बुधवार, 30 अप्रैल 2008

क्या बुंदेलखंड और बाकी भारत के पानी की समस्या का ये हल हो सकता है?

लगभग एक साल पहले जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी तो इस पोस्ट को एक भयावह रूप में लिखा था क्योंकि ये वाकई में भयावह स्थिति का अनुमान था लेकिन आज मैनें फ़िर से अपने आपको उस स्थान पर रखा जहाँ से ये कहानी शुरू हुयी है........

अब तबाही दूर नहीं ! नाम से जब ये पोस्ट लिखी तो मन में अजीबो-गरीब तरीके के ख्याल आने लगे लेकिन अब यही ख्याल मुझे "नेगेटिव" सोच से पोजिटिव की ओर जाने को मजबूर कर रहा है कि जिस हार्प (High-frequency Active Auroral Research Program) को मैंने मानव की एक विनाशकारी भूल कहा था क्या वो एक वरदान भी बन सकती है?

आज अपना देश पानी के घोर संकट से जूझ रहा है और बुंदेलखंड एवं राजस्थान इसके जीते-जागते उदाहरण हैं, और ये समस्या दिन ब दिन बढती ही जा रही है. मुझे तो लग रहा है कि ये अनुसंधान इस दिशा के लिये भी कार्य कर सकता है शायद इसका उपयोग हम एक वरदान के रूप में भी कर सकते हैं क्योंकि यही तो उसका काम है.

क्रत्रिम वर्षा,बाढ,तूफ़ान,चक्रवात अगर कहीं नुकसानदेह हैं तो शायद ये अपने उन इलाकों के लिये वरदान साबित हो जहाँ पानी और हवा बिल्कुल नहीं हैं मतलब जीवन के लक्षण खत्म हो रहे हों.

कहने को तो सुनामी के पीछे भी शायद इन मौसम अनुसंधानों और उनमें परिवर्तन का ये भी कारण हो सकते हैं लेकिन क्या ये उचित नहीं होगा कि हम इनका उपयोग मानवता की भलाई में करें.


कुछ वीडियोज दे रहा हूँ ताकि इसकी भयावहता और मौसम(क्लाइमेट) परिवर्तन के बारे में आप जान सकें.


हार्प




हार्प कार्य करते हुये







मौसम परिवर्तन करते हुये






नोट: इस अनुसंधान को समझने में मैं केवल खोज और पढ रहा हूँ लेकिन इसका मतलब ये न निकाला जाये कि मैं इसे जानता हूँ,मैं तो केवल इसके फ़ायदे -नुकसान और इसके कारण् आ रहे बदलाव देख रहा हूँ.

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

अपहरण उधोगः कुछ नियम कानून भी हैं इस धंधे में

अब चौंकने की बारी आप की है क्योंकि पहले-पहल जब इस बारे में मैं पिछले कुछ महीनों के अलग-अलग अखबार निकाल रहा था तो कुछ बिंदु यानी पॉइंट मुझे मिले जो आपको चौकांते भी हैं कि कैसे ये धंधा चलता है और क्या-क्या उसूल हैं इस धंधे में........

सबसे पहले ये जान ले कि ये धंधा क्या है और कैसे ये फ़लीभूत हो रहा है?

पिछले लगभग एक दशक से जिस तेजी से जनसंख्या बढी है उसी तेजी से समाज में अमीरी-गरीबी का भी दायरा फ़ैलता जा रहा है.
अमीर और अमीर होते जा रहे हैं एवं गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं तो जाहिर है इनमें अशिक्षा के अभाव और बुनियादी ढांचे में आये लोच के कारण समाज के इस बहुत बड़े तबके में आक्रोश,भय,लालच और जल्दी पैसा कमाने के लिये कोई रास्ता नहीं बचा है

अब वो अपनी सारी कुंठायें और दोष इन अमीरों के ऊपर निकालते रहे (अमीरों के द्वारा बेहताशा धन में बढोत्तरी और अनाप-शनाप खर्च उन्हे अपना ही दुश्मन बनाने लगा है) क्योंकि वो लोग मानते हैं कि ये अमीर लोग बिना किसी काबिलियत के होते हैं और जिसे पैसा मिलना चाहिये उसे वो नहीं मिलता.

इस पहलू को एक और वर्ग भी नजर गड़ाये देखता है और वो वर्ग भी एकदम इसके उलट है क्योंकि इस वर्ग में शामिल हैं नये-नये बेरोजगार नौजवान,नेता,कानून के रखवाले यानी पुलिस और बड़े-बड़े बदमाश जो इन लोगों के ही संरक्षण में पलते हैं

अब बात धंधे के उसूलों की----बहुत ही ईमानदारी से इन उसूलों का पालन किया जाता रहा है लेकिन इसका पालन सिर्फ़ वो ही लोग करते हैंजो इसके मुख्य कर्ता-धर्ता होते हैं. निचले स्तर के सहयोगी इन उसूलों का किस हद तक पालन करते हैं ये आप अभी जान जायेंगें.

उसूल नं0 1- पहला उसूल और शायद आखिरी उसूल भी है शायद ये है कि जिसका एक बार अपहरण हुआ है और वो फ़िरौती की रकम देकर छूटता है तो फ़िर से जीवन में उसका दोबारा अपहरण नही होता ( मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि अभी तक मैने एक ही व्यक्ति का दो यां अधिक बार अपहरण होते नहीं सुना )शायद ये उनकी लाइफ़टाइम गारंटी भी होती है.

नं0 दो---इस काम के लिये उन्ही लोगों को मोहरा बनाया जाता है जो बेरोजगार हों यां जरूरतमंद हों,उन्हे पकड़ (यहाँ पकड़ का मतलब शिकार यां जिसका अपहरण होना होता है इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है,कहीं माल,सैम्पल यां बकरा भी चलन में है) को ढूंढने,उस पर निगाह रखने फ़िर उसका अपहरण करवाने तक उसका लगातार पीछा करना और अपने आकाओं से संपर्क बनाये रखना आदि ये सब काम होता है मतलब ये कि ये काम अब बतौर ठेके यां फ़्रेंचाइजी के तौर पर भी फ़लने-फ़ूलने लगा है.

नं0 तीन--- कभी कभी राजनैतिक-मीडिया-जनता के दबाव में पकड़ को छुड़ाना भारी भी पड़ जाता है, अपहरणकर्ता कभी यां तो उस पकड़ को मार डालते हैं यां फ़िर उसे किसी सड़क किनारे छोड़ जाते हैं, हाँ कभी-कभी एक आध अपने ही साथी को भी मरवा दिया जाता है यां उस बेचारे की भी बलि ले ली जाती है जिसने चन्द रूपयों के लिये पकड़ को उनके हवाले किया था, (जाहिर है इस काम में प्रशासन,राजनेताओं और आजकाल इस काम में आगे आ रहे उधोगपतियों को सब मालूम होता है, लेकिन वो हमेशा जुर्म और कानून की जद से बाहर होते हैं) उन लोगों को मुख्य साजिशकर्ता बताकर ये लौग साफ़तौर पर बच जाते हैं.

नं0 4---कभी-कभी उस पकड़ को पहले से ही धमकी दे दी जाती है,जिससे ये जोखिम उठाने की जरूरत भी नहीं होती है, कभी खुद लोग अपने ही लोगों को पकड़ बनवा देते हैं तो कभी अपने ही लोग पैसे के लिये ये काम करते हैं.

नं0 5--- ये भी एक अजीब सी बात है कि उनके कार्यक्षेत्र में कोई दूसरा दखल नहीं देता है और यदि देता भी है तो उसे भी हिस्सा देना होता है, नीचे से लेकर ऊपर बैठे सभी आला अधिकारियों को इस बात पूरा-पूरा इल्म होता है क्योंकि हिस्सा सबका बराबर बंटता है.
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तेजी से बढते जा रहे इस अपहरण के धंधे नें उधोग का रूप ले लिया है जो काफ़ी चिंता का विषय है, भाई लोगों मैं ये नहीं कह रहा कि आप लोग सिस्टम को बदलने के लिये तैयार रहो बल्कि ये कहना चाहता हूँ कि इस पकड़ा-पकड़ी के खेल से जितना दूर रहोगे उतना ही जिन्दगी सुकून से कटेगी :)

शनिवार, 19 अप्रैल 2008

युवा- एक नया प्रयास

कभी-कभी अनजाने में ही आपको अपनी मंजिल और ध्येय का मार्ग मिल जाता है, बस ! जरूरत होती है उस मार्ग को पहचानना और उस मंजिल को प्राप्त करना.

लेकिन कभी-कभी उसके विपरीत कोई खुद आकर आपको आपका रास्ता दे और जो विपरीत दिशा में चलता हो...तो आपके लिये ये सौभाग्य की ही बात होगी ना!


जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ अपने पंगेबाज दादा उर्फ़ बाबा फ़रीदी उर्फ़ अरून जी की

करीब दो दिन पहले उनसे फ़ोन पर बातचीत हो रही थी बातचीत का विषय अलग था लेकिन उन्होने एक बात अंत में मुझे कही कि "कमलेश आप तो आई.टी. के जानकार हैं और हमारे जैसे लोगों के लिये ये सब बेकार है तो क्यों नहीं आप अपने कार्यक्षेत्र के बारे में लिखते हैं?

और आप यदि आगे आयेंगे तो कितने लोगों का भला होगा ये भी हो सकता है कि आपके साथ और बहुत से लोग भी जुड़ जायें जो इस दिशा में कार्य करने की इच्छा रखते हों लेकिन उन्होने अब तक कुछ किया न हो.

अगर हिन्दी में अंग्रेजी क्म्प्यूटर की तकनीक को सिखाने की हिम्मत करोगे तो शायद हम जैसे लोगों का ही भला हो जाये"

ये बातें जब अरून जी ने मुझसे कहीं तो मुझे अपने ऊपर शर्म भी आ रही थी और मुझे एक नयी मंजिल भी दिखायी दे रही थी, मुझे लग रहा है कि मेरा असली ध्येय तो यही है तो क्यों न मैं इसे कार्यान्वित करके पूरी दुनिया और खासकर अपने भारत के बेरोजगार और कम्प्यूटर अक्षम लोगों की थोड़ी सी मदद कर सकूं.

तो आज से ही इसे मैने मूर्त रूप देने की कोशिश भर की है सुझाव और सदस्यतायें आमंत्रित हैं,

यदि आप अपने कार्यक्षेत्र जैसे सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट,हार्डवेयर,नेटवर्किंग और किसी प्रोफ़ेशन जैसे पब्लिशिंग,एकाउंटिंग जैसे क्षेत्रों में भी सिध्दहस्त हैं तो इस ब्लॉग के सदस्य जरूर बनिये

वैसे इसब्लॉग का नाम है युवा
और इसका यू आर एल है: http://i-yuva.blogspot.com

मेरा सभी शीर्ष ब्लॉग एग्रीग्रेटरों से अनुरोध है कि वो मेरे इस प्रयास को अपनी वेबसाइट में जगह देंगें

नारद,ब्लॉगवाणी,चिट्ठाजगत और हिन्दीब्लॉग्स.कॉम से खास अनुरोध

एक बात औरः केवल हिन्दी में लिखने वालों को वरीयता दी जायेगी क्योंकि हम तकनीक को हिन्दी में बांटना चाहते है, अंग्रेजी के लिये पूरा इंटरनेट पड़ा है.

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

अविनाश ! आपको आईना दिखा रहा हूँ, हो सके तो शर्म करना

अभी तक तो लोगों ने समझा था कि अविनाश कुछ हद तक महत्वाकांक्षी हैं लेकिन अब तो लग रहा है कि उन्होने उस सीमा-रेखा को भी लांघ दिया है जहाँ से इंसान का पतन शुरू हो जाता है.

पहले-पहल आप ही सभी लोगों को लेकर साथ में मुहल्ले का निर्माण करना, फ़िर जिस थाली(ब्लॉग एग्रीग्रेटरों) का खाया उसी में छेद करना.

कुछ विवादित होने का ठप्पा लगा तो खुश होकर अति उत्साह में ब्लॉग जगत के दिग्गजों को नारद के समय अपमानित किया.

हो-हल्ला मचा तो मिमिया कर कुछ समय तक खामोश रहे, अब जबकि ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत ने सहारा दिया तो फ़िर से वही विवाद, कुतर्क,गाजा(ये विषय लगभग 99% भारतीयों को पता ही नहीं), भड़ास से जान बूझकर लड़ाई को खींचना.

फ़िर से मिमिया कर चुप हो जाना क्योंकि हमेशा विरोध में शेर ही सामने पाये गये कभी किसी गीदड़ से टकराहट नहीं हुयी,

अब खीज अपनी ही साथियों पर उतारी जाने लगी क्योंकि वो लोग भी अच्छा और मौलिक लिख रहे थे, क्योंकि कभी आपको मौलिक लिखे नहीं देखा कभी किसी की गजल,किसी सूफ़ी संत का गाना,उधार के लेख ही लिखे पाया.
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ये बात तो माननी पड़ेगी कि आपको टाईटल बनाने में महारत हासिल है, तो क्यों न आप किसी साबुन-तेल बनाने वाली किसी कंपनी में ज्वाइन करते? आपको वहाँ अच्छे पैसे मिल सकते हैं भाई!
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बेटियों का ब्लॉग-- जानते हैं इस ब्लॉग को लेकर कितने लोगों के मन में उत्साह भर गया था और आज भी वो अपना सारा प्यार और दुलार लेख के माध्यम से इस ब्लॉग पर उतारना चाहते हैं? लेकिन आप !
आपने वहाँ भी किसी के लिये उमीद नहीं छोड़ी, वाकई में आप जैसा महत्वाकांक्षी और बेकार इंसान नहीं देखा जिसने अपने आपको बनाने के लिये अपने ही भाई लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया है

आपने जीतू भाई (जितेंद्र- नारद के कर्ता-धर्ता) जी का अपमान किया है यां ये भी कह सकते हैं कि अपने अपमान का बदला लिया है!

जो भी हो फ़िलहाल तो ब्लॉगवाणी,चिट्ठाजगत,नारद और हिन्दीब्लॉग्स.कॉम जैसे महान एग्रीग्रेटर्स जिन्होने हम जैसे अनजान लोगों को हिन्दी में लिखने को प्रेरित किया, आप उन्ही महान लोगों की प्रतिष्ठा को ताक पर रखकर अपनी मनमर्जी चला रहे हैं जो शायद इस हिन्दी चिट्ठा जगत को कतई बर्दाश्त नहीं होगी.

अगर आपमें वाकई इंसानियत थोड़ी बहुत बची हुयी है तो आप सार्वजनिक रूप में जीतू भाई से माफ़ी मांग लें(हम जैसे लोगों की गिनती नहीं है) तो शायद आप अपने अस्तित्व को बचा सकते हैं वरना मुझे लग रहा है कि आपके ब्लॉग्स का कहीं सार्वजनिक रूप से बहिष्कार न हो जाये


आपका प्रिय
कमलेश मदान

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

अविनाश बाबू ! ये तो होना ही था

आज जनसत्ता के कार्यकारी संपादक श्री ओम थानवी का जो पत्र आपने सार्वजनिक किया है आपकी व्याकुलता और हताशा उससे जाहिर हो रही है !

जाहिर है साफ़ तौर पर हर जगह आपकी मठाधीशी और आपका मॉडरेशन तो चलने से रहा! ये स्वतंत्रता यां ये कहिये कि ये जिद आप अपने ब्लॉग पर ही कर सकते हैं किसी अखबार यां किसी निजी लेखन के क्षेत्र में तो आप एसा करने से रहे क्योंकि उनको अपना अखबार भी तो चलाना है भाया!

वैसे एक बात और जब आप दूसरों के लिखे पर कैंची बेफ़िक्र होकर चला सकते हैं तो अपने लेख पर होती कटिंग के लिये इतनी चीख पुकार क्यों? वो भी तो लोग हैं जिनको आपने अपने मोहल्ले में जगह देकर उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया(उनमें से मैं भी हूँ ये सच मैं भी स्वीकारता हूँ) और जब उन्होने आवाज उठाई तो मॉडरेशन का नाम लेकर अपनी सफ़ाई पेश की थी

प्रिय बन्धु,
मेरी आपको निजी सलाह है कि सर्वप्रिय बनने के लिये सैकड़ों त्याग करने पड़ते हैं ! दूसरो के कंधों पर पैर रखकर आगे निकलने से सफ़लता तो मिलती है लेकिन जब कभी वो कंधे अपनी जगह से हट जाते हैं तो औंधे मुँह गिरने का स्वाद मिलता है, जो शायद अभी-अभी मिला है

तो बंधु लोगों को जोड़ो, तोड़ो नहीं सफ़लता-प्रसिध्दि-सर्वव्यापकता अपने आप आपके पास चलकर आयेगी

आपका प्रिय
कमलेश मदान

(कुछ चमचा टाइप लोग भी अभी चीख पुकार कर रहे हैं उनसे आपको आनंद तो मिल सकता है लेकिन आत्म संतुष्टि नहीं!)

गुरुवार, 3 अप्रैल 2008

मार्च माह का अवलोकन: अपना-अपना राग-भाग-एक

अपना-अपना राग -- जी हाँ ये ही शीर्षक इस माह के अवलोकन के लिये काफ़ी था क्योंकि इस मार्च माह में काफ़ी नये चेहरे और ब्लॉग्स देखने को मिले तो वहीं दूसरी ओर सभी ब्लॉगरो नें किसी विवाद को मुद्दा बनाये बगैर अपना राग अलापे रखा!

अब ये भी कह सकते है कि होली की खुमारी और फ़ाल्गुन की सौंधी खुशबू सभी लोगों के दिलो-दिमाग पर छायी हुयी थी खैर चलिये अब आगे चलें.....

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सबसे पहले इस माह की एक दुखद खबर से इस ब्लॉगजत को स्तब्ध कर दिया है वो खबर है अजय रोहिल्ला का हमारे बीच न होना! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे !

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नोट: इस बार का माह अवलोकन नये और समर्पित ब्लॉगरों,लेखकों के लिये है जिनका स्वागत है इस ब्लॉगजगत की दुनिया में, क्योंकि हिन्दी का लेखन-मोह उन्हें स्वतः इस चिट्ठाजगत में खींच लाया है और सबसे बड़ी खुशी की बात है वो अपनी बात आगे रखकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं,मैं ये नहीं कहता कि हमारे पुराने और वरिष्ठ लेखक इस अवलोकन में नहीं हैं,बल्कि ये कहना चाहूँगा कि हम सभी लोगों का प्रोत्साहन इन नवागत लेखकों का उत्साहवर्धन करता रहेगा जो जरूरी भी है

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शुरूआत हमारी सबसे वरिष्ठ अनीता कुमार जी की लिखी पोस्ट चक दे रेलवे लिखी जो फ़रवरी के बाद मार्च माह की अच्छी शुरूआत लेकर आयी क्योंकि उसके पहले कुछ घंटे तक मोहल्ला-भड़ास का शीतयुद्ध खत्म हुआ था और फ़ायर ब्रिगेड अपना-अपना-अपना काम कर रही थी,

अब आगे....

मार्च माह की ताजगी और स्फ़ूर्ति लिये कुछ नये चेहरे हमारे सामने आये हैं जिनसे इस ब्लॉगजगत में नयी ऊर्जा का संचार प्रतीत हो रहा है! आइये कुछ नजर भर देखें इनको..........सबसे पहले मारवाड़ी समाज के हाथ धोकर पड़े हमारे शम्भूनाथ जी
के ब्लॉग पर चलते हैं,उनके शोध के लिये उन्हे मारवाड़ी समाज रक्षक का नोबेल भी मिल सकता है :D





बहुत कम लेकिन अच्छा लिखने वाले पल्लव चाय-चिंतन करते नजर आते हैं तो मन में खुशी हो जाती है कि चलो भारत भर में सबसे ज्यादा पीने वाले पेय चाय के साथ कोई नयी बात पढने को मिलेगी! चाय के समय ये गिरिराज जी
का ऑफ़-मूड क्यों हो रहा है, समझ नहीं आता. चलो उनका मूड ठीक करते हैं कुछ कनफ़ुसिया कर ! क्या कहा कनफ़ुसिया? जी हाँ रमेंद्र जी
धीरे से कनफ़ुसिया रहे हैं आप भी कनफ़ुसिया लीजिये साहब!



इस माह कुछ नयी बल्कि ये कहना चाहूँगा कि बहुत सी नयी महिला ब्लॉगर्स ने हिन्दी चिट्ठाजगत में दस्तक दी है जो ब्लॉगजगत मे उनके बढते दायरे को दर्शाती है..

रश्मि जी < रूप-अरूप >



स्वाती जी
< स्वाती >



शोभा जी
< अनुभव >


रक्षंदा खान जी
< pretty women >नाम के अनुरूप खूबसूरत भी हैं


लोकरंग बिखेरती प्रतिमा जी
भी हैं तो कहीं दूसरी ओर रंगबिरंगी टोपी लगाये अपनी लहरों में खोई पूजा जी
भी हैं.
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इस माह की प्रमुख घटनायें:-- 1. इस माह में नारद और भड़ास का मिलन कुछ चटपटा लगा, अब बेंगाणी भाई और यशवंत भाई का मिलन इस माह की एक्सक्लूसिव खबरों में ही गिना जायेगा ना!

2. दूसरी बड़ी घटनाओं में एक यह कि इस माह पंगेबाज भाई सहब कुछ होली की मस्ती में ज्यादा पगला गये हैं, कभी तो वो अपने आपको हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर(पंगेबाज) बना देते हैं तो कभी अपने आप को गिनीज बुक का प्रशस्ति पत्र देकर बच्चों जैसे मन बहला लेते हैं लेकिन पंगेबाजियां छूटे नहीं छूटती! भाई पंगेबाज जो ठहरे

भाई शिव जी तो बेचारे दुर्योधन के पीछे नहा-धोकर ही लग लिये हैं, बिना कॉपीराइट करवाये दुर्योधन अपनी डायरी लिखकर आज पछता रहा होगा क्योंकिं जितने पन्ने उस डायरी में हैं मेरा ये अनुमान है उतने पन्नों की रॉयल्टी से ही एक और हस्तिनापुर बन सकता था! बेकार में एक महाभारत हुआ

3. उड़नतश्तरी आगरा से होकर गुजर गयी ये एक अदभुत घटना थी मुझ जैसे एक छोटे से ब्लॉगर के लिये क्योंकि समीरलाल जी को पकड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं
तो वहीं दूसरी ओर यशवंत भाई अहमदाबाद,मुम्बई और दिल्ली में बिना उड़नतश्तरी के हवाई-जहाज में उड़ रहे थे जानकर अच्छा लगा.

बस! अब और आगे नहीं लिखा जा रहा है काफ़ी लम्बी पोस्ट हो जायेगी, इसके लिये मुझे इसके कई भाग बनाने पड़ रहे हैं तो आप कुछ भागों में इस अवलोकन को देखेंगें

मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

क्या ये अपने आलोक पुराणिक जी हैं?जो आज बी.बी.सी. पर चमक रहे हैं

आज बी.बी.सी. न्यूज डॉट कॉम पर एक लेख देखा पहले तो उस लेख को पढ लिया फ़िर अचानक उस लेख के लेखक की तस्वीर देखी तो कुछ दुविधा में आ गया कि ये अपने आलोक पुराणिक जी ही हैं ना ?

ये तो मुझे पता है कि वो आर्थिक विशेषज्ञ हैं लेकिन उनका चेहरा अलग ही दिख रहा है, थोड़ा कन्फ़्यूजिया गया हूँ! आप सभी लोग मदद करें और बतायें कि ये आलोक जी हैं ना




उनका लेख इस लिंक पर है