गुरुवार, 26 मार्च 2009

चुनाव आचार संहिता क्या है ?

अभी तक तो हम "चुनाव आचार संहिता " के बारे में सुनते ही आये हैं लेकिन क्या हमें पता है कि ये आचार संहिता क्या है और इसके क्या नियम हैं ?

आइये जानते हैं.....

आदर्श आचार संहिता के लागू होते ही मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम में सरकार और प्रशासन पर कई अंकुश लग गए। सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन गए। वे आयोग के मातहत रहकर उसके दिशा-निर्देश पर काम करेंगे।

मुख्यमंत्री या मंत्री अब न तो कोई घोषणा कर सकेंगे, न शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन। सरकारी खर्च से ऐसा आयोजन नहीं होगा, जिससे किसी भी दल विशेष को लाभ पहुँचता हो। राजनीतिक दलों के आचरण और कार्यकलाप पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक होंगे ही। आचार संहिता के लागू होने पर क्या हो सकता है और क्या नहीं, इसके दिलचस्प पहलू एक नजर में।

सामान्य

* कोई दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़े या घृणा फैले।
* राजनीतिक दलों की आलोचना कार्यक्रम व नीतियों तक सीमित हो, न ही व्यक्तिगत।
* धार्मिक स्थानों का उपयोग चुनाव प्रचार के मंच के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
* मत पाने के लिए भ्रष्ट आचरण का उपयोग न करें। जैसे-रिश्वत देना, मतदाताओं को परेशान करना आदि।
* किसी की अनुमति के बिना उसकी दीवार, अहाते या भूमि का उपयोग न करें।
* किसी दल की सभा या जुलूस में बाधा न डालें।
* राजनीतिक दल ऐसी कोई भी अपील जारी नहीं करेंगे, जिससे किसी की धार्मिक या जातीय भावनाएँ आहत होती हों।
राजनीतिक सभा
* सभा के स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को दी जाए।
* दल या अभ्यर्थी पहले ही सुनिश्चित कर लें कि जो स्थान उन्होंने चुना है, वहॉँ निषेधाज्ञा तो लागू नहीं है।
* सभा स्थल में लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति पहले प्राप्त करें।
* सभा के आयोजक विघ्न डालने वालों से निपटने के लिए पुलिस की सहायता करें।
जुलूस
* जुलूस का समय, शुरू होने का स्थान, मार्ग और समाप्ति का समय तय कर सूचना पुलिस को दें।
* जुलूस का इंतजाम ऐसा हो, जिससे यातायात प्रभावित न हो।
* राजनीतिक दलों का एक ही दिन, एक ही रास्ते से जुलूस निकालने का प्रस्ताव हो तो समय को लेकर पहले बात कर लें।
* जुलूस सड़क के दायीं ओर से निकाला जाए।
* जुलूस में ऐसी चीजों का प्रयोग न करें, जिनका दुरुपयोग उत्तेजना के क्षणों में हो सके।
मतदान के दिन
* अधिकृत कार्यकर्ताओं को बिल्ले या पहचान पत्र दें।
* मतदाताओं को दी जाने वाली पर्ची सादे कागज पर हो और उसमें प्रतीक चिह्न, अभ्यर्थी या दल का नाम न हो।
* मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित न की जाए।
* मतदान केन्द्र के पास लगाए जाने वाले कैम्पों में भीड़ न लगाएँ।
* कैम्प साधारण होना चाहिए।
* मतदान के दिन वाहन चलाने पर उसका परमिट प्राप्त करें।
सत्ताधारी दल
* कार्यकलापों में शिकायत का मौका न दें।
* मंत्री शासकीय दौरों के दौरान चुनाव प्रचार के कार्य न करें।
* इस काम में शासकीय मशीनरी तथा कर्मचारियों का इस्तेमाल न करें।
* सरकारी विमान और गाड़ियों का प्रयोग दल के हितों को बढ़ावा देने के लिए न हो।
* हेलीपेड पर एकाधिकार न जताएँ।
* विश्रामगृह, डाक-बंगले या सरकारी आवासों पर एकाधिकार नहीं हो।
* इन स्थानों का प्रयोग प्रचार कार्यालय के लिए नहीं होगा।
* सरकारी धन पर विज्ञापनों के जरिये उपलब्धियाँ नहीं गिनवाएँगे।
* मंत्रियों के शासकीय भ्रमण पर उस स्थिति में गार्ड लगाई जाएगी जब वे सर्किट हाउस में ठहरे हों।
* कैबिनेट की बैठक नहीं करेंगे।
* स्थानांतरण तथा पदस्थापना के प्रकरण आयोग का पूर्व अनुमोदन जरूरी।
ये नहीं करेंगे मुख्यमंत्री-मंत्री
* शासकीय दौरा (अपवाद को छोड़कर)
* विवेकाधीन निधि से अनुदान या स्वीकृति
* परियोजना या योजना की आधारशिला
* सड़क निर्माण या पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराने का आश्वासन
अधिकारियों के लि
* शासकीय सेवक किसी भी अभ्यर्थी के निर्वाचन, मतदाता या गणना एजेंट नहीं बनेंगे।
* मंत्री यदि दौरे के समय निजी आवास पर ठहरते हैं तो अधिकारी बुलाने पर भी वहॉँ नहीं जाएँगे।
* चुनाव कार्य से जाने वाले मंत्रियों के साथ नहीं जाएँगे।
* जिनकी ड्यूटी लगाई गई है, उन्हें छोड़कर सभा या अन्य राजनीतिक आयोजन में शामिल नहीं होंगे।
* राजनीतिक दलों को सभा के लिए स्थान देते समय भेदभाव नहीं करेंगे।
लाउडस्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंध : चुनाव की घोषणा हो जाने से परिणामों की घोषणा तक सभाओं और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह 6 से रात 11 बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह 6 से रात 10 बजे तक इनके उपयोग की अनुमति होगी।


साभार- वेबदुनिया डॉट कॉम

रविवार, 15 मार्च 2009

पहली बार लगा कि मैं भारतीय हूँ

जी हाँ इस वर्तमान में मुझे इसका सुखद एहसास हो ही गया कि मैं एक भारतीय हूँ,लेकिन एक बहुत ही अजीब तरीके से...


कैसे? आइये जानें!

हुआ ये कि मैं अपने मित्र के साथ एक मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर में एक हॉलीवुड यानी अंग्रेजी भाषा की फ़िल्म देखने गया.

बस हम फ़िल्म के पंद्रह मिनट पहले पहुँच गये जो कि मेरे लिये शायद पहली बार गर्व का विषय था, हुआ यूँ कि फ़िल्म के पर्दे पर आने से पहले " जन-गन-मन" का राष्ट्रीय गीत का प्रसारण शुरू हो गया और पल भर में ही सभी उपस्थित जन सावधान मुद्रा में तुरंत खड़े हो गये जो अपने आप में आश्चर्यजनक था.

फ़िल्म का वीडियो सियाचीन वाला था जो कभी पंगेबाज जी ने भी अपने ब्लॉग पर पोस्ट भी किया था, लेकिन पहली बार लगा कि हाँ ये देशभक्ति कि अविरल धारा भले ही मंद-मंद गति से चल रही है पर ये हम सब भारतीयों के मन को कहीं न कहीं भिगो देती है.

मेरा मानना है कि ऐसे प्रयोग जिसके लिये मैं विदेशी मल्टीप्लैक्स वालों को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होने कुछ पल ही सही लेकिन हमारी भारतीयता का एहसास हमें लौटा दिया.

ऐसे प्रयोग बार-बार होवें ऐसी मेरी कामना है क्योंकि भारतीय होने का एहसास हमारे जीने से ज्यादा है.

मैने नीचे उस वीडियो का यू-ट्यूब विडियो दिया है अगर आप इस वीडियो को प्ले करें तो क्रपया सावधान की मुद्रा में खड़े होकर देखें,क्योंकि राष्ट्रगान का सम्मान हमारे देश का सम्मान है.

जय हिंद!


शनिवार, 14 मार्च 2009

लोकतंत्र पर हावी एक अदना सा आई.पी.एल.

पिछले कुछ हफ़्तों से बस दो ही विषय सुनायी दे रहे हैं पहला तो चुनाव और दूसरा आई.पी.एल

अव्वल तो चुनाव के लिये ही मारामारी और काफ़ी हो-हल्ला मचा, नवीन चावला की बर्खास्तगी और नियुक्ति चर्चा का विषय बनीं लेकिन इन सबको एक कामयाब व्यापारी यां ये भी कह सकते हैं कि बाजीगर " ललित मोदी" ने अपनी आई.पी.एल. को जिस तरह हाशिये पर ला खड़ा किया है जिससे देश के राज्यों को चुनाव के परिणामों में कमीं सी लग रही है.

राज्यों को लग रहा है वोट के दिन क्रिकेट का खेल उनका आंकड़ा बिगाढ सकता है, और शायद यह भी सच हो.

अब बात मुद्दे की....क्या इस देश के लोग वोट देने से बेहतर क्रिकेट देखना ज्यादा जरूरी समझते हैं ?

क्या इस देश के लोगों व राज्यों की सरकारों को ललित मोदी जैसे कारोबारियों ने भ्रमजाल में फ़ांस लिया है कि वो इस खेल के आगे कुछ सोच ही नहीं रहे हैं ?

सुरक्षा मुद्दा जैसे कोई देश की सुरक्षा यां प्रतिष्ठा का सवाल है तो ये खेल रद्द क्यों नहीं हो जाता?

संसद यां सांसदों को नक्सलवाद,आतंकवाद,मुम्बई हमले,गरीबी नहीं नजर आ रही है?

लगता है इस देश को भी पाकिस्तान जैसे देश की तरह टालमटोल और झूठे रवैये की आदत हो चली है जिससे वो बस सिर्फ़ अपने आप को झूठी तसल्ली देता है कि हम खुश है!

सबसे बड़ी बात "मीडिया" को न जाने कौन सा सांप सूंघ गया है कि वो भी बस सच दिखाने के नाम पर सचिन और सहवाग के रिकार्ड को दिखाता रहता है,

अभी भी भुज,बिहार,निठारी,झारखंड,असम जैसे कई मुद्दे और विषय अपनी-अपनी जमीन की तलाश में हैं लेकिन इस मीडिया को खानों की लड़ाइयों,क्रिकेट चीयर-लीडर्स,सांप जैसे विषयों से फ़ुर्सत नहीं मिल रही है.

तो अब लग रहा है कि देश के भविष्य को संवारने का काम भी शायद ये क्रिकेट के व्यापारी ही करने वाले हैं, क्योंकि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री ने ये तक नहीं कहा कि ये खेल देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनाव से बड़े हो गयें है इस खेल का बहिष्कार हो ताकि देशवासियों को अपनी ताकत का एहसास हो.

जय हो! जय हो!

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

योग गुरू बाबा रामदेव ने कभी इस ओर भी ध्यान दिया है?

योग के ढोंग करके और कोला कम्पनियों को पानी पी-पीकर कोसने वाले बाबा रामदेव ने उन कम्पनियों की नाक में नकेल डाल रखी है, और अब शायद वो अपना देसी कोला का भी व्यापार चालू करने वाले हैं यानी दुकानदारी चोखी ही होगी! लेकिन....

लेकिन बाबा रामदेव यह भी जानते हैं कि जब तक पब्लिसिटी में रहना है ऐसे ही मुद्दे उछालने पड़ेंगे सो अब बात ऑस्कर की हो यां पेप्सी कोला की रामदेव बाबा को तो पब्लिसिटी ही चाहिये!

लेकिन क्या बाबा रामदेव इस बात के लिये मुहिम छेड़ सकते हैं कि एक लीटर की साफ़ पानी की बोतल जो पहले से ही मनमाने रूप से 10 रू. में बिक रही थी अब काफ़ी महीनों से 12 रू. के अनाव्श्यक रूप में बिक रही है, रेल-मंत्री लालू प्रसाद के आव्हान के बाद 1 रू में पानी तो बिकने लगा लेकिन क्या रेलवे स्टेशनों पर ही लोग प्यासे घूमते हैं और क्या ये भी गारंटी है कि वो पानी हर आदमी की पहुँच में होता है?

कहानी का सीधा सार यह है कि बाबा रामदेव को कुछ भी माया-मोह और अपनी दुकानदारी के अलावा कुछ दिखायी देता है तो वो इस समस्या पर ध्यान दें

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

क्या होली ऐसी होती है?

इन तस्वीरों में बयां दर्द आपको होली मनाने के लिये मजबूर कर रहा है? नहीं ना क्योंकि ये लोग खून की होली खेल चुके हैं अब क्या होली खेलने के लिये कुछ बचा है ?