शुक्रवार, 29 जून 2007

महादेवी वर्मा(हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती)

आज जब अनायास ही विकिपिडिया का हिन्दी लेखागार खोला तो मन द्रवित हो उठा इस महान विभूती के बारे में लेख पढकर
महादेवी वर्मा की छवि हिन्दी साहित्य के एक अविरल सत्य के रूप में जानी जाती है जिन्होने हिन्दी के एक युग के निर्माण में स्तम्भ के रूप में योगदान दिया2007 साल उनकी जन्मशताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है जिसकी छवि इन्टरनेट पर कुछ पेज तक ही सीमित है,लेकिन शायद अभी इस देश को सुनीता विलियम्स,प्रतिभा पाटिल,ऐशवर्या राय,राखी सावंतों से फ़ुर्सत नहीं है।

क्या करें इस देश की विडम्बना ही यही है कि सभी लोग चढते सूरज को ही सलाम करते हैं लेकिन उन्हें भूल जाते हैं जिन्होने इस देश की संस्क्रति को हमें धरोहर के रूप में दिया है।आईये कुछ लिखें अपनें देश के गौरवशाली साहित्यकारों और उनके द्वारा दिये गये योगदान पर! हम हिन्दी ब्लाँग तो लिख रहे हैं लेकिन हिन्दी साहित्य कहाँ चला गया है?



प्रस्तुत है उनको समर्पित लेख जो शायद नये लेखकों को भारत के महान साहित्य लेखनकाल को सजीव करता है।


क्रपया इस लिंक पर क्लिक करें जिससे आप तुरंत उनके जीवन के बारे में जानकारी पायेंगे।

गुरुवार, 14 जून 2007

चिंतामणि की चिंता स्वभाविक है।




कल बहुत दिनों के बाद चिंतामणि को देखा तो मुझसे हाल-चाल बगैर पूछे रहा नहीं गया(वो मेरे बचपन का पडोसी जो ठहरा)मैंने हँसकर पूछा कि यार चिंतामणि काफ़ी पापुलर हो गये हो,खूब नाम-दाम और टी.वी. स्टार हो गये हो तो यह सुनकर चिंतामणि रुआँसा हो उठा।


मैं एकदम आश्चर्यचकित् भाव से उसे देखने लगा और शायद थोडा अपराधबोध भी महसूस करने लगा था लेकिन चिंतामणि ने खुद ही पहल करते हुये कहा चलो कहीं चाय पीते हैं,मैंने तुरंत राहत की सांस ली और चिंतामणि को कल्लू चाय वाले के टीस्टाल-कम-पुलिस उगाही केंन्द्र में ले गया।
चाय पीते-पीते अनायास ही मेरे मुँह से निकला यार चिंतामणि तुम्हारा किराने का करोबार कैसा चल रहा है, शायद मैनें फ़िर से उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था लेकिन पुराने रिश्ते होने की वजह से वो मेरे इस कटु-बाण को सह गया और उसने जो सुनाया वो आगे विवरण इस प्रकार है।


"यार मत पूछ कि कैसा हूँ क्योंकि जिस किराने के व्यापार की तुम बात कर रहे हो वो दुकान तो कबकि बिक चुकी"मैंने कहा कब तो वो बोला 'अब सुनाता हूँ तुमको अपनी रामकहानी'


आज से करीब तीन साल पहले जब मेरा किराने का खानदानी व्यापार अच्छा भला चल रहा था तब अचानक किसी भले आदमीं ने मुझे कहा"यार क्या तुझे पैसों की जरूरत है? अगर चाहियें तो एक् दिन में पैसे मिल जायेंगे! मैने आश्चर्यचकित होकर पूछा"एक दिन में? पैसों की जरूरत तो है लेकिन इतनी जल्दी? विश्वास नहीं होता !दर-असल में अगर मुझे पैसे मिल जाते तो कुछ रूपये से मैं व्यापार बढाता और कुछ अपनी बेटी की शादी और घर के जीर्णोध्दार मे लगाता! उसने मेरे ध्यान को तोडते हुये कहा "मेरे मिलने वाले एक बहुराष्ट्रीय बैंक में हैं.वो तुम्हारी प्रापर्टी पर लोन दिलवा देंगे,करीब चार-पाँच लाख!
इतना सुनना था कि मेरे शरीर में 440 वोल्ट का करंट दौडने लगा.इसके बाद मैनें कुछ ही दिनों मे अपनी दुकान पर लोन ले किया और सारा पैसा तुरंत अपने कार्यों में लगा दिया.समय गुजरता चला गया


फ़िर एक दिन बैंक से मुझे एक बडे होटल में भोज पर आमंत्रित किया.मुझे वहाँ पर सम्मानपूर्वक भोज कराने के बाद एक बहुत बडी मीटिंग में बैठाया गया जिसमें शहर के सभी गणमान्य लोग थे. मेरा वहाँ सबसे परिचय इस् तरह कराया गया कि ये हमारे बैंक के सबसे अच्छे ग्राहक हैंउन्होने मुझे तुरंत एक आलीशान कार की चाभी देते हुये कहा कि चिंतमणि जी आप एक कार के मालिक बन चुके हैं आप से कोई जमानत भी नही ली जायेगी क्योंकि आप हमारे बैंक के सबसे अच्छे ग्राहक हैं.इसके साथ आपको एक हमारा एक क्रेडिट्-कार्ड भी दिया जा रहा है जिसमें से आप अपनी जरूरी चीजों की तीन लाख तक की खरीददारी भी कर सकते हैं.





कुछ समय तक तो ठीक चलता रहा फ़िर एक दिन जब मेरी एक किस्त कार की नहीं पहुँची तो कुछ गुंडे टाईप लोग मेरी कार की चाभी मांगने आ पहुँचे!वो बैंक के रिकवरी दल के लोग थे. उसके बाद मेरी दुकान भी बेचने की नौबत आन पडी. फ़िर मेरी पत्नी के जेवर भी चले गये.पिताजी इस सदमें को नहीं झेल सके और जल्द ही चल बसे.दिन-ब-दिन हालत बद से बदतर हो गये हैं.



इतना सुनना था कि मेरा दिल रुँआसा हो गया और मैं सोचने लगा कि आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लोकलुभावन आइडियों और उनके मकडजाल से आम आदमी शायद ही बच पाता है।पहले ये कम्पनियाँ आम आदमी को टारगेट करती हैं फ़िर उनकी मजबूरी को कैश करती हैं.इनके लिये सरकार यां आम आदमी की कोई अहमियत नहीं है,इनको तो बस अपना झोला भरना है.



जाहिर है चिंतामणि की चिंता स्वभाविक है।

सोमवार, 11 जून 2007

हिन्दी अमर रहे !

आज जब हिन्दी ब्लाँग देखता हूं तो लगता है कि शायद हिन्दी लेखन का स्वर्णिम युग लौट रहा है। हिन्दी को उच्चतम स्तर पर ले जाना ही आज हिन्दी ब्लाँगरों का मुख्य ध्येय है, लेकिन बढते समयाभाव, दिशाहीनता, प्रचार-प्रसार की कमीं ने हिन्दी ब्लाँगिगं को एक दायरे में सीमित कर दिया है।

अक्षरग्राम,हिन्दी ब्लाँग्स,वर्डप्रेस,तरकश,देसीब्लाँग्स,आईबीबो,चक्रारेडियो,कल्पना,भाषा इन्डिया,ब्लाँगस्पाट,सारथी जैसे वेबयंत्रों की मदद से हम अपनी हिन्दी लेखन की भूख कुछ हद तक कम तो कर सकते हैं लेकिन यह एक पर्याप्त आधार नहीं है।

हमें इसके लिये सयुंक्त रूप से एक ही मंच पर आना होगा। हमारा ध्येय अपने ब्लाग की वाह-वाही से ज्यादा हिन्दी लेखन कला को विश्व मंच पर उच्चतम् स्तर पर पहुँचाना है। ये ही एक ऐसा समय है जिसमें हम अपनी पहचान से ज्यादा हिन्दी को विश्व की एक धरोहर बना सकतें हैं।

यानी कहनें का तात्पर्य यह है कि आज सभी वेबपोर्टलों को समान रूप से एक ही मंच पर आना होगा जिससे इस मंच को राष्ट्रीय्-अंराष्ट्रीय पहचान और सराहना मिलेगी और पूरा विश्व इससे प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकेगा। पूरा विश्व अगर आश्चर्यचकित् न हो जाये तो कहना ! अगर वो हिन्दी भाषा का मुरीद ना बन जाये तो कहना ! जिस अन्ग्रेजी भाषा के दम पर पूरा विश्व ऊँची-ऊँची उडानें भरता है वो हिन्दी के आकाश को छू भी नहीं सकेगा। क्योंकि हिन्दी के अथाह सागर में लेखन के अविरल तत्व,अदभुत् ग्यान,हमारा हिन्दु लेखन इतिहास का वो अकूत् भंडार है जिसके आगे विश्व की सारी भाषाऐं एक चम्मच भर हैं इसीलिये आज हम सबको अपने हिन्दी प्रेम को क्षितिज पर ले जाना होगा जिससे हमारी संस्क्रति को एक अलग पह्चान मिलेगी और हमारी भाषा अमर रहेगी।

जय हिन्दी ! हिन्दी अमर रहे !