गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008
अतुल्य भारत - मेरी यात्राओं से (भाग -दो)
पिछले भाग में मैने कुछ तस्वीरें और कुछ संछिप्त परिचय दिया था अपनी पिछली चार माह के गायब रहने का कारण सहित.
अब कुछ फ़ुर्सत है और लिखने का उचित समय भी तो हाजिर है भाग-दो
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मेरी यात्राओं में बहुत से पड़ाव और शहर,गाँव आये .. गौरतलब बात यह है कि मैने ये यात्रायें दुपहिया वाहन से कीं.
प्रमुख शहर जिनसे होकर गुजरा और उनको देखाः- कासगंज,बदायूँ,एटा,बरेली,रामपुर, देहरादून,ग्वालियर,डबरा,दतिया,झाँसी,भोपाल-होशंगाबाद,
और आगे हजारों गाँव और देहात कस्बे ये सब केवल अकेले सिर्फ़ अकेले
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कुछ बाते अपने देश के किसानों की--
मैने पूर्वी उत्तर-प्रदेश के किसानों के पास एक उन्नति का पथ खोजा जो उन्होने संपूर्ण विकसित कर लिया है. कैसे!
साल भर की तीन महीनों की फ़सल में किसान क्या कमाते थे अतः उन्होने उस फ़सल के साथ-साथ नयी-नयी फ़सलें भी उगाना शुरू कर दिया है जिससे उन्हे इतना मिल जाता है कि वो अपना गुजारा एक ही फ़सल में निकाल लें. किसानों ने पिपरमेंट,कमल-ककड़ी,खुंबियां और तिल के साथ साथ अनेक बेमौसमी फ़ल और अनाज उगाना शुरू कर दिया है.
तो वहीं अब खुशी होती है कि आज पाठशालाओं में शिक्षा देने स्वयंसेवी संस्थायें और स्कूल-कॉलेज भी आगे आने लगे हैं. मैने बहुत से ऐसे परिवार् भी देखे जिनमें लड़कियां तो पढ रही हैं लेकिन लड़के खेती-मजदूरी कर रहे हैं.
प्रस्तुत है कुछ तस्वीरें ---
ये टेम्पो तो जाना पहचाना सा लगता है
अजान का वक्त हो गया!देखो आवाज आ रही है
भाई! इस बारिश में कहाँ जायेंगे?
और आगे विस्तार से अलग -अलग विषयों पर लेख लिखूंगा....क्रमशः
1 Response to "अतुल्य भारत - मेरी यात्राओं से (भाग -दो)"
गाँवों और किसानों का विकास सुन और आप उन्हें इतना नजदीक से महसूस करके आ रहे हैं, जानकर प्रसन्नता हुई. आगे वृतांत का इन्तजार रहेगा.
विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
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