शनिवार, 7 जुलाई 2007
लिखो तो ऐसे लिखो!
जागरन.कौम पर जब यह समाचार पढा तो लगा शायद अगर कोई हिन्दी की सेवा बिना किसी संसाधनों के कर रहा है तो वो व्यक्ति सम्मान पाने लायक है.कैसे एक साधारण और वित्तविहीन इंसान जो सिर्फ़ 10वीं तक ही पढा हुआ है,पेशे से धोबी है और इस अखबार का स्वयं ही सम्पादक-प्रकाशक और मालिक है.
इस अखबार को उन्होने (रजिस्ट्रार औफ़ न्यूज पेपर फ़ाँर इन्डिया )आर.एन.आई. में पंजीक्रत भी करवा रखा है. इस अखबार का नाम दीन-दलित है जिसमें जनसमस्याओं के बारे मे लिखा जाता है।
पिछले बीस सालों से यह अखबार प्रकाशित हो रहा है लेकिन शायद किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं देना उचित नहीं समझा क्योंकि वो व्यक्ति साधारण है,लेकिन अगर मैं यां कोई भी किसी समारोह को आयोजित करके कोई पुस्तक यां किसी पत्रिका का विमोचन किसी वी.आई.पी यां सुन्दर सी कम कपडों में किसी अभिनेत्री द्वारा जिनको हिन्दी का क ख ग भी नही आता हो के हाथों से करवाऊं तो शायद मैं रातों-रात मशहूर हो जाउंगा यां फ़िर किसी राष्ट्रीय पुरूस्कार का हकदार ना बन जाउं.क्या ये उचित है? जवाब है नहीं
आज लग रहा है हिन्दी को हम जैसे ब्लाँगरों(जिनके पास शायद सूचना एवं संचार तंत्र के सभी साधन हैं) और हिन्दी के लिये लिखने वालों को हिन्दी की निस्वार्थ सेवा करने और हिन्दी को आगे बढाने के लिये जागरुक होना पढेगा जिससे पूरे विश्व को यह संदेश मिलेगा कि हिन्दी ही इस विश्व की सर्वोपरि भाषा है जिससे भारत जैसे महान देश की पहचान होती है.
3 Response to "लिखो तो ऐसे लिखो!"
जानकारी बड़ी विचित्र है और रोचक भी..
kamal bhai, wah!
aap kahaan-kahaan se khabar nikal late ho.
great job] maja aa gaya...
हम्म्म!! रोचक!!
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