सी.फ़िलिप. जी ने भी इस पर लेख लिखे जो समाज को आईना दिखाते प्रतीत हो रहे हैं,बलात्कारी एवं मनोविज्ञान नामक लेख एक अपने आप में सार्थक मंच है जो शास्त्री जी की देन है.
एक और महिला चिट्ठाकार जो अपने आप में एक स्तम्भ हैं घुघूती बासूती जी जिनके कटाक्ष के आगे कोई चिट्ठा नहीं टिक पाया है उन्होने सीधे-सीधे खुल्लमखुल्ला मोलेस्ट करेंगे हम इनको की चेतावनी दे डाली है.
===============================================================================
===============================================================================
जहाँ तक मुझे दिखायी दे रहा है उसके लिये हमें थोड़ा पीछे पलटकर देखना पड़ेगा क्योंकि शायद इस पलटनें में ही सारे पन्ने खुद-ब-खुद खुल सकते हैं...........
आज से तकरीबन पन्द्रह-बीस साल पहले लोग कितने खुश मिजाज हुआ करते थे, रामायण-महाभारत जैसे सीरियल हर दिल की जान हुआ करती थी लेकिन जब 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने विदेश नीति की घोषणा की तो देश का बुरा वक्त उसी समय से चालू हो गया था.
सबसे पहले हमला बोला केबल-टी.वी.की आँधी ने जो अपने साथ बेवॉच,बोल्ड एंड द ब्यूटिफ़ुल,फ़ैशन टी.वी.,देर रात्रि वयस्क प्रोग्राम लेकर हर घर और हर ड्राइंग रूम तक पहुँच गयी, उसके बाद विदेशी उत्पाद और फ़िर लोक लुभावन नौकरियां और विदेशी बैंको द्वारा प्रदत्त कर्ज ने रही सही भारत के मध्यम वर्ग की कमर तोड़कर रख दी है.
शायद मैने मोहल्ला में ही पढा था कि लार्ड मैकाले ने कहा था कि" भारत के लोगों को जीतना हो तो उसे विदेशी संस्क्रति से रूबरू करवाओ बाकी वो खुद ब खुद हमारे अधीन हो जायेंगें"
ये शब्द स्वर्ण अक्षरों की तरह हमारे देश की किस्मत पर लिखे जा चुके हैं.अब आगे कितनी भी बहस हो यां ना हो इस देश और इसको चलाने वालों को कोई सारोकार नहीं कि कितनी बलात्कार हो रहे हैं यां कितने लोग खुद को नशे यां गर्त में डुबा रहे हैं उन्हें तो बस इकॉनॉमी ग्रोथ दिखनी चाहिये.
7 Response to "मेरे ब्लॉगर मित्रों की पोस्ट और शायद उसका अनुचित कारण ये भी हो सकता है....."
अच्छा विश्लेशन है.. सारी पोस्ट फिर से एक बार आंखों के सामने घूम गई..
http://mujehbhikuchkehnahaen.blogspot.com/
http://kakesh.com/
ko shamil naa karne kee koi khaas vajeh
बेनामी जी अगर कोई बात कहने से रह गयी है तो छोटा समझकर माफ़ करें मेरी मंशा हर एक ब्लॉगर को प्रकाशित नहीं बल्कि एक मुद्दे को सार्थक दिशा देना है, आप नाहक नाराज ना होइये, आप और काकेश जी भी मेरे श्रध्देय हैं अतः माफ़ी स्वीकारी जाये.
चलो तुम्हें माफ किया लेकिन अगली बार से गलती मत करना।
कमलेश जी,
मैंने वह पोस्ट कोई चर्चा शुरू करने के लिए नहीं लिखी थी. लेकिन चर्चा के साथ-साथ उस पोस्ट पर बहस भी हुई, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा.
मेरा मानना है कि टिपण्णी में से एक या दो लाइन निकालकर उसपर बहस करना ठीक नहीं था. लेकिन ये शायद इसलिए हुआ कि हम कभी-कभी अपने इगो की वजह से ऐसा कर डालते हैं.
चलिये म दान जी
आपने कम्प्युटरकारिता
से समय निकाल कर
ब्लागकारिता में
लगाया और वो
भी हिन्दी में
बहुत अच्छा लगा.
याद रखें
विचारों का दान
महा दान
और आप ही हैं
म हा दान.
प्रिय अनुज कमलेश
इस लेख में तुम ने काफी कठिन एक विषय पर लिखने की शुरुआत की है. लेकिन काफी सफलता मिलेगी.
सटीक एवं आधिकारिक लेखन का पहला चरण है अनुसंधान एवं उस विषय पर पक्ष विपक्ष में अन्य लोगों ने इसके पहले क्या लिखा है उस का अध्ययन एवं अवलोकन.
इस लेख से यह स्पष्ट है छोटे भाई कि तुम यह कार्य कर चुके हो. यह बहुत खुशी की बात है. अपने लक्ष्य में जरूर सफल होगे.
आशीर्वाद
-- शास्त्री
एक टिप्पणी भेजें