बुधवार, 30 अप्रैल 2008

क्या बुंदेलखंड और बाकी भारत के पानी की समस्या का ये हल हो सकता है?

लगभग एक साल पहले जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी तो इस पोस्ट को एक भयावह रूप में लिखा था क्योंकि ये वाकई में भयावह स्थिति का अनुमान था लेकिन आज मैनें फ़िर से अपने आपको उस स्थान पर रखा जहाँ से ये कहानी शुरू हुयी है........अब तबाही दूर नहीं ! नाम से जब ये पोस्ट लिखी तो मन में अजीबो-गरीब तरीके के ख्याल आने लगे लेकिन अब यही ख्याल मुझे "नेगेटिव" सोच से पोजिटिव की ओर जाने को मजबूर कर रहा है कि जिस...

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

अपहरण उधोगः कुछ नियम कानून भी हैं इस धंधे में

अब चौंकने की बारी आप की है क्योंकि पहले-पहल जब इस बारे में मैं पिछले कुछ महीनों के अलग-अलग अखबार निकाल रहा था तो कुछ बिंदु यानी पॉइंट मुझे मिले जो आपको चौकांते भी हैं कि कैसे ये धंधा चलता है और क्या-क्या उसूल हैं इस धंधे में........सबसे पहले ये जान ले कि ये धंधा क्या है और कैसे ये फ़लीभूत हो रहा है?पिछले लगभग एक दशक से जिस तेजी से जनसंख्या बढी है उसी तेजी से समाज में अमीरी-गरीबी का भी दायरा...

शनिवार, 19 अप्रैल 2008

युवा- एक नया प्रयास

कभी-कभी अनजाने में ही आपको अपनी मंजिल और ध्येय का मार्ग मिल जाता है, बस ! जरूरत होती है उस मार्ग को पहचानना और उस मंजिल को प्राप्त करना.लेकिन कभी-कभी उसके विपरीत कोई खुद आकर आपको आपका रास्ता दे और जो विपरीत दिशा में चलता हो...तो आपके लिये ये सौभाग्य की ही बात होगी ना!जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ अपने पंगेबाज दादा उर्फ़ बाबा फ़रीदी उर्फ़ अरून जी कीकरीब दो दिन पहले उनसे फ़ोन पर बातचीत हो रही थी बातचीत...

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

अविनाश ! आपको आईना दिखा रहा हूँ, हो सके तो शर्म करना

अभी तक तो लोगों ने समझा था कि अविनाश कुछ हद तक महत्वाकांक्षी हैं लेकिन अब तो लग रहा है कि उन्होने उस सीमा-रेखा को भी लांघ दिया है जहाँ से इंसान का पतन शुरू हो जाता है.पहले-पहल आप ही सभी लोगों को लेकर साथ में मुहल्ले का निर्माण करना, फ़िर जिस थाली(ब्लॉग एग्रीग्रेटरों) का खाया उसी में छेद करना.कुछ विवादित होने का ठप्पा लगा तो खुश होकर अति उत्साह में ब्लॉग जगत के दिग्गजों को नारद के समय अपमानित...

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

अविनाश बाबू ! ये तो होना ही था

आज जनसत्ता के कार्यकारी संपादक श्री ओम थानवी का जो पत्र आपने सार्वजनिक किया है आपकी व्याकुलता और हताशा उससे जाहिर हो रही है !जाहिर है साफ़ तौर पर हर जगह आपकी मठाधीशी और आपका मॉडरेशन तो चलने से रहा! ये स्वतंत्रता यां ये कहिये कि ये जिद आप अपने ब्लॉग पर ही कर सकते हैं किसी अखबार यां किसी निजी लेखन के क्षेत्र में तो आप एसा करने से रहे क्योंकि उनको अपना अखबार भी तो चलाना है भाया!वैसे एक बात और...

गुरुवार, 3 अप्रैल 2008

मार्च माह का अवलोकन: अपना-अपना राग-भाग-एक

अपना-अपना राग -- जी हाँ ये ही शीर्षक इस माह के अवलोकन के लिये काफ़ी था क्योंकि इस मार्च माह में काफ़ी नये चेहरे और ब्लॉग्स देखने को मिले तो वहीं दूसरी ओर सभी ब्लॉगरो नें किसी विवाद को मुद्दा बनाये बगैर अपना राग अलापे रखा!अब ये भी कह सकते है कि होली की खुमारी और फ़ाल्गुन की सौंधी खुशबू सभी लोगों के दिलो-दिमाग पर छायी हुयी थी खैर चलिये अब आगे...

मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

क्या ये अपने आलोक पुराणिक जी हैं?जो आज बी.बी.सी. पर चमक रहे हैं

आज बी.बी.सी. न्यूज डॉट कॉम पर एक लेख देखा पहले तो उस लेख को पढ लिया फ़िर अचानक उस लेख के लेखक की तस्वीर देखी तो कुछ दुविधा में आ गया कि ये अपने आलोक पुराणिक जी ही हैं ना ?ये तो मुझे पता है कि वो आर्थिक विशेषज्ञ हैं लेकिन उनका चेहरा अलग ही दिख रहा है, थोड़ा कन्फ़्यूजिया गया हूँ! आप सभी लोग मदद करें और बतायें कि ये आलोक जी हैं नाउनका लेख इस लिंक...