सोमवार, 23 जुलाई 2007
हैरी पॉटर भईये तुम तो छा गये!
आज जब दिल्ली में जे.के. रोलिंग की किताब के लिये लाइन लगी देखी तो मुझे आश्चर्य हुआ कि भारतीयों को हो क्या गया है?
मेरे मित्र ने जब किताब खरीदने की बाबत मुझसे पूछा तो मेरा जवाब सुनकर वो हँसने लगा क्योंकि मैं उस किताबी जादूगर को नहीं जानता था याँ शायद मैं उसकी नजर में मूर्ख घोषित हो चुका था।
किस तरह से नर-नारी-बच्चे उस 975 रू0. वाली किताब के लिये लालायित हो रहे थे मैं आश्चर्य से पागल हुआ जा रहा था। लेकिन मैं सोचने लगा कि उस किताब को मुश्किल से कोई भी आधा घंटा लगायेगा पडने में लेकिन ये कोई नहीं सोचता कि उस 975 रू.0 में क्या किसी गरीब बच्चे का भला होगा?
कुछ दिनों पहले इंटरनेट पर मुझे ये झकझोर करने वाले चित्र मिले जिसमें एक तरफ़ तो एक भूख से कुपोषित हुआ बच्चा है तो दूसरी सदी का महान आश्चर्य यह है कि शीशे के दरवाजे में भीख माँगते बच्चे की तस्वीर हमें मुह चिडा रही है.
वाह इंडिया !
क्या ये सही है कि हम हिन्दुस्तानी इतने गिर गये हैं कि महज दिखावे और अंधी दौड में पागल हुये जा रहे हैं. कहाँ हैं वो संवेदनायें? जब दान करना हो तो नेशनल न्यूज बन जाते हैं और जब वासना के पुजारी बन जाते हैं तो निठारी और गोआ में बच्चे ढूढते फ़िरते हैं।
ये सब तो उन पागल अंग्रेजों की चालें हैं जो हमारे बच्चों को सुपरमैन, पोकोमैन्, हैरी-पोटर बनाने में लगे हुये हैं,यां शायद काफ़ी हद तक सफ़ल भी हो चुके हैं।
यौन-शिक्षा,एडल्ट चैनल,एडस ये सब उस गन्दी विरासत की देन हैं जिसको अपनाने के लिये इस पावन-पवित्र देश को महज चन्द रूपयों के लिये झुकना पड रहा है क्योंकि ये भारत देश् भी मेट्रो कल्चर यानी दूसरे शब्दों में खुलापन अपनाना चाहता है।
आज लगभग हर जगह सेक्स,कालगर्ल स्कैंडल,चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी,फ़्री-सेक्स टूरिस्म,अबोर्शन,कम उमर में शादीयां जैसे विषय ही सुनने को मिल रहे हैं क्यों?
क्योंकि हम यही चाहते हैं और हमारी यही नियति है.
फ़िर कभी हम शायद जन्-गन्-मन् जैसे राष्ट्रगान अपने बच्चों के मुँह से सुन पायेंगे क्योकि तब तक बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि वो तब तक वो हैरी-पोटर नुमा संसार में खो चुके होंगे।
2 Response to "हैरी पॉटर भईये तुम तो छा गये!"
सही!!
अच्छा लिखा।
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