शुक्रवार, 13 जुलाई 2007
कुछ इधर-उधर की....
बकरी चराने वाली बनी 'स्टार गर्ल'
दिल में कुछ करने का जज्बा हो तो राह अपने-आप बन जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बोचहां के पटियासा जालान गांव की अनीता ने। मधुमक्खी पालन में सफलता की नई कहानी लिखने वाली एक मजदूर की बेटी अनीता कुमारी को यूनिसेफ ने स्टार गर्ल चुना है। दिल्ली में महात्मा गांधी सेवा सदन में आयोजित कार्यक्रम में बिहार से अनीता कुमारी, झारखंड से सूर्यमणि एवं मध्य प्रदेश से कृष्णा ने भाग लिया था, जिसमें अनीता का चुनाव किया गया।
दिल्ली से लौटने के बाद अनीता ने बताया कि राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से भी बातचीत करने का उसे मौका मिला। राष्ट्रपति ने उसे हरसंभव मदद का आश्वासन देते हुए उसके कार्य की सराहना की है। अनीता बताती है कि उसके पिता जनार्दन सिंह मजदूरी कर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपने घर की बदहाली देख अनीता ने मधुमक्खी पालन का निर्णय लिया। ट्यूशन के पैसे बचाकर वर्ष 2003 में उसने दो रानी मक्खियां खरीदीं। देखते ही देखते अनीता का व्यवसाय चल निकला। आज उसके पास 100 बक्से हैं। मां रेखा देवी स्वयं सहायता में जुड़ी तो उसे और बल मिला। अब अनीता को मध्य प्रदेश के बिंद जिले के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और बच्चों को प्रशिक्षण देने का काम सौंपा गया है।
गौरतलब है कि बचपन में अनीता के माता-पिता उसे स्कूल नहीं भेजना चाहते थे, पर वह अपने इरादे की पक्की थी। जब उसे बकरी चराने के लिए भेजा जाता था तो वह भागकर स्कूल चली जाती थी। ग्रामीणों के कहने पर उसके पिता ने उसे स्लेट खरीद दी। गरीबी के कारण उसने गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई पूरी की। अनीता की मेहनत रंग लाई, मैट्रिक की परीक्षा में उसने फर्स्ट डिवीजन से पास की। एमडीडीएम कॉलेज, मुजफ्फरपुर से बीए पार्ट वन की परीक्षा देने वाली अनीता पूरे विश्व में बिहार का नाम उजागर करना चाहती है। आज उसकी चर्चा सबकी जुबान पर है और सभी अपनी-अपनी लड़की को अनीता से सीख लेने की बात कहते फिर रहे हैं।
ऐसी दुकान जहाँ कोई दुकानदार नहीं
आमतौर पर दुकान में सामान बेचते दुकानदारों को तो आपने सब जगह देखा होगा, लेकिन ऐसी दुकानें नहीं देखी होगी जहां कोई दुकानदार ही न हों। आप सोच रहें होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन मिजोरम में बिना दुकानदार के दुकान की अवधारणा काफी लोकप्रिय हो रही है।
यहां लोग काफी दूर से पैदल चलकर सामान खरीदने आते हैं और दुकान में किसी भी दुकानदार के मौजूद नहीं होने के बावजूद सामान लेकर ईमानदारी के साथ वहां रखे बक्से में पैसे रखते है और चले जाते हैं। यहां से 70 किलोमीटर दूर सिलींग और कीफंग गांव में हरेभरे जंगलों के बीच स्थित ये दुकानें इस रास्ते से गुजरने वाले थके मांदे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। मणिपुर की सीमा से लगे मिजोरम के इस पूर्वोत्तर क्षेत्र में पहुंचने के लिए राजधानी एजल से करीब सात घंटे की थकान भरी ड्राइविंग करनी होती है।
हालांकि, रास्ते में पड़ने वाली ऐसी अनेक दुकानों को जिसे स्थानीय भाषा में 'नगाहलोह दावर' कहते हैं। इससे ताजी हरी सब्जियां, फल और अंडों को खरीदने में किसी के द्वारा बाधा नहीं पहुंचाई जा सकती है। ऐसी एक दुकान के मालिक और किसान वनलालदिका (29) अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नजदीक के ही एक गांव में रहते हैं और पिछले तीन वर्षोसे उनके जीवनयापन का मुख्य साधन दुकान ही हैं। हर सुबह वनलालदिका सब्जियां अपने दुकान में लगाता है और वहां एक छोटा बक्सा रख वहां से एक किलोमीटर दूर अपने खेत में चला जाता है। जो लोग वहां से गुजरते हैं ताजी सब्जियां खरीदकर उतने पैसे बक्से में डाल जाते हैं।
वहीं, वनलालदिका ने संवाददाता को बताया कि कोई भी हमारी सब्जियां नहीं चुराता है। मैं एक छोटे कार्डबोर्ड पर उन वस्तुओं की कीमत लिख उसके पास ही रख देता हूं। लोग यहां अक्सर आकर सब्जी और फल खरीदते हैं और दुकान से जाने से पहले पैसे बक्से में डाल जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर उनके पास खुले पैसे नहीं होते हैं तो वे बक्से से निकाल लेते हैं। उन्होंने कहा कि वह चार से पांच सौ रुपये प्रतिदिन कमा लेते हैं।
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