गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

फ़रवरी माह के नये सितारे (एक अवलोकन)

एक बार फ़िर से चिट्ठा अवलोकन का समय आ चुका है क्योंकि फ़रवरी माह का अंतिम दिन कल है लेकिन समय की कमी के कारण इसे एक दिन पहले ही प्रकाशित करने की मजबूरी है, पिछली चिट्ठा अवलोकन जो मेरे ब्लॉगर मित्रों की पोस्ट और शायद उसका अनुचित कारण ये भी हो सकता है..... के नाम से प्रकाशित हुई थी उनमें कुछ नाम और चिट्ठों की चर्चा की कमीं रह गयी थी आशा करता हूं कि इस बार ये कमी भी पूरी हो जाये लेकिन बढते चिट्ठाकारों...

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

मार्लबोरो लाइट (Marlboro Light)

मार्लबोरो लाइट- ये कहानी है एक ऐसी पीढी की जिसने .आधुनिकता की अंधी दौड़ में खुद को पीछे कितना धकेल दिया है, ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपना चेहरा कितनी बार बदला और हर बार उसका चेहरा पहले से ज्यादा बदसूरत होता चला गया.आज अपने ऑफ़िस के बाहर एक छोटी सी अच्छी खासी दुकान पर चाय -नाश्ता करने गया तो कुछ ही देर में एक जींस टी-शर्ट पहने एक लड़की...

रविवार, 24 फ़रवरी 2008

सूचना का अधिकार (Right to Information Act)

सूचना का अधिकार (Right to Information Act): सरकारी पैसा,कामकाज और सूचना पाना जो पहले कभी ना-मुमकिन हुआ करता था आज हर आदमी के बस की बात हो चुका है.इस अधिकार को ना केवल आम आदमी बल्कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाल हर शख्स कर स्कता है और अपने हक के बारे में जानकारी और आँकड़े जुटा सकता है.लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी होता है इस अधिकार को जन-साधारण त पहुँचाने और उनको उनके अधिकारों के बारे में इंगित...

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

क्या स्त्रियां हीं स्त्रियों की दुश्मन होती हैं यां कुछ और?

ये पोस्ट लिखते समय मैने बहुत सी बातें आगे रखी जो मेरे निजी अनुभव और काफ़ी कुछ इन दिनों चल रही बहस के कारण म्रे दिमाग में घूम रहीं थीं....मेरी बेटी जो केवल सवा साल की है अभी-अभी चलना ही सीख रही है, आज उसके साथ मैने एक अनुभव सीखा जो मुझे काफ़ी अन्दर तक कचोटता रहा..हुआ ये कि मेरी बेटी आज चलते-चलते हँस रही थी और मैने अपनी पत्नी जी से कहा कि उसे काला टीका लगा दो ताकि किसी की नजर ना लग जाये!उस पर...

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

क्या मेरे इस सुझाव पर ब्लॉगवाणी,नारद और चिट्ठाजगत ध्यान देंगें...

आज भड़ास पर प्रकाशित लेख तब ब्लागवाणी पर बाकी ब्लागों का क्या होगा? पढकर थोड़ी चिंता तो हुई लेकिन बिना विकल्प खोजने से पहले उनका निराशावादी होना अटपटा सा लगा! पहले-पहल यशवंत जी को धन्यवाद जो उन्होने इस समस्या को उठाया और दूसरे भाई संजय जी को भी धन्यवाद जिन्होने इस व्यापक समस्या को गति प्रदान की लेकिन अब मैं यह कहना चाहूँगा कि केवल अपनी वेबसाईट बनाने से और खुद को किसी एग्रीग्रेटर से प्रथक...

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

इलाहाबाद! मेरी नजर से और ज्ञानदत्त दद्दा से मुलाकात

तो लो भाई आखिर हम इलाहाबाद हो ही आये! माघ के इस पवित्र माह में इलाहाबाद जाना तो एक सुखद अनुभूती तो थी ही लेकिन साथ ही साथ पांडे जी से मुलाकात के लिये मन मचल रहा था, अब आगे क्या हुआ......पहले इलाहाबाद के बारे में : वाकई में इलाहाबाद एक सुंदर शहर है जिसमें न तो कोई महानगरीय शोर-गुल है न तो कोई झाम-झंझट, अपनी धरोहर और संस्क्रति को सहेजकर रखना कोई इलाहाबाद से सीखे,ऐसा लगा कि हम इटली सरीखे देश...

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

आज मेरा नया ब्लॉग शुरू हुआ है

दोस्तों और मेरे आदरणीय चिट्ठाकरो-पाठकों! आज मैने अपना नया ब्लॉग क्या स्टाइल है! शुरू किया है, जिसमें आपको नये-नये फ़ैशन ट्रेंड्स,युवाओं की पसंद,घर-ऑफ़िस का वातावरण,बाजार,नये उत्पाद और भी बहुत कुछ तो क्लिक करें और मुझे आगे बढने के लिये पथ-प्रदर्शित करेंआपका कमलेश मदानविशेष अनुरोधःनारद-ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत एवं हिन्दी ब्लॉग्स के मुख्य कार्यकारिणी सदस्यों से अनुरोध है कि वो इस चिट्ठे को अपने-अपने...

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

तस्वीरें जो बोलती हैं-भाग 3

लीजिये फ़िर से भारत को तस्वीरों के माध्यम से देखने-समझने के लिये प्रस्तुत है मेरी ये पोस्ट.पहले और द्वित्तीय भाग के बाद आज फ़िर से उसी श्रंखला को दोहराने का मन हो चला तो मेरे द्वारा सहेजकर रखी गयीं इन तस्वीरों को पोस्ट के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.नोट- ये तस्वीरें भारत के जाने-माने छायाकारों की हैं जिनके शीर्षक (टाईटल) उन्हीं की देन हैं,मैं...

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

सवालः आप एक औरत को किस रूप में देखना चाहते हैं और क्यों?

लगभग पिछले एक महीनें से मेरे चिट्ठे-विश्लेषण और चिट्ठाकरों की बहस और विवाद अब नयी शक्ल लेता जा रहा है अब लग रहा है कि सभी महिला ब्लॉगर्स जो अपने द्वारा निर्मित मंच "चोखेर बाली" से एक अलग दिशा बना रही हैं जो शायद सार्थक भी हो, कुछ वरिष्ठ चिट्ठाकरों और महिला चिट्ठाकारों के अनसुलझे सवाल और उससे भी उलझे जवाब, कुछेक लोगों का स्वागत , कुछ का उपहास,कुछ की सलाह और कुछ की मूकदर्शिकता.... ये सब कुछ...

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

लो! अब यहाँ भी राजनीति की बू आने लगी

मेरे सभी भड़ासी,मोहल्लेवालों,हिन्दी चिट्ठाकारों, रचनाकारों,ब्लॉगर भाईयों को मैं ये संदेश देना चाहता हूँ कि कुछ अराजकता अब हमारे चिट्ठासमुदाय में भी फ़ैल रही है, क्या आप उस विरोध के स्वरों को दबानें में मेरी मदद करेंगें?बेनामी ने कहा… भईया थोड़ा संतुलन बना कर लिखना चाहिये ना… बाल ठाकरे का प्रश्न आज भी अनुत्तरित है कि "यदि बिहारी इतने ही मेहनती, ईमानदार, कर्मठ हैं तो ये सारी बातें...

सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

आमची मुम्बई! एक दुःस्वप्न

तो अब नाम मिटाने की बारी अब मुम्बई वालों ने सम्हाल ली है, अब उत्तर भारत को भगाने की तैयारी कर रहा मुम्बई दिल्ली से चार कदम आगे निकल चुका है जहाँ ये सब बातें अभी हो ही रही हैं.मैने पिछले लेख राजधानी में बिहारी में भी बताया था कि किस तरह की मानसिकता इन महानगरीय लोगों नें पाल रखी है, जिसमें वो सिर्फ़ अपने स्वार्थ को आगे रखकर बल्कि इनके चुप रहने के गुण को अपना हथियार बनाकर इनका शोषण कर रहे हैं.वो...

रविवार, 3 फ़रवरी 2008

नया शब्द "रचनात्मक स्वतंत्रता" अपने आप में कमाल है

पिछले दिनों हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी को अचानक क्या सूझा कि उन्होने हमारे देश के उच्च कलाकारों को कुछ नसीहत दे दी अब भारत में नसीहत और उसको मानने वाले रेगिस्तान में सुई ढूंढने के बराबर है तो उल्टे उन्ही को एक करारा जवाब मिला जो काफ़ी कुछ ऑस्कर में भेजे जाने वाला डॉयलोग था "आप हमारी रचनात्मक आजादी हमसे छीन रहे हैं."हाँ तो भाई लोगों सावधान हो जाओ! अब ये कलाकार लोग एक अलग दुनिया बना रहे हैं...