बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

लो अब "रवीश भाई" भी तालिबान-तालिबान गाने लगे!

कल तक एन.डी.टी.वी. के प्राइम टाइम के सुपरहीरो बनकर आये रवीश भाई जिस इंडिया टी.वी. के तालिबान के ऊबाउ कार्यक्रमों की खिल्लियां उड़ाकर यह कहते फ़िर रहे थे कि ये कार्यक्रम आपकी रातों की नींद खराब कर सकते हैं जो केवल यू-ट्यूब पर पोस्ट किये नकली आतंवादी ड्रामों से भरी पड़ी है.


दर-असल में इंडिया टी.वी. के बढते ग्राफ़ और टी.आर.पी. रेटिंग ने सभी चैनलों की नींद हराम कर रखी है जिसके बचाव में कई झुलस गये हैं यां कई हाथ सेंक रहे हैं. उसी आग की तपिश से झुंझलाये बेचारे " रवीश भाई" प्राइम टाइम पर सबको यही सलाह देते फ़िर रहे थे कि आप्को तालिबान के नाम पर बेवकूफ़ बनाया जा रहा है और आप ऐसे कार्यक्रम न हीं देखें जिससे आपका मन विचलित हो सकता है.


लेकिन भला हो देश की जनता का जिन्हें रात को अपने खाने के साथ ऐसे मसालों का तड़का खाने की आदत है, अतः रवीश भाई समझ गये कि अब उनकी दुकान नहीं चलने वाले तो उन्होने पिछले दो तीन दिनों से वही यू-ट्यूब के वीडियो दिखाना शुरू कर दिया जिनके लिये उन्होने कहा था के ये नकली और भ्रमित वीडियो हैं.


शायद रवीश भाई को समझ आ गया है जैसा देश वैसा भेष वाली रणनीति और समय के अनुसार ट्रेंड सैटर नहीं बने तो हो सकता है कि फ़िर से उन्हे प्रिंट मीडिया में वापसी करनी पड़े क्योंकि यहा वही सब करना पडता है जो जनता चाहती है न कि एडीटर यां न्यूज-रीडर

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

आज की शाम कॉलेज के कॉफ़ी-हाउस के नाम

आज सैकड़ा हो गया पोस्ट लिखते-लिखते तो सोचा कि कहाँ लिखूं तो मन में आया कि कहीं दूर न जाकर बस वहीं से शुरू करते हैं जहाँ लोग अपनी जिंदगी के सबसे यादगार दिन बिताते हैं.....
तो बस चल दिये अपनी गाड़ी को उस कॉफ़ी शॉप से दूर पार्किंग करके क्योंकि उन दिनों मेरे पास साइकिल जैसा साधन भी नहीं था और बस रिक्शा यां दोस्तों का रहमो-करम(लिफ़्ट) काम आता था.

सो चल दिये अपनी मंजिल की तरफ़! वहाँ पहुँचते ही लगा कि हम जी रहे हैं दुबारा उन दिनों को, लगा ये शाम का सन्नाटा मुझे उन दिनों का शोर सुनायी दे रहा है.
कॉलेज नहीं बदला,न ही वो कैंटीन यानी कॉफ़ी हाउस लेकिन समय बदल गया था और मेरा वर्तमान.

अपने लिए वही क्रीम-रोल और दो समोसे के साथ हाई-स्वीट विद हॉट एस्प्रेसो का ऑर्डर जब दे रहा था तो लगा कि आज उधार मांगना पड़ेगा क्योंकि अचानक मेरा हाथ मेरी जेब की तरफ़ जाने लगा था जो उन दिनों की आदतों में शुमार था(क्योंकि अक्सर उधार खाना पड़ता था लेकिन हमेशा इस कॉफ़ी वाले ने मना नहीं किया)

आज वो वहाँ नहीं थे बस एक तस्वीर में माला के पीछे थे(यानी मर चुके थे)नारायण अंकल यानी कि बिहारी दादा. काउंटर पर बैठे लड़के का परिचय मिला तो पता चला कि वो उनका बेटा है. बेटा कैसे? (बिहारी अंकल ) का कोई बेटा तो नहीं था फ़िर ये?....पता चला कि बिहारी अंकल ने जिस-जिस को बचपन से पाला था यानी कि वो कुल तीन लोग थे उन सबमे आपस में उन्होने कैंटीन का जिम्मा अपने जीते -जी दे गये थे.

खैर फ़्लैश-बैक में चलते हैं, ..............मुझे याद है वो दिन जिस दिन मैने इस कॉलेज में पहला कदम रखा था नयी उमंगों के साथ थोड़ा रैगिंग का भी डर था, मेरे पहुँचते ही कॉलेज के कुछ सीनियर्स ने मुझे घेर लिया लेकिन उनमें से दो लड़के मेरे परिचित थे इसलिये मेरी रैगिंग तो टल गयी लेकिन बदले में मुझे उनको उसी कॉफ़ी-हाउस में दावत देनी पड़ी जो उस दिन का सौ रूपये के बराबर बिल बना.

लेकिन अब मैं अपने कॉलेज का एक आजाद पंछी यानी(जूनियर को पंछी) बन गया था.
लड़कियों में मैं उपस्थिति (अटैंशन) ले चुका था और बिहारी दादा के उधार-खाते में मेरा एकाउंट बन गया था...


आगे विस्तार से बताउंगा
क्रमशः.......

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

परवेज मुशर्रफ़ के बोये बीज ने अब बबूल के रूप में पाकिस्तान की मौत का सामान तैयार कर लिया है

आज जिस पाकिस्तान पर अमेरिका समेत समस्त विश्व अपनी भौहें तिरछी कर रहा है, उसी पाकिस्तान के जनरल रहे परवेज मुशर्रफ़ ने किस तरह अपने मुल्क में आतंक और पश्चिमी देशों से मित्रता (अमेरिका) का ढोंग किया ! उसके इसी कदम से उसी के मददगार रहे अफ़गानिस्तान और मुस्लिम देश खासे खफ़ा हो चले थे.

एक तरफ़ मुशर्रफ़ देश में अमन-चैन और खुशहाली का नकली आवरण पहने विश्व को बेवकूफ़ बनाने का नाटक खेल रहे थे तो दूसरी तरफ़ गरीब,बेबस और लाचार जनता मुशर्रफ़ के तानाशाह रवैये से तंग आ चुकी थी, इसका परिणाम यह हुआ कि अफ़गानिस्तान के तालिबान अफ़सरो और पाकिस्तान के शरणागत आतंक के आकाओं ने पाकिस्तान को ही ठिकाने लगाने का मन बना लिया है
पहले बेनजीर की हत्या ,फ़िर मुशर्रफ़ की ताजपोशी छिन जाना इसी गुस्से का सबूत है जो मुशर्रफ़ ने अपने तानाशाही रवैये के कारण देश की अवाम में पैदा किया

मुखमरी,कर्ज और आतंकी शरणस्थलों को बढावा देने का काम जिस गति से परवेज मुशर्रफ़ ने किया उसी गति से आज पाकिस्तान दिन ब दिन अपने आपको गर्त में डूबा पा रहा है. आज लगभग पूरे पाकिस्तान में आत्मघाती हमलावर,आतंकी शिविर ,अशिक्षा, औरतों व लड़कियों पर जुल्म आम बात है जो एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है जिसे रोक पाना इस समय मौजूदा प्रधानमंत्री के बस का रोग नहीं रहा.

मुम्बई पर हमला करके अगर् पाकिस्ता ने ये सोचा है कि उसे उसके पुराने मददगारों (अफ़गानिस्तान एवं मुस्लिम देशों) का समर्थन मिलेगा तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल है क्योंकि विश्व भर में मुस्लिम समुदाय पहले ही अपने खोये हुये वजूद को फ़िर से पाने के लिये संघर्षरत है तो दूसरी तरह ये देश ये भी जानते है कि भारत अब एक बहुत बड़ी ताकत बन चुका है और संपूर्ण विश्व भी इस ताकत के साथ कंधे से कंधा मिलाककर खड़ा है.

अतः अब अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को अपने ही गिरेबां में झांककर देखना होगा कि जिस तानाशाही और दमनकारी नीतियों से उसने अपना सिर ऊँचा किया है वही नीतियां तलवार बनकर उसी सिर पर मंडरा रहीं हैं.