सोमवार, 6 अक्तूबर 2008
जागो रे! ये एक मजाक है यां पब्लिसिटी का नया फ़ंडा
पिछले लगभग एक महीने से मैं इस जागो रे नामक एड को देख रहा हूँ और कई दिनों से इस वेबसाइट को भी देख रहा हूँ.बहुत सी कमियां हैं जो देखने के बाद पता चलता है कि वेबसाइट बनाने वालों ने सिर्फ़ अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है इसलिये ये एक जागरूक अभियान न होकर वरन एक सुस्त प्रोग्राम सा लगता है जिसे खुद ही जागो रे कहने की जरूरत है.
कुछ कमियां : - अव्वल तो यह संपूर्ण गुलामी की मानसिकता लिये अंग्रेजी भाषा में है
- इतने दिनों से टी.वी पर आने के बावजूद केवल 22331 आज तक सदस्य बनें हैं यानी करोड़ों रूपये बर्बाद करने के बाद सिर्फ़ हाथ लगे चन्द
- जिसके पास वोटर कार्ड न हो और कोई स्थायी पता न हो यानी कि वो किरायेदार हो तो कैसे संभव है ये ऑनलाइन वोटिंग
- एड में सिर्फ़ चाय पिलाने से क्या मकसद हल हो रहा है? यां अपने उत्पाद की मार्केटिंग
अब भाई लोगों अगर रूपये बर्बाद ही करने थे टाटा ग्रुप को तो इस सरकारी काम में नहीं करने थे क्योंकि आज तक चुनाव आयोग वोटिंग की सही गिनती और मार्केटिंग नही कर सका है तो फ़िर ये टी.वी. के एड् क्या कर लेंगे!
बाकी "जागो रे"
3 Response to "जागो रे! ये एक मजाक है यां पब्लिसिटी का नया फ़ंडा"
अपने उत्पाद के विज्ञापन के लिए ही किया गया है. सवाल यह है कि लोग इसे कितनी तवज्जो देते हैं?
शुरूआत सही है पर तरीका थोड़ा और हैल्दी होता तो बेहतर।
है तो मार्केटिंग ही!!
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