शुक्रवार, 29 जून 2007
महादेवी वर्मा(हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती)
आज जब अनायास ही विकिपिडिया का हिन्दी लेखागार खोला तो मन द्रवित हो उठा इस महान विभूती के बारे में लेख पढकर
महादेवी वर्मा की छवि हिन्दी साहित्य के एक अविरल सत्य के रूप में जानी जाती है जिन्होने हिन्दी के एक युग के निर्माण में स्तम्भ के रूप में योगदान दिया2007 साल उनकी जन्मशताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है जिसकी छवि इन्टरनेट पर कुछ पेज तक ही सीमित है,लेकिन शायद अभी इस देश को सुनीता विलियम्स,प्रतिभा पाटिल,ऐशवर्या राय,राखी सावंतों से फ़ुर्सत नहीं है।
क्या करें इस देश की विडम्बना ही यही है कि सभी लोग चढते सूरज को ही सलाम करते हैं लेकिन उन्हें भूल जाते हैं जिन्होने इस देश की संस्क्रति को हमें धरोहर के रूप में दिया है।आईये कुछ लिखें अपनें देश के गौरवशाली साहित्यकारों और उनके द्वारा दिये गये योगदान पर! हम हिन्दी ब्लाँग तो लिख रहे हैं लेकिन हिन्दी साहित्य कहाँ चला गया है?
प्रस्तुत है उनको समर्पित लेख जो शायद नये लेखकों को भारत के महान साहित्य लेखनकाल को सजीव करता है।
क्रपया इस लिंक पर क्लिक करें जिससे आप तुरंत उनके जीवन के बारे में जानकारी पायेंगे।
7 Response to "महादेवी वर्मा(हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती)"
कमलेश,
आपने अगली पोस्ट पर टिप्पणी की सुविधा नहीं दी है इसलिए इस पृष्ठ का उपयोग किया जा रहा है-
ब्लॉगर क्या लिखेंगे इसे भला नारद या अक्षरग्राम कैसे तय कर सकता है मित्र।
आपको हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण विषय लगता है- लगे, जिसे नहीं लगता उसे लताड़ने का कोई कारण नहीं दिखता।
आप हिंदी को लिखने की अपनी भाषा बना रहे हैं ये स्वागत योग्य है पर यह स्वयं में इस बात का परिचायक नहीं है कि लेखन की स्वीकार्यता व गुणवत्ता को सिद्ध माना जाए।
संस्कृति पर महादेवी के विचारों का उल्लेख किया अच्छा किया- 'सस्कृति' शीर्षक का उनका निबंध एक बार फिर पढ़ जाओ, आपको अपनी पोस्टों में की गई आपत्तियॉं निराधार लगने लगेंगी।
कृपया मेरी या अन्य मित्रोंकी बात से नाराज होकर हिदी में लिखना मत छोडि़एगा- साधारण लिखें या विशिष्ट पर लिखते रहें।
कुछ समय लगता है टिप्पणियों के आने में. हिन्दी की सेवा मत छोड देना. मुझ से सम्पर्क करो तो एकाध हिन्दीसेवी काम एक साथ कर सकते हैं
कमलेश,
हिन्दी चिट्ठाकारी में आपका स्वागत है।
इसी तरह लिखते रहिये। धीरे-धीरे लोग आपके ब्लाग को जानेगे, फिर आपके विचार पढ़ेंगे और साथ में टिप्पणियां भी करेंगे। धरहुं धीर..
चिन्ता करे ,सही है ।पर उत्तेजित होने से कुछ भला नही ।हिन्दी सिर्फ छायावाद या प्रगतिवाद या कोइ भी विशिष्ट शैली नही है ।यहा तमाम विविधताएं है जिनमे अपका भी स्वागत है ।इतना शीघ्र नतीजे न निकालें ।
भाई, पढ़्ते तो जरुर हैं मगर आपने ही तो लिंक से सब को विकि पर भेज दिया तो जो गया सो गया..कौन लौटा है आजतक वो भी टिप्पणी करने!!! आप संवेदनशील हैं..मगर लिखना जारी रखें. कोशिश की जायेगी कि पढ़ने के बाद पावती रख जायें. शुभकामनायें.
अरे मित्र अभी आपको आये मात्र तीन माह भी नही हुऐ है। और आपको अच्छी टिप्पणी मिल रही है। जब हमने लिखना शुरू किया था तो सोचा ना था कि हमें भी कोई टिप्पणी करेगा। आज साल भर हो रहे है मुश्किल से 10 टिप्पणी भी नही पहुँचती है। कभी कभी तो खाता भी नही खुलता है। :)
Baai aap to bahut naaraajलग रहे है,कृपया लिखते रहे और टिपियाने के लिये स्थान भी यही रखे,हम अब आपसे जरूर पंगेबाजी का वादा करते है बस नाराजगी दूर करे :)
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