शुक्रवार, 21 मार्च 2008
उड़नतश्तरी आगरा आगमन
सोमवार के दिन मैं सुबह-सुबह ड्यूटी से लौट कर नींद ले ही रहा था कि अचानक बिजली गुल हो गयी, ठीक उसके बाद मेरा मोबाइल घनघना उठा और एक अपरिचित नंबर देख कर मन में कुछ शंका उठी लेकिन दूसरी तरफ़ से एक ठंडी हवा के झोंके सरीखी आवाज का सामना हुआ "हैलो कमलेश ! आप कमलेश ही बोल रहे हैं ना मैं समीरलाल बोल रहा हूँ"
ये सुनते ही हमारी बाँछें खिल उठी और हमको लगने लगा शायद हम कोई मिल गया के ॠतिक रोशन हो गये हैं जिसकी तरह मेरा भी एलियन से सामना होने वाला था, खैर उन्होने कहा कि "मैं शाम को गोंडवाना एक्स. से दिल्ली से जबलपुर जा रहा हूँ और आगरा से होकर जाउंगा क्या आप मिल सकते हैं प्रतीक पांडेय को भी फ़ोन किया है लेकिन वो इस समय शहर से बाहर हैं, अतः आप मुझसे मिलने स्टेशन पर आ सकते हैं?"
गाड़ी नियत समय पर आयी और बदनीयति से चल भी दी लेकिन समीरलाल जी से कुछ पल बातचीत भी हुयी, मिसेज समीर भी काफ़ी प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला हैं और साथ ही साथ हँसमुख भी हैं, समीर जी ने मुझे जाते-जाते जयशंकर प्रसाद की पुस्तक उपहार स्वरूप भेंट दी जो मुझ जैसे नवोदित ब्लॉगरों के लिये संजीवनी सरीखी है.
उनके बारे में कुछ बातें-घटनाक्रम सहित---
सुबह फ़ोन आने के पहले लाइट का अचानक चले जाना उड़नतश्तरी के आने की सूचक थी
पूरी रात के जागे हुये बंदे की नींद गायब होना भी एक घटना है
भारतीय रेल का स्वर्णिम काल उस दिन सभी ट्रेनें सही समय पर आ रहीं थीं
एक घटना भी स्टेशन पर घटी, मैं जहाँ खड़ा था वहाँ पर भारमापन यंत्र था, समीरलाल जी के आने से पहले ही खराब हो चला और उनके जाने के बाद ही ठीक हुआ ! ये सच्ची घटना थी.
ट्रेन जो कम से कम दस मिनट और ज्यादा से ज्यादा बीस-पच्चीस मिनट रूकती है, उस दिन पाँच मिनट से भी कम समय में चल दी यानी हवा (समीरलाल) का झोंका बन गयीं थीं
अब आगे का घटनाक्रम और चित्र समीर जी अपनी पोस्ट के माध्यम से करेंगें, लेकिन मैं एक बात उनसे पूछना चाहूंगा कि उनके साथ सफ़र कर रहा एक व्यक्ति हमें देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा था यानी कि उसे भी समीरलाल जी ने चिट्ठाकारी के बारे में बताया था यां नहीं आगे की किस्त समीरलाल जी की पोस्ट के माध्यम द्वारा.........
6 Response to "उड़नतश्तरी आगरा आगमन"
बडे बडे लोगों के आगमन पर ऐसा हो जाता है
शायद
बड़े लोग मिलते हैं
तो ऐसा है होता
इस होली पर रहे
न कोई भी सोता.
बड़े लोग मिलते हैं
तो ऐसा है होता
इस होली पर रहे
न कोई भी सोता.
- अविनाश वाचस्पति
ठीक हो गये तो आगरा में क्यों रुके जी अब वो!
आप भी धन्य हो गये जो उड़नतश्तरी देख ली।
अच्छा, लगे हाथ इलाज भी करा लिये समीरलाल जी!
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