सुनकर अटपटा लगा ना ! कभी हम चिट्ठाकार नारद पर अपना चिट्ठा अवतरित होने के लिये लालायित रहते थे कि कब ये चिट्ठा आये और कब हमारा चिट्ठा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचे पर आज मुझे महसूस हो रहा है कि ये प्रमुख हिन्दी एग्रीग्रेटर जिस तकलीफ़ों के दौर में गुजर रहा है वो शायद अन्य एग्रीग्रेटर भी देख रहे व सुन रहे हैं लेकिन उन सबको नारद से क्या लेना-देना ये बात गले नही उतरती है क्योंकि चिट्ठाजगत,ब्लॉगवानी और नारद के बीच में जो स्वस्थ प्रतियोगिता शुरू हुयी थी व जिससे किसी का भला हो ना हो हिन्दी का भला हो रहा था.पर लगता है कि ये सिलसिला थम सा गया है.
नारद.अक्षरग्राम को हम नजर-अंदाज नहीं कर सकते क्योंकि अगर चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी हिन्दी चिट्ठाकारी का शरीर हैं तो नारद.अक्षरग्राम उसकी आत्मा है लेकिन शरीर आत्मा के बिना कैसे जी पा रहा है ये दुखी करने वाली बात है. अगर नारद् को अपडेटिंग की समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है तो हमारे तकनीकी चिट्ठाकारों से निवेदन है कि वो इस काम में आगे आयें और अपना सहयोग प्रदान करें और अगर रखरखाव और समय की कमी महसूस हो रही है तो हम सभी चिट्ठाकारों का कर्तव्य बनता है कि वो बारी-बारी समयानुसार अपना योगदान देकर हिन्दी सेवा में रत इस साइट को नवजीवन दें.
और अगर पैसा आड़े आ रहा है तो शायद हम एक-एक बूंद करके कुछ अपना योगदान तो दे सकते हैं, ये बात तीनों एग्रीग्रेटरों पर समान रूप से लागू हो ताकि हम हिन्दी और चिट्ठाकारी का सिर गर्व से ऊपर उठा सकें और कोई ये ना कहे कि आज किसी भारतीय ने अपनी चलती हुयी वेबसाइट धन और समय की कमी के कारण बंद कर दी.
पैसे के लिये हम कोई बैंक एकाउंट जैसे आई.सी.आई.सी.आई बैंक के एकाउंट की मदद ले सकते है लेकिन जिसके पास उसका डेबिट और क्रेडिट कार्ड दोनों हों जो विदेश में रूपये का डॉलर मे परिवर्तन करने की क्षमता रखता हो.कहने का तात्पर्य है कि हममें से किसी एक को निस्वार्थ आगे आकर इसका हिसाब-किताब रखना होगा और निष्पक्ष तीनों वेबसाइटों के लिये रखरखाव का कर्य करना होगा.
ये एक मजाक नहीं है लेकिन हम इसे एक मिसाल बना सकते हैं जो एक बहुत बड़ा प्रयास होगा हिन्दी हित में. तो क्या आप साथ देंगें ?