शनिवार, 29 दिसंबर 2007

आधी रात के चेहरे

घर जब लौटता हूँ तो मुझे वो वक्त मिलता है जिस समय लोग उठने की तैयारी कर रहे होते हैं यां मीठे सपनों में खोये रहते हुये इन सर्द रातों में खुद् को गर्म लिहाफ़ में जकड़े रहते हैं, अक्सर ही मुझे रात के गहरे सन्नाटे में ना जाने क्या कुछ अलग महसूस होता है जो किसी दिन के उजाले में नहीं मिलता मसलन् जैसे किसी चाय वाले के पास इकट्ठा भीड़ एक छोटी सी टी.वी. के सहारे अपनी बाकी रात गुजार रही होती है,वहीं पास के चौराहे पर ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी कुछ शिकार के लिये और कुछ मजबूरी में अपनी जंग लगी रायफ़लों के सहारे ऊंघ रहे हैं।

फ़ुटपाथ के किनारे सोये हुये बेघर परिवार का बच्चा भूख से रो रहा है तो उसकी माँ उसे उठाकर बड़े दुलार से अपने आँचल में समेटकर उसे सुलाने की पूरी कोशिश कर रही है क्योंकि जब पेट में रोटी नहीं है तो आँचल में दूध कैसे होगा?

किसी गली से गुजरो तो किसी जर्जर काया से निकलती खाँसने की आवाज मानो उन्हें मुक्ति दिलाने के लिये बेचैन हो रही हो यां किसी जगह नाली किनारे जलते अलाव और फ़ेकें हुये शराब के गिलास सर्द रातों से लड़ने की जिजीविषा दर्शा रहे हों.

इस रात में कुछ ऐसे भी हैं जो सर्द् होते मौसम की परवाह न करके धुंध को चीरकर अपने लिये दो रोटी की तलाश में निकल पड़े हैं (हॉकर,दूधवाले,सब्जीवाले,वाहन चालक,रद्दीवाले आदि.) लेकिन इन लोगों को मौसम का क्या वो तो एक सूखी लकड़ी की तरह हैं जिसमें किसी मौसम का असर नहीं.

सारा शहर एक अजीब सी जुगनुओं की मीठी धुन में खोया रहता है,कभी-कभी चौकीदारों की सड़क पर बेमन से पटकी हुयी लाठी और आवेश में बजायी सीटी और दूर आपस में एक दूसरे से देश के नेताओं की तरह लड़ते कुत्ते मानों इस रात को और भी रहस्यमयी बना देते हैं............

सड़क कह रही हो मुझे अब तो सोने दो मैं थक चुकी हूँ लेकिन मेरे लिये वो फ़िर से बाहें फ़ैलाये कह रही हैं कि कल फ़िर मुलाकात होगी.

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

कहिये हम किस गली जा रहे हैं ?

अपने वजूद को तलाशती युवा पीढी आज न जाने किस रास्ते को अख्तियार कर ले इस बात का कोई भरोसा नहीं है क्योंकि पैसे की चाह और जल्दी ऊँचा उठने का ख्वाब उन्हे इस मोड़ पर भी ले जाता जहाँ उन्हें सिर्फ़ अराजकता और कुंठा के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता.

इसका ताजा उदाहरण पाकिस्तान भी है तो अमेरिका भी!
भारत भी कम अछूता नहीं है और बाकी सारी दुनियां में भी रोष बढता ही जा रहा है।
बेनजीर की हत्या फ़िदायन और आत्मघाती हमलावर युवा ही थे और ग्लास्गो एयरपोर्ट, लंदन मैट्रो,अमेरिका की यूनिवर्सिटी, भारत की संसद-अक्षरग्राम आदि सब इनके उदाहरण हो सकते हैं

अब असल मुद्दा- ये लोग कैसे बनते हैं हिंसक,कुंठित और द्वेष भावना के शिकार ?

इसका सटीक और एक ही जवाब है वहाँ की सरकारें और उनकी नीतियाँ.

सरकारें और पार्टियों का मकसद युवा पीढी को किसी प्रकार का रोजगार यां सहायता होता है क्योंकि युवा ही देश के कर्णधार होते हैं लेकिन इनका मकसद अब केवल उनको पार्टी हित के लिये मर-मिटने और आत्मघाती बनाया जा रहा है, किसी भी सरकार की युवाओं के लिये कोई रोजगार गारंटी नहीं है अगर है तो वो है आतकवादी और कट्टरपंथी बनने की शर्त पर.

माओवाद जो भारत में दीमक के समान फ़ैल रहा है उसके समानांतर हम बोडो,पाक आतंकियों, दंगईयों और आक्रोशित युवाओं को भी बढते हुये देख रहे हैं, पाकिस्तान और दूसरे अमेरिका विरोधी देशों में अनपढ-बेरोजगार युवकों को केवल आत्माघाती हमलावर और आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे उन देशों की सरकारों का दबदबा कायम रहे और उन्हे बाकी दुनियां से अलग रख सके.

ये सब कहाँ से हो रहा है? कहाँ से पैसा आ रहा है? क्यों ये युवा किसी से नहीं डरते? क्यों सरकारें मूक दर्शक बनी बैठी हैं?

इन सब सवालों के जवाब के लिये सरकारों को अपने गिरेबां मे ही झांकना होगा क्योंकि उन्ही के फ़ैलाये गये अविश्वास के बीज आज आतंकवाद और कुंठा के बबूल के रूप में आगे बढ रहे हैं.

बुधवार, 19 दिसंबर 2007

गरीबी सिर्फ़ अमीरों के लिये है!

अखबारों,समाचार चैनलों,ब्लॉग्स आदि में गरीबी का दुखड़ा रोकर मगरमच्छी आंसूं बहाने वाले ये लोग क्या किसी मायने में गरीब कहलाने के लायक हैं?,किस गरीब ने कोई ब्लॉग देखा है? और अगर देखा भी है तो उसे क्या मिला, किस जरूरतमंद को ये न्यूज चैनल वाले रोटियां बाँट रहे हैं और तो और ये लोग इस पर लिखकर वाह-वाही भी लूट रहें हैं.

क्यों कोई बिहार के लिये आगे नहीं आता, क्यों किसी को उड़ीसा नजर नहीं आ रहा, क्यों असम में गरीबों के ऊपर लाठियां चलाते वक्त हमारे देश के सभी चैनल उसे कवरेज नहीं देते अगर देते हैं तो उस नग्न लड़की के शरीर को!

देश चलाने वाले हमेशा से गरीबी हटाने के तमाम वायदे कर अपनी चुनावी जनसभायें और सत्ता की ओर मार्ग प्रशस्त करके आगे निकल जाते हैं और पीछे रह जाता है तो बस अवाक् खड़ा गरीब और लाचार इंसान जिसे अपने ठगे जाने का एहसास नहीं होता,

किस गरीब के पास सरकार की योजनाओं का लाभ पहुँचता है? यां ये कहिये कि किसी गरीब को सरकार ने ठेंगा दिखाने के अलावा क्या दिया.आज ठंड से ठिठुर रहे किसी गरीब को बीस एक राजनेताओं ने मिलकर एक शॉल क्या ओढा देते है तो वो पब्लिक की नजर और समाचार,पत्र-पत्रिकाओं के हीरो बन जाते है,किस गरीब के पास राशन-कार्ड होता है जबकि किसी अमीर के पास बैंक में खाता खुलवाने के लिये राशन कार्ड भी मिल जायेगा क्यों ?

राजनीते की दुकान चलाने वाले गरीबी का सौदा ही तो करते हैं जिससे बदलें वो विश्वस्तर के लूटखोर बन सकें ताजा उदाहरण दिलीप मंडल जी ने इस ब्लॉग पर दिया है.

क्या आप ये सोचते है कि आप ब्लॉग,समाचार और टी.वी. पर तो बहुत लिख लेते हैं पर जब कोई सचमुच का गरीब आपके द्वार खड़ा होता है तो फ़िर आप क्या करते है?

मैं भी आप लोगों में हूं लेकिन हम लोगों को भ्रष्ट होती सरकार और गरीबी का मजाक उड़ाते लेख लिखने के मोहपाश को छोड़कर किसी सच्चे लेखन की ओर जाना चहिये.

क्योंकि गरीबी के ऊपर लेख लिखने से टिप्पणियों की बौछार तो हो सकती है लेकिन गरीब के आंसू के रूप मे.

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

तस्वीरें जो बोलती हैं-भाग 2

मेरी एक पोस्ट तस्वीरें जो बोलती हैं के लिये मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला जिसके फ़लस्वरूप मैने आज इसका दूसरा भाग पोस्ट करने के लिये फ़िर से देश के जाने-माने छायाचित्रकारों (फ़ोटोग्राफ़रों) के चित्रों की मदद ली है, जैसा कि मैने पहले भी कहा था कि प्रत्येक चित्र के लिये एक ब्लॉग लिख सकता था लेकिन फ़िर आज यही कहूंगा कि इससे इन चित्रों की आत्मां ही मर जायेगी.

हर चित्र के लिये टाइटिल (शीर्षक) असली हैं जिसे खुद छायाकारों ने प्रदान किये हैं.

तो आइये देखें इनकी नजर से अपने प्यारे भारत देश के 'असली' रूप को



















INNOSANCE.:(इनोसैंस):.पवित्रता













SCHOOL .:(स्कूल):. विधालय



















ALONE WITH GOD .:(अलोन् विद् गॉड):. ईश्वर के साथ अकेले














THE REFREASHMENT .:(द रिफ़्रेशमैन्ट):. तरोताजा करना












THE TASTE OF INDIA.:(द टेस्ट ऑफ़ इन्डिया):. स्वाद भारत का















BALANSING ACT .:(बैलैंसिंग एक्ट):.संतुलन कला


















FIRST CLASS .:(फ़र्स्ट क्लास):.प्रथम श्रेणी















DREAM IS NEVER B/W .:(ड्रीम इज नैवर ब्लैक/व्हाइट) :.सपने कभी श्वेत-श्याम नहीं होते


















THE RUN .:(द रन):. दौड़













NEXT IN LINE .:(नैक्स्ट इन लाइन):. अगला कतार में है


















MARKET ON WHEELS .:(मार्केट ऑन व्हील्स):. पहियों पर बाजार


















TIREDNESS .:(टाइर्डनैस):. थकान













POTRAIT OF CROW .:(पोट्रेट ऑफ़ क्रो):. कौए का चित्र



















SATISFACTION .:(सैटिसफ़ैक्शन):. संतुष्टि


















PAN CAKES .:(पैन केक्स):. केक



















GHOST BAGGER .:(घोस्ट बैगर):. प्रेत भिखारी














HOW WE AND ? .:(हाउ वी एन्ड?):. हमारा अंत कैसा होगा?

आँखें

इन आँखों ने क्या-क्या नहीं देखा. बस नहीं देखा तो एक पल भर की खुशी,इन आँखों ने क्या-क्या नहीं खोया,बस नहीं खोया तो इसमें बहने वाले आँसू, इन आँखों को दोष देने से पहले ये जमाना सारे गुनाह छुपा लेता है, इन आँखों के लिये वो अपनों को भी पराया कर देता है फ़िर भी उसे इन आँखों से कुछ हासिल नहीं होता।

इन आँखों ने गुजरात जलते देखा,अयोध्या लुटते देखा,हिन्दू-मुसलमान,सिख-ईसाइयों को अपनों के हाथों कटते-जलते देखा.

जिन हाथों ने जिसे बचपन से पाला उन्ही हाथों मे उसका खून देखा, जिस खेत में झूले झुलाये उन्ही खेत-गाँव में उसकी इज्जत तार-तार होते देखा.

इन्ही आँखों ने देश के संसद पर हमला होते देखा तो इन्हीं सांसदों ने रामसेतु पर हमला किया,

आज देश गरीब हो गया तो मुझे दिखता नहीं ये जमाना कहता है, पर जब गरीब किसान मरता है तो लोग मुझ पर कीचड् उछालते हैं.

आज हर औरत वेश्या और हर आदमी गुलाम बनने को मजबूर हो रहा है लेकिन सब फ़िर भी मुझे कहते है कि मुझे दिखता नहीं.

आज का बच्चा पहले पिस्तौल फ़िर बात करता है,आज की बच्ची पहले गर्भ-निरोधक दवा और फ़िर दोस्ती करे और फ़िर भी मुझे कहे कि मुझे दिखता नहीं है.

आस्तीन में साँप पालकर मुल्क को गद्दारों के हाथ सौंपकर कहते हो कि मुझे दिखता नहीं.



......आखिर इन आँखों को कैसे दिख सकता है जिसने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी है,

क्योंकि मैं कानून की आँखें हूं।