मंगलवार, 19 अगस्त 2008
मार्केटिंग चालू आहे!
मार्केटिंग--- इस एक शब्द का अर्थ पता करने के लिये मैं कितने दिनों से जूझ रहा था, इस शब्द में कितनी महानता-चतुराई-चापलूसी-मूर्खता-धोखा-षढ्यंत्र है ये सब तो इस एक शब्द को पूरा करने के लिये कम हैं.
मतलब? नहीं समझ आया ना !
तो चलिये कुछ दिनों की दिनचर्या पर नजर ! डालें अरे अपनी नहीं मेरी!!!
सुबह-सुबह पार्क में वाकिंग करने के लिये जब चलने लगा तो एक दिन देखा कि पार्क में कुछ लोगों ने एक छोटी सी मूर्ती विराजमान कर दी है, अब उत्सुकता बढने लगी कि भाई अब भगवान जी पार्क में क्या कर रहे हैं? तो ध्यान से देखने पर पता चला कि कुछ लुक्खा यानी कि बदमाश लोग ही मूर्ती की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे हैं यानी कि स्थापना कर रहे हैं, अजीब सी हालत थी मेरी कि एक तो यह पब्लिक पार्क और ऊपर से ये दादा टाईप के लोग पार्क में जगह घेरने आ गये और कुछ कह भी नहीं सकते।
अब वाकिंग के लिये सिर्फ़ पार्क बचा था वो भी भगवान के "सच्चे" भक्तों ने छीन लिया.
कुछ दिनों के बाद देखा तो वहाँ पर मंदिर निर्माण कार्य शुरू हो चुका था यानी कि पार्क का सत्यानाश!
अब शुरू हो चुका था मार्केटिंग का असली कार्य! इसके लिये उन्होने मोहल्ले के वो लड़के चुने जो केवल मंदिर में लड़कियों को देखने के लिये आते थे, उनसे काम करवाने का मतलब था कि काम का पूरा होना.
अब मंगलवार-सोमवार-और न जाने कितने वारों को झेलना शुरू हो चुका था, धर्म के नाम अधर्म का काम शुरू हो चुका था।
अब तो रोज पकवान और मिठाईयां बनने लगीं थी, न जाने कहाँ-कहाँ से लोग आ रहे थे फ़िर एक दिन.....
एक दिन देखा तो उस पार्क के चारों ओर चहारदीवारी खिंच रही थी. मतलब समझ में नहीं आया कि पार्क में दीवारों का क्या काम?
लेकिन् एक् स्वयंसेवी "सज्जन" से पूछने पर पता चला कि भगवान की असीमित क्रपा से फ़लां-धाम का निर्माण हो रहा है,उसमें करीब अस्सी फ़्लैटों का निर्माण कार्य हो रहा है अगर आप बुकिंग करवाना चाहते हैं तो आपको फ़लां-फ़लां बैंक से डिस्काउंट भी मिल जायेगा।
बस अब तो चक्कर आने लगे कि क्या से क्या हो गया, एक मूर्ती के निर्माण के आगे इतनी कालाबाजारी!
राई का पहाड़ का मतलब क्या होता है कोई सार्थक करना तो इन भक्तों से सीखे।
खैर ये तो एक छोटा सा नमूना है कल की बात थी कि संसद में नोटों की गड्डियों के बहाने अपने अमरसिंह दादा ने तो बाकायदा सांसद खरीद कम्पनी भी शुरू कर दी है, लेकिन् कच्चे सौदे करते हैं वरना बी.जी.पी. के सांसद इतने सस्ते में नहीं पटते. उनको तो बाकायदा एक एजेंसी से संपर्क करना चाहिये जो ज्यादा से ज्यादा प्रचार कर सके.
अभी तो कई और भी हैं जो अम्बानी,टाटाओं और बिरलाओं के जैसे केवल मार्केटिंग का काम जानते हैं और पूछने पर ये ही पता चलता है....
मार्केटिंग चालू आहे.........
2 Response to "मार्केटिंग चालू आहे!"
सही है-मार्केटिंग चालू आहे---ऐसे ही देश चल रहा है.
kya bura hai saman hee to hain ye log bikenge nahee to kya.........?
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