सोमवार, 2 जुलाई 2007
नारद् जी सुनिये! जमाना बदल गया है...
नारद् जी जब मैने पिछले शुक्रवार को एक बहुत ही सटीक लेख महादेवी वर्मा(हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती) का वर्णन अपने ब्लाँग पर दिया तो मुझे लगने लगा कि हिन्दी को बढावा देने वाले और हिन्दी लेखन में अपनी रूचि रखने वाले मेरे इस लेख को शाबाशी देंगे और मुझे आगे बढने के लिये प्रोत्साहित करेंगे लेकिन मुझे तब आश्चर्य हुआ कि मेरे लेख की प्रोत्साहना तो दूर किसी ने उसे नजर उठाकर भी देखना गंवारा नहीं समझा।
अब मुझे समझ में आ गया है कि बेकार मे लिखा गया कूडा लेख् जिसमें कुछ ओछी हरकतें,पंगेबाजियां,दूसरों का ध्यान आकर्षित करनें के लिये उलूल-जुलूल हरकतें ही हिन्दी ब्लाँगरों की पहली पसंद बन चुके हैं। नारद जी मुझे लगने लगा है कि अब अगर इस अक्शरग्राम नेटवर्क पर अगर हिन्दी लेखन की गुणवत्ता को सुधारा न गया तो शायद इसका हाल ओरकुट् (जो पहले मित्रों की खोज् के लिये बनाया गया था अब राष्ट्र्-विरोधी हरकतों,अश्लीलता और् समय व्यतीत करनें का साधन बन चुका है) जैसा ना हो।
मुझे माफ़ करें अगर मेरी बातें किसी को बुरी लगेंगी लेकिन क्या करूं मैं कोई अपने आपको बडा लेखक नहीं समझता हूँ लेकिन् हिन्दी के प्रति मेरे प्रेम के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूँ।
जय हिन्दी!हिन्दी अमर रहें