गुरुवार, 30 अगस्त 2007

तकनीकः माइक्रोसॉफ़्ट ने निकाली नयी तकनीक (वन केयर )

नोटः ये खबर हमारी तेज निगाहों का परिणाम है कहीं से चुरायी हुई नहीं है.

क्या पिछले कुछ दिनों से हॉटमेल यूज करने वालों को डिस्प्ले बार में नया दिखायी दिया? नहीं यां आपने गौर नहीं किया है.इसमें माइक्रोसॉफ़्ट की >होम,हॉटमेल,स्पेसेस और वन केयर हैं.










वन केयर! जी हाँ ये माइक्रोसॉफ़्ट की एक उच्चस्तरीय तकनीक है किसका भविष्य में यां शायद अब भी कोई सानी नहीं होगा. मैं ये मजाक नहीं हकीकत कह रहा हूँ.

अब इतनी देर से पका रहा हूँ तो चलो बता ही देते हैं, दर-असल में ये मैक्रोसॉफ़्ट का ऑनलाइन पी.सी. स्कैनर है जो उच्चस्तरीय है. ये कुछ ही समय में आपके सिस्टम को स्कैन करके उसे वायरस फ़्री कर देता है, है न कमाल की बात.

ये सब माइक्रोसॉफ़्ट फ़्री में दे रहा है. अब लगता है कि संचार जगत में इससे अच्छी बात क्या होगी कि एन्टी-वायरस खुद घर चलकर आ रहा है

इसमें प्रोटेक्शन, डिस्क क्लीन्-अप और ट्यून-अप सुविधायें अलग-अलग दी हुई हैं

1. प्रोटेक्शनः ये आपकी सिस्टम की सुरक्षा के लिये है (किसी कारणवश न चले तो शायद कोई एन्टी-वायरस आपके सिस्टम में है यां तकनीकी समस्या है)
2. क्लीन अपः ये आपके सिस्टम में मौजूद बेकार के कचरे को हटाता है यकीन मानिये ये कारगर है
3. ट्यून-अपः ये सिस्टम की हार्ड-डिस्क को फ़्रैगमेन्ट करता है,यानी उसे सही रूप मे परिवर्तित करके तेज गति से चलने लायक करता है, ये भी कारगर है.

तो भाई लोगों अब एन्टी-वायरस के खरीदनें के पैसे बच गये. ना!

बुधवार, 29 अगस्त 2007

उफ़! मेरे आगरा को किसकी नजर लग गयी?

आज सुबह-सुबह मेरा आगरा शहर तनाव में आ गया,क्योंकि शहर की फ़िजां खराब हो चुकी थी.
चार लोगों की मौत के बाद जब हंगामा होते-होते पहले तोड्फ़ोड् फ़िर लूटपाट और फ़िर दंगे के रूप मे हो लिया तो शहर दहशत में आ गया.

पुलिस और प्रशासन बेजान बने रहे और जब तमाशा खत्म होने लगा तो कर्यवाही करने के लिये कुछ बचा ही नहीं था.

हमारे "हिन्दुस्तान" अखबार के फ़ोटोग्राफ़र्स {डी.के.शर्मा और रनविजय सिंह) ने कुछ तस्वीरें हमें दी है तकि मैं अपने आगरा का दर्द बाँट सकूँ.

एक के बाद एक करके सोलह ट्रकों को आग लगा दी गयी












जिसको जो मिला वो उसी ने लूट लिया















बस बचा तो अराजकता का माहौल




ब्लॉग पेज को कैसे सजायें : भाग 1

पहला कन्टेंट
मरकी स्क्रौल
मरकी स्क्रौल ये भी बढिया है आजमाकर देखेंगें ?

इसे आप टेम्पलेट ऑप्शन में जाकर एड-ए-पेज-एलिमेंट में एच.टी.एम.एल/जावा स्क्रिप्ट ऑप्शन में जाकर इन कोड्स को पेस्ट कर दें.

सुविधानुसार कहीं यां ऊपर नीचे रख सकते है










नीचे दिख रहे कोड को पेस्ट करें यां हूबहू वैसा ही लिखें. जहाँ >TEXT< लिखा है वहाँ अपना संदेश लिखें
अपना संदेश लिखना ना भूलें!
हर स्टाइल के लिये अलग अलग कोड हैं

सोमवार, 27 अगस्त 2007

सभी ब्लॉगरों के लिये तोहफ़ा मेरी तरफ़् से

आज से मैं अपने तकनीकी पक्ष को भी अपने साथियों के बीच शेयर करूंगा,क्योंकि अगर सुविधायें हैं तो उसका इस्तेमाल भी होना चाहिये जिससे भविष्य में मेरे साथियों को अपना ब्लॉगपेज महत्वपूर्ण लगे.

ये सभी गैजेट्स उपयोगी है और इसकी श्रेष्ठता सिध्द भी हो चुकी लेकिन अब हमें इसका हिन्दी चिट्ठाकारी में भी प्रयोग करेंगें ये मेरा मानना है.

ये करीब साढे तेरह हजार के करीब गैजेट्स हैं जो किसी के लिये भी काफ़ी हैं
ये सभी काम के गैजेट्स है जैसे ऑनलाइन टी.वी.,यू-ट्यूब,गूगलटॉक,चैटिंग,आई.पी. नॉउ याहू मैसेन्जर,भागवत गीता,गेम्स,गूगल अर्थ आदि........
इस लिंक पर क्लिक करें
http://www.google.com/ig/directory?synd=open

रविवार, 26 अगस्त 2007

भगदड़् का पहला शिकार

अभी मैने ठीक से पाँव पसारे ही नहीं थे कि मुझे अपने भगदड़् वाले अंदाज मे लिखने को बाध्य होना पडा. क्योंकि हमें एक मुद्दा मिल गया था और हम उसका श्रीगणेश करना चाहते थे सो हमने भी तपाक से ढंढोरची जी की पोस्ट को लपक लिया और फ़ेंक दिया भगदड़् में अब आगे क्या होगा पता नहीं!

तो आईये सीधे चलते है लाइव टेलीकास्ट में
यहाँ नीचे लिंक दिया हुआ है
http://bhagdar.blogspot.com/2007/08/blog-post_5530.html

भगदड् : अब हम भी जुड् गये हैं


आज किसी अनामदास ने हमें इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखने के लिये आमंत्रित किया तो हमें लगा शायद ये नाम और ब्लॉग हम जैसे लोगों के लिये ही बनाया हुआ है जो किसी भी विवाद को तब तक जारी रख सकते है जब तक उसका उचित हल ना निकले।

साथ ही साथ हमारे साथियों ने भी इसे हाथों-हाथ लिया है क्योंकि वो सभी लोग भी एक अलग सार्थक मंच चाहते थे।

अब ये मंच आगे क्या गुल खिलायेगा ये आगे चलने पर ही पता चलेगा।

ये रहा भगदड् का लिंक

मेरी शुभकामनायें
कमलेश मदान

शनिवार, 25 अगस्त 2007

"हिन्दी चिट्ठाकारी दुनियां में आपका स्वागत है"

ये शब्द सुनने को भले ही अच्छे लगते हैं लेकिन हिन्दी के शीर्ष फ़ीड-एग्रीग्रेटरों जैसे- नारद.अक्षरग्राम,चिट्ठाजगत और ब्लॉगवांणी,याहू 360 को अपने वेबसाईटस् को हिट करने और उसकी झूठी रैंकिंग को प्रदर्षित करने के अलावा और बाकी कार्य का समय ही नहीं है.

हो सकता है मेरी ये बातें सभी लोगों को बुरी लग रहीं हैं लेकिन क्या कभी भी इन्होने सोचा है कि बेकार के वाद्-विवाद् को आगे बढाने से यां अश्लीलतपन लिये भौंडे लेख जिसे हमारे कुछ बुजुर्ग लेखक आज का सच दिखाकर खुश हो रहे हैं क्या वो अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते हैं.

1.कल मसीवजी (क्षमा चाहता हूँ नाम देने के लिये ) ने एक लेख लिखा था कि हिन्दी ब्लॉगरों को नौकरी कब मिलेगी?
मेरा जवाब है अगर लेखन का स्तर ऊँचा होगा और ओछेपन से परे होगा तो नौकरी क्या हिन्दी ब्लॉगजगत खुद एक व्यवसाय होगा।

2.अहमदाबाद के एक महाशय हैं जो खुद एक शिक्षक हैं लेकिन उनकी शिक्षा केवल रतिक्रीडायें और नारी शरीर के व्यख्यान पर ही टिक जाती हैं ये हैं डॉ सुभाष भदौरिया जो आजकल विवाद बने हुये हैं मेरे पिछले चिट्ठे पर उन्होने टिप्पणी की थी कि क्या मुझे उनके द्वारा लिखी गयी कवितायें नहीं दिखती?

उनको भी मेरा जवाब है कि आप वरिष्ठ हैं लेकिन जो आप शिक्षा अपने विधार्थियों को देते हैं क्या वो इसी तरह की होती है? क्या आपको सरकार ने यौन-शिक्षा के लिये फ़्री लाइसेंस दिया हुआ है? यां आप किसी मानसिक प्रवत्ति के शिकार हैं जो औरतो,लड्कियों के शरीर को अपनी अभिव्यक्ति द्वारा ब्लॉगजगत में तहलका मचान चहते हैं.
आपको मेरी ये सलाह है कि पहले आप यह तय कर लें कि हिन्दी ब्लॉगजत जो हिन्दी के प्रचार प्रसार में निरंतर प्रयासरत है वो आपके इन नापाक कदमों को आगे नहीं बढने नहीं देगा अतएव् आप किसी अन्ग्रेजी ब्लॉग्स यां किसी अश्लील वेबसाईट यां किसी जासूसी नॉवल के लिखें आप जरूर सफ़ल होंगें. ये मेरा दावा है.


अब बात काम की....
मैं छोटा हूँ लेकिन कम से कम मैं हिन्दी चिट्ठा जगत के व्यस्थापकों से यह अनुरोध तो कर सकता हूँ कि वो मेरी कुछ बातों पर अमल करेंगें।

1. किसी भी विवाद को आगे ना बढाया जाये जो अनुचित हो.
2. नारी देह के लिये लिखने वालों पर अंकुश हो ताकि हिन्दी चिट्ठाजगत अपनी गरिमां बनाये रखे.
3. सभी फ़ीडएग्रीग्रेटर एकमत हों कोई भी रैंकिंग के चक्कर में ना पडें तो बेहतर होगा इससे सबकी छवि बेहतर होगी और नये लेखक लिखने के लिये प्रोत्साहित होंगें
4. वरिष्ठ लेखकों से नये लेखकों के स्वागत की अपेक्षा सभी को रहती है अतः ऐसी परंपरा बने
5. नियम यां कानून सबके लिये बने कोई छोटा यां बडा ना हो चाहे वो खुद वेबसाईट के संचालक ही क्यों ना हों


मेरा ये प्रयास हिन्दी चिट्ठाजगत में फ़ैलती अश्ललीलता और अनर्गल लेखन का प्रतिरोध हैं अगर कोई बात बुरी लग रही है तो मेरा फ़ोन नं दिया हुआ है

शनिवार, 18 अगस्त 2007

सी.डी. को हुये 25 साल


'दुनियाभर में संगीत और कंप्यूटर डेटा को सुरक्षित रखने के क्षेत्र में क्रांति लाने वाली कॉम्पैक्ट डिस्क यानी सीडी ने अपने आविष्कार के 25 साल पूरे कर लिए है.'

जर्मनी में फ़िलिप्स और सोनी कंपनियों ने 25 साल पहले संयुक्त रुप से पहली सीडी बनाई थी. तब से अब तक दुनिया भर में लगभग 200 अरब सीडी बिक चुकी हैं.
डिज़िटल डाउनलोड की आधुनिक तकनीक के दौर में डेटा संरक्षण के क्षेत्र में सीडी को महत्वपूर्ण स्थान हासिल है.
डिस्क के विकास के समय फ़िलिप्स में ऑप्टिकल समूह के सदस्य रहे पीट क्रेमर ने कहा, "25 साल पहले सोनी के साथ सीडी के विकास के समय हमारा पहला लक्ष्य सीडी को दुनियाभर में लोकप्रिय करना था."
उन्होंने कहा कि कंपनियों को कतई उम्मीद नहीं रही होगी कि कंप्यूटर और मनोरंजन जगत डेटा संरक्षण के लिए सीडी को इस बड़ी मात्रा में प्रयोग करेंगें.

संगीत जगत में क्रांति

दोनों कंपनियों ने 1979 में सीडी में और सुधार के लिए काम करना शुरू किया. उनका उद्देश्य एक घंटे का ऑडियो रिकार्ड करने वाली सीडी बनाना था. फिर 74 मिनट तक रिकार्ड क्षमता वाली सीडी विकसित की गई. फिर धीरे-धीरे संरक्षण की क्षमता बढ़ती ही गई.

बिक्री के लिए पहली सीडी बाज़ार में 1982 में आई जो प्रमुख रूप से संगीत की दुनिया में रिकार्डिंग के लिए उपयोग की गई.
उस समय उसकी क़ीमत लगभग 2000 डच गिल्ड थी जो आज के 1000 पाउंड के बराबर है.
पॉलीग्राम सीडी डेवलपमेंट टास्क फ़ोर्स के सदस्य रहे फ़्रेंक वान डेन बर्ग ने बताया, "चिली के मशहूर पियानो वादक क्लाडियो
अरायू की रिकार्डिंग जब सीडी पर हुई तो हम लोग इसकी इतनी स्पष्ट आवाज़ से चकित से रह गए थे."
हालाँकि डिज़िटल उत्पादों की वजह से पिछले 10 सालों में सीडी की बिक्री में गिरावट आई है.

इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ फ़ोनोग्राफ़िक इंडस्ट्री के मुताबिक़ 2010 तक डिज़िटल उत्पादों का संगीत की दुनिया के एक चौथाई बाज़ार पर क़ब्ज़ा होगा.

बुधवार, 15 अगस्त 2007

वाह दिमाग हो तो ऐसा

कल पूरे विश्व में एक ही चर्चा थी कि नोकिया जो मोबाईल फ़ोन निर्माता कम्पनी है उसके फ़ोन्स में बैटरी की दिक्कत आ रही है तो यह शायद बहुत से लोगों को उसका आपातकालीन फ़ैसला अच्छा लगा और कुछ लोगों को उसकी मर्केटिंग रणनीति. अभी ये सब चल ही रहा है कि अमेरिका की खिलौना कम्पनी मटैल ने (यहाँ पढें) अपने सारे खिलौने पूरे विश्व से वापस करने की गुहार की है. अविश्वस्नीय! लेकिन मुझे इसमें एक सोची-समझी राजनीति नजर आ रही है जिसमे अमेरिका का शातिर दिमाग है. कैसे आईये विस्तार में चलते है.

काफ़ी दिनों से इस विषय पर लिखना चाहता था पर लगता है वक्त आ गया है कि फ़िर से इस बात को उठाया जये कि किस तरह अमेरिका चिंतित और घबरा गया है एशिया के बढते कदमों से ( इस बात को साबित मैं नहीं ये लेख कर रहें है यहाँ और यहाँ देंखें जिसमें चीन की तेज होती अर्थव्यवस्था और विश्व में धाक जिससे अमेरिका का चिंतित होना स्वभाविक है क्योंकि वो नही चाहता है कि उसके एकाधिकार में खलल पडे ) अमेरिका की नीदं हराम हो गयी है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से वो खुद शेयर बाजार में आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है जिससे उसे पूरे विश्व में जलालत उठानी पड् रही है।

इस कदम से अमेरिका विश्व भर में अपने आपको ग्राहक के प्रति जागरूक दिखाना चाहता है जिससे एशिया के विकास और अर्थव्यवस्था को गहरी चोट लग सके और फ़िर से उसका एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो जाये.
कभी माइक्रोसॉफ़्ट को लीनिक्स और ओरेकल से डर लगता है, कभी वो खुद एशिया की वस्तुओं(चावल,योगा,औषधियों आदि) को अपने नाम से पेटेंट करवाने लगता है. ये सब क्या है?

क्या हम लोगों को कुछ भी दिखायी नहीं देता? यां हम लोग अपने-अपने देश की तरक्की के लिये अंकल सैम यानी अमेरिका के आगे भिखारियों की तरह झोली फ़ैलाये खडे रहेंगे?आज अगर हम लोग नहीं चेते तो शायद ऐसा वक्त आ जाये कि पूरा विश्व अमेरका के कदमों मे होगा जो शायद उसका सपना है.

खुद को अपनी ही गुलामी वाली छवि से बाहर निकालकर और स्वावलम्बी होकर हम अपने देशों को मजबूत कर सकते हैं.


रविवार, 12 अगस्त 2007

60 साल भारत: युवा पीढी को क्या मिला?

"आज देश के युवा हाथों में लैपटॉप और हाथों मे सिगरेट लिये घूम रहे हैं शायद उनको ये आभास नहीं कि वो क्या हैं और कहाँ जा रहे हैं?"

'32 प्रतिशत भारतीय माइक्रोसॉफ़्ट का कार्यभार संभाले हुये हैं'
ये ताजा सच पूरी दुनियां के साथ जुडा है जहाँ तकनीकी द्क्ष युवाओं की कमी है वहीं भारत से लगभग लाखों युवाओं की खेप भारत से बाहर जाने को विवश है कारण?

आसान से सवाल का जवाब उतना ही मुश्किल है जितना एक मरे हुये को जिन्दा करना. दर-असल में देश में बढती बेरोजगारी और फ़ैलते आक्रोश की जिम्मेदार देश का मौजूद व्यक्तिगत ढाँचा और अव्यवस्था है जिससे लाखों युवा यां तो बाहर जाने को विवश हैं यां वो बेरोजगार हैं. जिनके पास नौकरी है वो इन बाहरी प्रपंचो के छलावे को समझ नहीं पा रहे हैं और खुद देश सेवा के बजाय इन कम्पनियों के पिट्ठू बने हुये हैं।

आज हर युवा बीस-बाईस साल पढाई करके क्या इस लायक ही रह गया है कि वो पाँच-सात हजार रूपये कमाने के लिये क्रेडिट कार्ड बेचे?

क्या वो किसी आई.टी कम्पनी में चार हजार की नौकरी के लायक रह गया है?

अभी नौकरी लगी नहीं और मोबाईल और मोटरसाईकिल की मांग करने लगे?

ये तो अभी कुछ ही सवाल हैं पर फ़ेरहिस्त लम्बी हो सकती है. लेकिन इन सबके बीच जवाब सिर्फ़ बस एक जवाब निकलकर आ सकता है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों नें अपने मकडजाल में देश और देश के युवाओं को इस कदर फ़ांस रखा है कि युवाओं को अपनी क्षमता का पता ही नही लग पाता और ये युवा ज्यादा कमाने के चक्कर में ओवरटाईम करके,चोरी-डकैती,अपहरण जैसे उधोग चला रहे हैं।

आज किसी भी पेशेवर आई.टी की एवरेज तन्ख्वाह पाँच् हजार से बीस हजार है तो वहीं इनकी विदेशों में एक हजार डॉलर से पाँच्-छः हजार डॉलर हो सकती है. मतलब दस गुना ज्यादा तो वो भला क्यों इस देश के बारे में सोचेंगे? बेरोजगारी भत्ता पाँच सौ रूपये यां उससे अधिक मिलने से इन युवाओं का क्या भला होगा? इतने तो हमारे देश के नेताओं के कुत्तों के एक दिन का खर्च है, क्या हमारे देश के कर्णधारों की कोई जिम्मेदारी नहीं है कि वो अपने देश के विकास को इन नौजवान पीढी के कन्धों पर डाल दें?

माओवाद्-नक्सलवाद, आतंकवादी गतिविधियां ये सब उस आक्रोश का ही भयानक परिणाम है जिसके फ़लस्वरूप देश अराजकता की आग में धधक रहा है.क्या इस ओर इन नेताओं का ध्यान नहीं जाता यां मीडिया को कुछ दिखायी नहीं दे रहा जो बडे-बडे स्टारों की शादियों,अपराधों को हाइलाईट करने में लगी है.

अविश्वस्नीय निवेश और बडी-बडी भारतीय कम्पनियां भी इन युवाओं का दोहन कर रहीं हैं. जिससे युवा उत्कंठा का शिकार होकर भागने को मजबूर है.

जापान-चीन जैसे देश सच्ची अर्थव्यवस्था के वो उदाहरण हैं जिससे इस देश के लोगों को सीख लेनी चाहिये. आज इनका अनुसरण करके ही आगे बढा जा सकता है ना कि देश का बेढागर्क करने वाले इन नेताओं या राज्नीति का साथ देकर क्योंकि वो लोग कभी भी देशहित के बारे में नहीं सोचते।

सोमवार, 6 अगस्त 2007

कुत्तालेखः भाग एक- राई का पहाड

चौंक गये! है न ये अजीबो-गरीब शीर्षक. जी हाँ ये शीर्षक मुझे कल रात बैठे-बैठे मिल गया जब घर के बाहर बैठा एक आवारा टाइप कुत्ता किसी दूसरे कुत्ते को देखकर भौंकने लगा.मुझे लगा यार क्यों न एक सीरिज बनाई जाये तो फ़िर् क्या था थोडी अक्ल में हिमताज तेल लगाकर एक बार फ़िर हाजिर हूँ इंसानों के वफ़ादार दोस्त कुत्तों पर समर्पित ये सीरिज कुत्तालेख.

....अभी-अभी किसी ने पुलिस को सूचित किया कि गली के बाहर एक कुत्ते की लाश पडी हुई है तो पुलिस आनन-फ़ानन में पहुँचकर घटना का जायजा ले ही रही थी कहीं से ये बात मीडिया को भी पता चल गयी फ़िर क्या था. कुछ ही देर में सारे देश का मीडिया घटनास्थल पर पहुँच चुका था.घटना की ब्रॉडकास्टिंग लाइव होने लगी. सारे देश में कुत्ते का मर्डर एक्लूसिव खबर बन चुका था. अभी ये सब चल ही रहा था कि पशु बचाओ आंदोलन वाले पहुँच गये फ़िर क्या था होने लगी नारेबाजी.राज्य के मुख्यमंत्री तक घटना की की खबर पहुँच चुकी थी उन्होने भी आनन-फ़ानन में जाँच कमेटी गठित करने का फ़ैसला ले लिया और खुद ही घटनास्थल की ओर निकल लिये.

अभी पहुँच नहीं पाये थे कि विरोधी पार्टियों के दलों के नेता अपने समर्थकों के साथ पहुँचकर हंगामा करने लगे जिससे पुलिस-प्रशासन को काफ़ी दिक्कत हो रही थी.अचानक कहीं से किसी ने गोली चला दी जिससे अफ़रा-तफ़री का माहौल पैदा हो गया. अब अराजक तत्वों का राज था जिससे राज्य में कर्फ़्यू घोषित करना पडा.

देशभर में इन सब घटनाओं की कवरेज लाइव दिखायी जा रही थी जिससे जन्-आक्रोश पैदा हो रहा था. बाहर मुल्कों ने भी इस घटना पर असंतोष जाहिर किया.
अब बारी केन्द्र सरकार की थी सो वो भी लपेटे में आ गये और खुद प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफ़ा देना पडा. देश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
लेकिन इन सबके बीच सारे मीडिया चैनलों की टी.आर.पी. अप्रत्याशित रूप से आसमान की ऊँचाई को छू रही थी लेकिन उस कुत्ते की लाश पर कोई भी रोने वाला नहीं मिला सिवा मीडिया के.

वैधानिक चेतावनीः कुता होना व कुत्ते की मौत मरना देश के लिये हानिकारक है!

शनिवार, 4 अगस्त 2007

भाई! बच के रहना

यार कल हमने अपना 1991 मॉडल का 007 नंबर का स्कूटर छुपा दिया है. क्योंकि आज कल मुझे लोग संदेह की द्रष्टि से देखने लगे हैं, मैने अपना मोबाईल नं0 भी बदल दिया है,क्या पता सी.बी.आई वालों यां आज तक के शम्स ताहीर खान भाई का फ़ोन न आ जाये.(यार ये अशोक मल्होत्रा कहाँ से मुआ आ गया है)

मैने अपनी श्रीमति जी से कह दिया कि अगर कोई मेरा जन्मदिन 07.07.07(मेरा जन्मदिन 7 जुलाई को होता है ) के बारे में पूछे तो कह देना ये न्यू सेवन वंडर वालों ने रजिस्टर्ड करवाया हुआ है हमारा जन्मदिन तो हमें याद ही नहीं.कोई पूछे तो क्या करते हैं तो कह देना लेखक हैं! बेचारे डर के मारे भाग खडे होंगे.लेकिन इतना ध्यान रखना अपन मकान नं0 100 नहीं 4/100/ए.बी. यां 100/4/28/बी.सी बताना कहीं लेने के देने ना पड् जायें.
अपनी मार्कशीट से 1st रैंक हटा दो उन लोगों को संदेह ना हो जाये कि कही तुमने रिश्वत तो नहीं दी है पास होने में.
मेरी बनियांन-अंडरवियर, पैंट-शर्ट,बेल्ट पर्स आदि का साईज 1/2 करके बताना जैसे 32 1/2 - 42 1/3 बताना.

घर में जो अपने कम्प्यूटर पे जो वेबकैम लगा है उसे निकाल फ़ैंकना क्या पता वो समझेंगे कि हम इसका इस्तेमाल हम घर की निगरानी में कर रहे हों?
मुन्नु को कह देना अभी जिद ना करे मोटरसाईकिल के लिये क्या पता आर.टी.ओ. वाले कोई वी.वी.आई.पी. नम्बर ना एलॉट कर दें? कोई भरोसा नहीं है कब कहाँ से कोई भी,कैसी भी मुसीबत टपक पडे.

और हाँ अपने रिश्तेदारों से कह दो अभी हमसे कोई भी कांटेक्ट ना करे क्योंकि अगर हम गये तो वो भी लपेटे में आ जायेंगे.

बस ये चंद बातें अपनी धर्मपत्नि को समझाकर हम चल दिये पास के थानें मे अपनी सैटिंग करने.......

शुक्रवार, 3 अगस्त 2007

अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा - पाँच बातें


तो भाई लोगों पहली बार आपने मुझे छेडा है तो लो सुनो हमारे श्रीमुख से!

पहले-पहल अगर भारतवर्ष् अमरीका भी बन जाये तो कुछ नहीं बद्लेगा सिवा इनके...

1. नारद.अक्षरग्राम की रेटिंग याहू-गूगल से कहीं सैकडो-करोडों यूजर्स से आगे होगी. बडी-बडी कम्पनियां इस् नेट्वर्क को खरीदने के लिये लालायित् होंगे. नारद टीम और नारद जी खुद लॉस-वेगास जैसे किसी बीच पर अपना विलासिता भरा जीवन जी रहे होंगे.
वेबसाईट का काम अब हमारे वरिष्ठ लेखक जैसे आलोक जी, मसीवजी,अरूण भाई,नीलिमा जी,शास्त्री जी,समीर लाल जी जैसे महान लोग संभालेंगे.

2.सिर्फ़ हिन्दी बोलने-लिखने की आजादी होगी,अंग्रेजी बोलने वालों को पकिस्तान और अंडमान-निकोबार द्वीप पर भेज दिया जायेगा और उनको हिन्दी में प्रक्षिशित करके फ़िर से हिन्दी ब्लॉगिंग के काम मे लगा दिया जायेगा.

3. हम भी कभी व्रेस्टलिंग यानी कुश्ती के चैम्पियन बन जायेंगे. हमारी भी बराबरी अंडरटेकर,केन, रॉक जैसे फ़ाईटरों से समतुल्य होगी. किसी फ़िल्म को करने के लिये हम भी 5-10 करोड् डॉलर से कम बात नहीं करेंगे.

4. खाना-पीना सब इंस्टैंट हो जायेगा, मुन्नु अपनी किताबें अपने पैन में रखकर जायेगा,लडकियों में दस साल की उमर से ही ब्यूटी कॉन्टेस्ट शुरू हो जायेंगे,माता-पिता अब औलाद के पैदा होते ही उनको घर दिलवा देंगे,छींकने पर भी टैक्स होगा, रोने के लिये सिर्फ़ कब्रिस्तान मिलेगा क्योंकि लाफ़्टर गैंग्स वहाँ नहीं मिलते.रूपया पैसा सब मिलेगा लेकिन इसके लिये बंदूक खरीदकर अपराधी बनने का प्रमाणपत्र देना होगा.

5. भाई नेता बनने के लिये एक्जाम होंगे- टॉपर को प्रधानमन्त्री और बाकी सब रैंक के आधार पर मन्त्री बनेंगे, रिश्तेदारों से अंतरिक्ष से बात हो सके इसलिये रिलांयंस-टाटा सैटेलाईट वीडियो कान्फ़्रेंसिंग की सुविधा मुफ़्त देंगे, किसी भी बीवी यां पति को दूसरे के बीवी यां पति के साथ रहने-यां घूमने के लिये आजादी होगी.

गुरुवार, 2 अगस्त 2007

वो बेचारा!

अभी कुछ ही दिन की तो बात है वो बाबा कल उस पेड् के नीचे बैठा था. भूख से बेहाल,कफ़ी देर से दर्द से क्रहने के बाद वहीं लेट गया. आस-पास के लोगों ने देखा तो किसी ने कुछ न कुछ खाने को दिया.

धीरे-धीरे वो बाबा इस मोहल्ले का एक अभिन्न अंग बन चुका था. लोग उसे कोई पीर-फ़कीर मानने लगे थे. कोई अपने घर की दशा सुधारने के लिये बाबा के पैर छूकर अपने आपको धन्य समझता था तो कोई बाबा को खाना खिलाकर.

बाबा भी बडे मस्त! किसी ने कुछ भी कहा तो कोई बात नहीं, किसी ने कुछ भी दिया खा लिया, कोई फ़िक्र नहीं. धीरे-धीरे अपनी पैठ बाने लगे थे बाबा. लोगों ने चन्दा एकत्रित करके एक मन्दिर भी बनवा दिया. धीरे-धीरे मन्दिर रूपी दुकान भी चलने लगी.

लेकिन कुछ ही दिनों की बात थी मोहल्ले से एक 17 साल की लडकी (जो अनाथ थी) अचानक गायब हो गयी थी. हर जगह चर्चा होने लगी, किसी ने कहा कि आखिरी बार उसे बाबा के यहाँ देखा गया था. बस! फ़िर क्या था. लोगों ने बाबा को पकड्कर इतना मारा कि उस बेचारे की मौत हो गयी. सारा मोहल्ले का गुस्सा अब जाकर शान्त हुआ था.

अचानक वही लडकी कहीं से प्रकट हुयी और चिल्लाकर बोली "आप लोगों ने इसे क्यों मारा? जानते थे ये मेरे क्या थे और कम से कम उन से पूछ तो लेते कि वो कौन थे?

वो मेरे पिताजी थे जिसको आप सब लोगों ने मार दिया. आप लोगों ने मुझे फ़िर से अनाथ कर दिया."

सभी लोग निरूत्तर थे,धीरे-धीरे भीड् छंटने लगी थी और.....
लाश को कुत्ते नोचने के लिये तैयार खडे थे........

बुधवार, 1 अगस्त 2007

शास्त्री जी कैमरे का सही यूज कर रहे हैं आप। दो-दो ब्लॉग!

वाह शास्त्री जी कैमरे और जगह का सही उपयोग कर रहें है आज् आपने जो दो पोस्ट् एक ही लोकेशन की थी उसको बाँटकर हिलाकर रख दिया। . लेकिन अगर केवल फ़ोटो ही पोस्ट करते रहेंगे तो हम कहाँ जायेंगे ?

माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-दो

मेरे पिछले लेख माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-प्रथम को जिस तरह से आपने अपना प्यार व स्नेह देकर मुझे उत्साहित किया था, उसी के परिणामस्वरूप मैनें इसके विस्तार करने के लिये दूसरी कोशिश कर रहा हूँ.
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर मेरी कहानी किसी की जिंदगी के करीब हो यां किसी को बुरा लगे भी तो मुझे जरूर लिखे. किसी की भावनाएं आहत करने का मुझे कोई हक नहीं है लेकिन् अगर कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा करना आप बडे लोगों का काम है.

.....तूने मुझे माँ की गाली दी,साले देख लूंगा तुझे" यह कहकर राकेश गुस्से से ऑफ़िस से बाहर निकल गया. अमित जो उसका मित्र था आज उससे किसी बात पर अनबन होने पर बात गाली-गलौज पर उतर आयी थी. किसी तरह साथी लोगों ने झगडा शान्त करवाया लेकिन राकेश स्वंय को अपमानित महसूस कर रहा था क्योंकि अमित ने उसे माँ की गाली दी थी.

घर पहुचँते ही दरवाजे पर बीमार माँ के चिल्लाने की आवाज आने लगी. बीवी जो अपने रोते हुये बच्चे को मार-मारकर चुप करवा रही थी. ये देखकर राकेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.

माँ ने चिल्लाते हुये पानी माँगां तो राकेश ने पहले तो अपने आप को गाली दी फ़िर पानी का गिलास भरकर् माँ के हाथ में देते हुये उसको गालियाँ बकने लगा.क्योंकि वो बीमार थी और सारा मल-मूत्र उसे ही साफ़ करना पडता था क्योंकि बीवी मॉडर्न थी और दुनियाँ को दिखाने के लिये माँ की सेवा करना भी जरूरी था.

कुछ समय बीतने के साथ-साथ राकेश भी चिड्चिडा हो गया था क्योंकि वजह थी माँ. एक दिन आधी रात को माँ के कराहनें की आवाज आयी क्योंकि उसको प्यास लगी थी. राकेश ने फ़िर से गालियों की बौछार के साथ माँ को पानी का गिलास देने के लिये कमरे में गया तो माँ दम तोड चुकी थी.

पहले तो वो हतप्रभ हुआ लेकिन जल्दी से जल्दी माँ का क्रियाकर्म करने के लिये उतावला होने लगा. क्योंकि आज उसे तंग करने वाल कोई नहीं था और माँ-बाप की सारी दौलत उसकी हो चली थी.

आज उसे अमित की गाली अम्रत समान लग रही थी