बुधवार, 23 मई 2007

बदलते भारत की एक भयावह तस्वीर

वित्तमंत्री से लेकर रेलमंत्री,अमेरिका से लेकर पूरी दुनियां भारत की उन्नति के बडे-बडे झूठे दावे करते हुये अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं,लेकिन् यह सच नहीं कि हम जिस दौर से गुजर रहे हैं शायद अब समय आ गया है कि हमें अपनी सरकार के समक्ष उनकी विफ़लताओं का आईना दिखाना होगा।


बढ्ती बेरोजगारी,अव्यवस्था,पिछ्डापन,छोटे शहरों की अनदेखी, न्याय में अपारदर्शिता,चारों तरफ़ फ़ैली हताशा,विदेशी ताकतों द्वारा गरीब किसानों,और राज्य सरकारों द्वारा विदेशियों को अपने देश की ऊपजाऊ भूमि का अधिग्रहण करने देने से,उनके द्वारा हमारी नदियों के भू-जल् का शोषण,कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था में दखलंदाजी होने से चारों तरफ़ रोष बढ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप एक ऐसे साम्राज्य का धीरे-धीरे देश में फ़ैलाव हो रहा है जिसका विस्तार ही आतंकवाद की संस्क्रति है। इस साम्राज्य का दूसरा नाम है " नक्सलवादा "

आईये एक नजर डालते हैं इसके बढ्ते फ़ैलाव और जन आक्रोश के कारण यह एक चिन्ता का विषय हो गया है इसका फ़ैलाव उत्तरांचल से बढकर केरल तक है। ये वो लोग है जो सिर्फ़ लूटनें और मारनें में विश्वास करते हैं. यह किसी भी सरकार के दबाव में नहीं रहते बल्कि इनके दबाव में सरकारें चलती हैं। उत्तरप्रदेश्,उत्तरांचल,बिहार,मध्य-प्रदेश,झारखन्ड,उडीसा,पं0 बंगाल,छत्तीसगढ,केरल,कर्नाटक,आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों के जंगलों में इसका व्यापक रूप में विस्तार है।
बाहरी दुश्मनों से ज्यादा खतरनाक ये नक्सलवादी अपने देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं किसी भी आदमी का दिन-दहाडे अपहरण,हत्या,लूट्-पाट,यॉ किसी भी सरकारी केन्द्र जैसेः पुलिस थाना,बैंक,रेलवे स्टेशन आदि लूटकर यॉ सरकारी खजाना लूटना इनके लिये दिनच्रर्या का कार्य है.किसी भी व्यापारी से फ़िरौती,धमकी यौ उनके जान-माल का नुक्सान करनें में भी ये नहीं चूकते !
राज्य सरकारों की पुलिस व खुफ़िया तन्त्र भी अपने आपको इनके आगे विवश पाता है क्योंकि ये लोग जनता में भी अपनी छवि अच्छी बनाये रखे हुये हें जनता में भी इनके गुप्तचर फ़ैले हैं।पुलिस भी कुछ नहीं कह सकती क्योंकि यॉ तो वे मार दिये जाते हैं यां फ़िर इनका सहयोग करने में ही अपनी भलाई समझते हैं

ये जो आप ऊपर चित्र में नक्सलियों का साम्राज्य अपने देश के नक्शे में देख रहे हैं उसकी भयावह स्थिति से सोचकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बढते आक्रोश और बेरोजगारी की समस्या,किसानों की भूमि अधिग्रहाण के विषय मे. अगर सरकार की नींद नहीं टूटी तो परिणाम और भी भयानक हों सकते हैं

मंगलवार, 22 मई 2007

अब तबाही दूर नहीं !

कल्पना करें कि अगर एक लाख युध्द सैनिक युध्द के मैदान में हों कि अचानक् तेज गति से बारिश हो जाये यां बिजली कडकने लगे, और फ़िर कुछ देर में एक ऐसे तूफ़ान का सामना करना पडे जिसकी रफ़्तार इतनी तेज हो कि सब कुछ् तबाह हो जाये यां फ़िर एकाएक मौसम सर्द हो जाये तो फ़िर ये सैनिक इन अविश्वस्नीय बदलावों के बीच अपनी जान बचाने के बाद क्या युध्द के लिये जीवित रह पायेंगे? नहीं ! लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा सम्भव है?



तो जवाब है हॉ !



आज अमेरिका को इस बात के लिये तैयार रहना होगा कि अगर वो अपने (हार्प) यानी कि High-frequency Active Auroral Research Program के अनुसंधान को तुरंत नहीं बन्द करता है तो ये मुमकिन है कि आने वाला कल की तस्वीर का पहलू कुछ ज्यादा ही भयानक होगा ।



सन् 1970 में जब अमेरिका और संयुक्त् राष्ट्र संग के दिवंगत् राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़िब्नियूं ब्रिजेंस्की ने अपनी किताब "बिटविन टू ऐज़्" में इस बात का संशय जताया था कि "तकनीक किसी भी देश को लीडर बना सकती है किन्तु प्रक्रति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पूरी मानव जाति के लिये एक डरावना दुःस्वप्न है जिसमें पूरी मानव जाति का अस्तित्व खत्म हो सकता है।



एक प्रख्यात् साइंसदान डॉ रोसेलिक् बर्टल ने यह दावा करते हुये सबको चौंका दिया था कि " अमेरिकी सेना मौसम चक्र को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल के लिये प्रयासरत है जिससे वो इस दुनियां में अपनी बादशाहत स्थापित कर सके।". उनके इस् बयान के बाद संयुक्त् राष्ट्र में आपातकालीन् बैठक 'नवम्बर 2000' में बुलायी गयी जिसमें प्रमुख् मुद्दा था प्रक्रति में बदलाव को समझना और उस तकनीक पर पूरी तरह से नियंऋण् में रखना ।

इसके कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को एक भयंकर चक्रवात का सामना करना पडा जिसमें अमेरिका को बहुत अधिक जानमाल और करोडों के जान-माल का नुक्सान हुआ था । लोगों की नज़र में यह एक प्राक्रतिक आपदा थी लेकिन यह जानकारों की नजर में एक परीक्षण था जिसमें अमेरिका शत्-प्रतीशत् सफ़ल हुआ था. अमेरिका नें खंडन किया कि जिन अनुसधांनों से यह प्रयोग किया गया वो एक कम क्षमता वाले सौर ऊर्ज़ा केन्द हैं।

आईये अब जानते हैं कि आखिर यह(हार्प)अनुसधांन किस तरह से विनाशकारी है। दर-असल यह उच्च क्षमता वाले ऊर्ज़ा सयोंज़न केन्द्र हैं जिसके द्वारा सौर ऊर्ज़ा को केन्द्रित् करके उसे अधिक विकराल रूप में हवा,नमीं,दाब के साथ कहीं भी केन्द्रित् करके प्रेषण किया जा सकता है। यह अत्यधिक गर्मीं भी कर सकता है,तेज बारिश् भी कर सकता है साथ ही यह चक्रवात्,ऑधीं,बिज़ली और भूकम्प का भी उत्पादन कर सकता है। इसकी परिधि मैं आनें पर वायुयान,तेज गति मिसाईल यहॉ तक कि रडार भी नष्ट् हो सकती है।यह कहीं भी सूर्य की प्रचन्ड किरणों को भी विकराल् रूप में फ़ैलाने में सहायक भी है जिससे किसी भी देश अथवा प्रायोजित् स्थान् पर सूखा ला सकता है,पानी की कमीं यॉ अनेक जानलेवा बीमारियों को भी यह पैदा कर सकता है।

हार्प को मिलिट्री का "पेन्डोरा बाक्स" भी कहा जाता है जिसके प्रयोग के चलते ये दुनियां का सबसे खतरनाक हथियार साबित हुआ है

अब लगनें लगा है कि वो दिन दूर नहीं जब अमेरिका जैसे विकसित देश को अपना प्रभुत्व साबित करने के लिये इसका प्रयोग करनें में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। जिसके डर से अनेकों राष्ट्रों को उनकी गुलामी करनी पडेगी या उनके कोपभाजन के रूप में भयानक तबाही झेलनी पडेगी ।

रविवार, 20 मई 2007

शबनम मौसी


"हमारे नेता इस देश की राजनीति को हिजङा बनाने में कोई कसर नहीं छोङ् रहे हैं तो क्या आप किसी हिजङे को अपना नेता नहीं चुन सकते? "

पिछले दिनों जब इस छोटे लेकिन विलक्षण "बुध्दु बक्से" यानी टेलीविजन पर एक कार्यक्रम् देखा तो मेरा मन द्रवित हो उठा. एक ऐसे व्यक्तित्व् के जीवन के दर्द को समझने का एहसास ही काफ़ी नहीं! हमें उसे स्वीकार भी करना होगा.क्योंकि वो समाज का अभिशाप बन चुके "मगंलामुखी" यानी हमारी भाषा में "हिजडा" है
आज से तकरीबन पांच-छः साल पहले मध्यप्रदेश के सुहागपुर के छोटे से सम्भाग "शाहदल" से चुनाव जीतकर इस साधारण किन्तु गजब के जीवट मगंलामुखी "शबनम मौसी" ने जब राजनीति में कदम रखा तो कुछ आश्चर्य हुआ! लेकिन आज जब शाहदल की उन्नति देखकर लगता है कि शायद हमारी सोच गलत हो सकती है लेकिन अगर कोई इस सोच को ही बदल दे तो क्या आश्चर्य?
लड्खडाती राजनीति में अगर कोई बैसाखी बनकर इस देश की सेवा करे तो हमें उसे तिरस्कार् की नहीं गर्व की भावना से सम्मान देना चाहिये,बकौल शबनम मौसी "मैं कोई वेश्या,भिखारी यां रेलगाडी में तमाशा करने वाली नहीं,और ना ही किसी की दया की मोहताज् हूं.लेकिन हम भी इनसान हैं,हमें भी भगवान ने बनाया है,हमने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया,लेकिन जब लोग हमें घ्रणां की भावना से देखते हैं तो मन में एक टीस सी उठती है.भगवान से हमारा कोई कान्ट्रैक्ट नहीं है जो हम इस रूप में हैं,लेकिन अगले ही पल् उत्तेजित् किन्तु बदले हुए तेवर के साथ राजनीति पर पलटवार करते हुये कहती हैं "मैं इन नेताओं के लिये डिस्प्रिन की गोली भी हूं तो मुँह को कड्वी लगने वाली कुनैन भी हूं".
चलिये अब चलते हैं शाहदल की ओर और पूछते हैं वहां के निवासियों से. एक औटो रिक्शा चालक से जब पूछा तो उसका जवाब सुनकर मुझे खुशी हुई की एक आम इन्सान के दर्द को किस तरह शबनम मौसी ने समेटा है" किसी भी नेता ने आज तक हमारे लिये कुछ नहीं किया लेकिन शबनम मौसी ने हमारे लिये जो कुछ भी किया वो तारीफ़ के काबिल है. हमारा छोटा सा शहर और छोटा होता जा रहा था लेकिन उन्होने यहां गांवों में कई स्कूल खुलवाये,पक्की सड्कें बनवयीं,नालियां-खरंजे बनवाये.किसी भी नेता ने आज तक यह नहीं किया और ना ही इस बारे में सोचा तो क्यों न हम किसी हिजडे को अपना नेता चुनें शबनम मौसी ने आज तक किसी से कोई एक रुपया नहीं लिया बल्कि लोगों के दुख्-दर्द को अपने भीतर समेटा है.
वो गरीबों के दुख-दर्द को समझने वाली शबनम मौसी ही हैं जिनके प्रयासों के रूप में शाहदल ने देश के मानचित्र पर अपनी अमिट छाप छोडी है.
फ़िर क्यों हम उन्हें तिरस्करित् करते हैं,जो सच्चे मन से देश की सेवा करना चाहता है ? यह सवाल हमें उन नेताओं से भी करना चाहिये जिन्हे लक्जरी गाडियों और एअर-कन्डीशन युग से बाहर निकलने की फ़ुर्सत नहीं।