बुधवार, 26 दिसंबर 2007
कहिये हम किस गली जा रहे हैं ?
अपने वजूद को तलाशती युवा पीढी आज न जाने किस रास्ते को अख्तियार कर ले इस बात का कोई भरोसा नहीं है क्योंकि पैसे की चाह और जल्दी ऊँचा उठने का ख्वाब उन्हे इस मोड़ पर भी ले जाता जहाँ उन्हें सिर्फ़ अराजकता और कुंठा के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता.
इसका ताजा उदाहरण पाकिस्तान भी है तो अमेरिका भी!
भारत भी कम अछूता नहीं है और बाकी सारी दुनियां में भी रोष बढता ही जा रहा है।
बेनजीर की हत्या फ़िदायन और आत्मघाती हमलावर युवा ही थे और ग्लास्गो एयरपोर्ट, लंदन मैट्रो,अमेरिका की यूनिवर्सिटी, भारत की संसद-अक्षरग्राम आदि सब इनके उदाहरण हो सकते हैं
अब असल मुद्दा- ये लोग कैसे बनते हैं हिंसक,कुंठित और द्वेष भावना के शिकार ?
इसका सटीक और एक ही जवाब है वहाँ की सरकारें और उनकी नीतियाँ.
सरकारें और पार्टियों का मकसद युवा पीढी को किसी प्रकार का रोजगार यां सहायता होता है क्योंकि युवा ही देश के कर्णधार होते हैं लेकिन इनका मकसद अब केवल उनको पार्टी हित के लिये मर-मिटने और आत्मघाती बनाया जा रहा है, किसी भी सरकार की युवाओं के लिये कोई रोजगार गारंटी नहीं है अगर है तो वो है आतकवादी और कट्टरपंथी बनने की शर्त पर.
माओवाद जो भारत में दीमक के समान फ़ैल रहा है उसके समानांतर हम बोडो,पाक आतंकियों, दंगईयों और आक्रोशित युवाओं को भी बढते हुये देख रहे हैं, पाकिस्तान और दूसरे अमेरिका विरोधी देशों में अनपढ-बेरोजगार युवकों को केवल आत्माघाती हमलावर और आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे उन देशों की सरकारों का दबदबा कायम रहे और उन्हे बाकी दुनियां से अलग रख सके.
ये सब कहाँ से हो रहा है? कहाँ से पैसा आ रहा है? क्यों ये युवा किसी से नहीं डरते? क्यों सरकारें मूक दर्शक बनी बैठी हैं?
इन सब सवालों के जवाब के लिये सरकारों को अपने गिरेबां मे ही झांकना होगा क्योंकि उन्ही के फ़ैलाये गये अविश्वास के बीज आज आतंकवाद और कुंठा के बबूल के रूप में आगे बढ रहे हैं.
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