सोमवार, 10 नवंबर 2008

ब्लॉगर शब्द का हिन्दी नामकरण क्या हो सकता है? इसे जनमानस तक पहुँचाने के लिये कुछ आसान और बढिया शब्द बताइये!

आज रवीश जी ने एक अलग ही विचार प्रकट किया है जो उचित है ब्लॉगर को फुटबॉलर कहें, यकीनन उनके मन में उपजी इस बात को कई लोगों ने समझा होगा यां नहीं लेकिन ये सच है कि ब्लॉगर और चिट्ठा और पत्रकार के बीच की खाई को पाटने के लिये हमें कोई विकल्प तलाशना होगा जो दर्शित करे कि वो इंटरनेट पर हिन्दी में लिखने वाला प्राणी है जिससे ब्लॉगिंग यानी कि चिट्ठाकारी जनमानस तक पहुँच सके.

मेरा अनुरोध है कि हिन्दी के शीर्ष दिग्गज जैसे बेंगाणी बन्धु,समीर,प्रमोद जी,काकेश जी,द्विवेदी जी,पांडेय जी,अनूप जी,मैथिली जी,रवीश जी,रंजना जी,रचना जी,अरून अरोरा जी और मेरे सभी प्रिय ब्लॉगर भाई-बहनों से ये निवेदन है कि वो सब इस काम में आगे आयें और एक प्रतियोगिता ही आयोजित कर दें

बुधवार, 5 नवंबर 2008

मेरा देश प्यासा है और आप गंगाजल को बचाने में लगे हुये हैं

ये सवाल मैं नहीं आज लगभग देश का हर नागरिक सोच रहा है क्या वाकई में गंगा को बचाने के लिये देश के प्रधानमंत्री इस कमेटी के अध्यक्ष होंगे ? अगर जवाब हाँ है तो उनके कार्यकाल के बाद क्या अगले प्रधानमंत्री को ये सब कार्य करने की सुध रहेगी ? क्या राज्यों के मुख्य मंत्री गंगा बचाने की मुहिम में अपने लिये गंगा का अधिकांश जल मांग उठे तो...?

और तो और गंगा नदी तो एक अविरल धारा है लेकिन लुप्त होती नदियों के बारे में क्या होगा ? क्या दिल्ली में मेट्रो रेल के अध्यक्ष श्रीधरन जी यमुना को नाला बनाकर छोड़ देंगें ? क्या ब्रहमपुत्र नदी के अस्तित्व को चीन जैसे देशों से खतरा है?

ये तो कुछ सवाल हैं जो मेरे जेहन में हैं लेकिन क्या देश की इन नदियों के बारे में हमारे देश के प्रधानमंत्री जी को भी चिंता है जो इस लिस्ट में दी हुयी है ?

अरे अभी जाइये मत! आगे भी सुनिये... क्या आपके आसपास बढते वैश्वीकरण से आपको क्या नुकसान हो रहा है तो देख लीजिये कहीं आपके आस-पास किसी बिल्डर नें किसी तालाब यां पोखर को मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में तो नहीं बदल दिया ? यां आपके शहर की नदियों से बालू उत्खनन तो नहीं हो रहा है ? जवाब यदि हाँ है तो आपका शहर और नदी दोनों खतरे में है.

पहले वाटर लेवल 70-80 फ़ुट था अब 250-300 फ़ुट हो गया है ? सरकारी नल के पीने के पानी में बदबू आ रही है नि:सन्देह वो पानी शहर के नालों को साफ़ करके पिलाया जा रहा है.
अब आगे की एक और कहानी विदर्भ और बुन्देलखंड में जाकर देख सकते हैं, बाकी हमारे देश के प्रधानमंत्री और उनकी सलाहकार कमेटी को जो दिखायी देता है वो सरमाथे पर !

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

राहुल राज का कदम भगत सिहं सरीखा था

मुम्बई बेस्ट एन्काउंटर में मारे गये राहुल राज ने न केवल खुद को इस देश की गन्दी राजनीति की आग में झोंक दिया बल्कि मुझे लगता है कि उसने खुद ये काम अपनी प्रेरणा से दूसरों को आगे आने के लिये किया क्योंकि जिस तरीके से ये काम उसनें किया वही तरीका भगत सिंह नें असैम्बली में बम फ़ेंक कर किया था, आज हर उत्तर भारतीय के मन फ़ैले डर को उसने खत्म किया है और पैदा किया है एक नयें जोश को जो आने वाले समय में महाराष्ट्र और देश के लिये घातक भी हो सकता है
शायद ठाकरे परिवार और सरकार ये भूल चुकी है कि उत्तर भारतीयों की बदौलत वो कमा-खा रहे हैं वरना इन महानगरीय परिवेश में रहने वाले आलसी जीवों से पूछकर देख लो कि कौन इनकी मजदूरी से लेकर आई.टी.,फ़िल्म जगत और प्रशासनिक सेवायें सम्हाले हुये है

बस अब आगे लिखने का तात्पर्य सभी समझदार लोग समझ चुके होंगे इसीलिये अब "बॉयकाट मुम्बई" का नारा लगाने का वक्त हो चला है

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

अविनाश बाबू आपको अभी भी शर्म नहीं आती?

आज फ़िर से शर्मसार करते हुये अविनाश नें एक व्यक्तिगत पत्र को फ़िर से सार्वजनिक कर दिया है जो निंदनीय है और शायद अविनाश बाबू की रगों में बहते नापाक इरादों का फ़ल , क्योंकि इन्होने एक सीधे-साधे इंसान का सार्वजनिक रूप से अपमान किया है.

श्री सुरेश चंद्र गुप्ता जी के ब्लॉग और पत्र के जवाब में उन्होने जो अशोभनीय हरकत की है वो जगजाहिर है कि वो अपनी करतूतों से बाज नहीं आयेंगे, उस पर तुर्रा ये कि अपने ही चिट्ठे पर अनाम टिप्पणियां भी तुरंत आनन-फ़ानन में कर दी ताकि इनके कुत्सित विचारों को हवा लग सके, बल्कि ये नहीं जानते हैं कि टिप्पणी की भाषा शैली शुध्द अविनाश शैली है.

पहले भी कई विवादों को जन्म और फ़िर ब्लॉगजगत में अफ़रा-तफ़री मचाकर और खिसियाकर चुप होकर बैठ जाना और फ़िर अब नया बावेला खड़ा करने का मकसद ज्यादा हिट और लाइमलाइट में आना ही है, सब जानते हैं कि आप प्रशंसा के भूखे हैं लेकिन ओछी! अपनी नीच और बिना औचित्य की लड़ाई को किसी सार्थक रूप में लड़िये तो ये हिंदी ब्लॉगजगत आपके साथ है.


आपका छोटा भाई

कमलेश मदान

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

बिना एंटी-वायरस के अपने यू.एस.बी. ड्राइव को कैसे क्लीन करें यानी वायरस रहित

मैने पिछली पोस्ट में बताया था कि बिना एंटी-वायरस के नेट-सर्फ़िंग कैसे करें जिसे आप लोगों ने सराहा! अब जानते हैं कि यू.एस.बी. में मौजूद वायरस को कैसे हटायें?

जैसा कि आप जानते होंगे कि 90% वायरस यू.एस.बी. और सी.डी.ड्राइव से फ़ैलते हैं ये सब एक प्रोग्राम यानी वायरस जनरेट करते हैं और आपका कम्प्यूटर दूषित होता चला जाता है.

इन वायरसों में एक सबसे खराब बात होती है कि वो ऑटो-रन यानी खुद ब खुद चलने वाले प्रोग्राम होते हैं, अब न तो इन वायरस को रोका जा सकता है और न फ़ैलने से बचाया जा सकता है.

लेकिन अब मैं आप सबको एक ऐसा सॉफ़्टवेयर दे रहा हूँ जिससे इन ऑटो-रन और करीब 99% वायरस के प्रोग्राम पर अंकुश लगा सकते हैं.

इस सॉफ़्ट्वेयर को आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं.

कैसे इंस्टाल करें--
अन-जिप करने के बाद आप सेट-अप को रन कर लेंफ़िर क्रेक फ़ोल्डर में से क्रेक फ़ाइल उठा लें फ़ोल्डर उपर के चित्र में दिखायी दे रहा है और क्रेक फ़ाइल नीचे के चित्र में दिखायी दे रही है
अब इसे C:\Program files\USB Disc Security फ़ोल्डर में रिप्लेस कर दें. आपका सॉफ़्टवेयर कार्य करने के लिये तैयार है.

एक जरूरी बात- इसके अलावा आप सभी को यह ध्यान रहे कि यू.एस.बी. एवं सी.डी. रोम को खोलने से पहले उसे राइट क्लिक करके एक्सप्लोर करके ही खोले जिससे अनावश्यक रूप से ऑटो रन पर क्लिक करने से बच सकते हैं.

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

क्या बिना एंटी-वायरस के सेफ़ इंटरनेट ब्राउजिंग संभव है?

यकीन नहीं होता ना! लेकिन ये मैने संभव किया है क्योंकि मैं पिछले छः माह से बिना एंटी-वायरस के कंप्यूटर का इस्तेमाल कर रहा हूँ और वो भी बिना किसी नुकसान के.

अब कैसे संभव हुआ ये जानते हैं.....

सबसे पहले मैने फ़ायर-फ़ॉक्स का एक पुराना वर्जन डाउनलोड किया वर्जन है 2.0.0.11 ये इसका एक अच्छा वर्जन है जो सारे के सारे प्लग-इन और स्पीड के साथ चलता है.

अब डाउनलोड करने बाद इसके ऑप्शन में जायें जो टूल्स मैन्यू में है, ऑप्शन में पहला टैब है मेन इसमें चाहे तो आप ब्लैंक पेज यानी खाली पेज भी रख सकते हैं


अब इसके तुरंत बाद प्राइवेसी टैब में आ जाते हैं जो इसका एक बहुत अच्छा ऑप्शन है

इसमें आप चाहें तो अपने काम को रिमेम्बर यानी कि याद भी रख सकते हैं

ठीक इसके नीचे कुकीस का ऑप्शन है जो आप चाहें रखें यां न रखे आपकी मर्जी

अब बारी है इसके एक महत्वपूर्ण हिस्से की यानी कि प्राइवेट डाटा टैब की . इसमें पहले ऑप्शन को चैक करें दूसरे ऑप्शन को चैक करने से हर बार आपके डाटा को खाली करने के लिये ये पूछता रहेगा जो कि एक तंग करने वाला काम है
इसमें सैटिंग्स का एक बटन है जिसमें आप क्लिक करके हर वो डाटा आप ऑटोमैटिकली क्लियर कर सकते हैं जिसकी आपको जरूरत नहीं जैसे कि कुकीस,सैशन,हिस्ट्री,वेब-फ़ॉर्म आदि..

ये तो रही इसकी खूबियां लेकिन अब जानते हैं कुछ खास इस फ़ाय-फ़ॉक्स के बारे में.....
अब इसी टूल्स ऑप्शन में एड-ऑन्स नाम का एक बटन आता है आप क्लिक करिये फ़िर इस तरह का बॉक्स खुलेगा आप उसमें गैट-एक्सटेंशन्स पर क्लिक क्रेंगे तो एक वेब पेज खुल जायेगा




बस अब आप इस वेब पेज में सर्च के ऑप्शन में ये लिख दीजिये add block और फ़िर इसको एड कर लिजिये फ़िर एक और जरूरी प्लग-इन wot को भी ढूंढ लीजिये और फ़िर डाउनलोड होने के बाद ये रिस्टार्ट मांगेगा. लीजिये तैयार है रिस्क-फ़्री इंटरनेट सर्फ़िंग

एड-ब्लॉक प्लस फ़ायरफ़ॉक्स का एक अचूक हथियार है इसके आते ही किसी भी वेबपेज की सारी की सारी प्रचार सामग्री प्रतिबन्धित हो जायेगी और कोई भी पॉप-अप एड भी नहीं आयेगा ये आप इस रैडिफ़.कॉम के मुख्य-प्रष्ठ पर भी लागू है



आप चाहें तो किसी भी एड चाहे वो चित्र हो यां वो कोई फ़्लैश एनीमेशन भी हो आप ब्लॉक कर सकते है.


अब बारी है WOT यानी Web Of Trust ये एक ऐसी वेबसाइट और प्लग-इन का नाम है जिसमे कोई भी वेब एडरेस टाइप करने के बाद उसका काम है उस वेब-पेज और वेबसाइट के बारे में सही जानकारी देना अगर बटन हरा है तो समझिये कि पेज और वेबसाइट भरोसेमंद हैं

यदि पीला है तो समझिये कि नुक्सान की संभावना है और लाल होने पर ये स्वतः ही पेज को रोक देगा और वार्निंग देगा. देखिये गूगल खोलने पर क्या दिखायी दिया



अब शुरू कीजिये एक स्वस्थ और सुरक्षित सर्फ़िंग.

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

अतुल्य भारत - मेरी यात्राओं से (भाग -दो)

पिछले भाग में मैने कुछ तस्वीरें और कुछ संछिप्त परिचय दिया था अपनी पिछली चार माह के गायब रहने का कारण सहित.
अब कुछ फ़ुर्सत है और लिखने का उचित समय भी तो हाजिर है भाग-दो
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मेरी यात्राओं में बहुत से पड़ाव और शहर,गाँव आये .. गौरतलब बात यह है कि मैने ये यात्रायें दुपहिया वाहन से कीं.

प्रमुख शहर जिनसे होकर गुजरा और उनको देखाः- कासगंज,बदायूँ,एटा,बरेली,रामपुर, देहरादून,ग्वालियर,डबरा,दतिया,झाँसी,भोपाल-होशंगाबाद,
और आगे हजारों गाँव और देहात कस्बे ये सब केवल अकेले सिर्फ़ अकेले
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कुछ बाते अपने देश के किसानों की--
मैने पूर्वी उत्तर-प्रदेश के किसानों के पास एक उन्नति का पथ खोजा जो उन्होने संपूर्ण विकसित कर लिया है. कैसे!

साल भर की तीन महीनों की फ़सल में किसान क्या कमाते थे अतः उन्होने उस फ़सल के साथ-साथ नयी-नयी फ़सलें भी उगाना शुरू कर दिया है जिससे उन्हे इतना मिल जाता है कि वो अपना गुजारा एक ही फ़सल में निकाल लें. किसानों ने पिपरमेंट,कमल-ककड़ी,खुंबियां और तिल के साथ साथ अनेक बेमौसमी फ़ल और अनाज उगाना शुरू कर दिया है.

तो वहीं अब खुशी होती है कि आज पाठशालाओं में शिक्षा देने स्वयंसेवी संस्थायें और स्कूल-कॉलेज भी आगे आने लगे हैं. मैने बहुत से ऐसे परिवार् भी देखे जिनमें लड़कियां तो पढ रही हैं लेकिन लड़के खेती-मजदूरी कर रहे हैं.

प्रस्तुत है कुछ तस्वीरें ---
ये टेम्पो तो जाना पहचाना सा लगता है
अजान का वक्त हो गया!देखो आवाज आ रही है

भाई! इस बारिश में कहाँ जायेंगे?



और आगे विस्तार से अलग -अलग विषयों पर लेख लिखूंगा....क्रमशः

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

जागो रे! ये एक मजाक है यां पब्लिसिटी का नया फ़ंडा

पिछले लगभग एक महीने से मैं इस जागो रे नामक एड को देख रहा हूँ और कई दिनों से इस वेबसाइट को भी देख रहा हूँ.बहुत सी कमियां हैं जो देखने के बाद पता चलता है कि वेबसाइट बनाने वालों ने सिर्फ़ अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है इसलिये ये एक जागरूक अभियान न होकर वरन एक सुस्त प्रोग्राम सा लगता है जिसे खुद ही जागो रे कहने की जरूरत है.

कुछ कमियां : - अव्वल तो यह संपूर्ण गुलामी की मानसिकता लिये अंग्रेजी भाषा में है

- इतने दिनों से टी.वी पर आने के बावजूद केवल 22331 आज तक सदस्य बनें हैं यानी करोड़ों रूपये बर्बाद करने के बाद सिर्फ़ हाथ लगे चन्द

- जिसके पास वोटर कार्ड न हो और कोई स्थायी पता न हो यानी कि वो किरायेदार हो तो कैसे संभव है ये ऑनलाइन वोटिंग

- एड में सिर्फ़ चाय पिलाने से क्या मकसद हल हो रहा है? यां अपने उत्पाद की मार्केटिंग

अब भाई लोगों अगर रूपये बर्बाद ही करने थे टाटा ग्रुप को तो इस सरकारी काम में नहीं करने थे क्योंकि आज तक चुनाव आयोग वोटिंग की सही गिनती और मार्केटिंग नही कर सका है तो फ़िर ये टी.वी. के एड् क्या कर लेंगे!

बाकी "जागो रे"

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

तो अब पूरी तैयारी है युवा ब्लॉग के छाने की!

'www.blogvani.com'

मेरे प्यारे साथियों किसी कारणवश मैं अपने इस अति महत्वपूर्ण मंच "युवा" ब्लॉग को चालू नहीं कर पा रहा था.

लेकिन अब पूरी तैयारियों और नये जोश के साथ इस प्रयास को दुबारा जीवित करने का संकल्प लिया है और साथ ही साथ ये भी कोशिश रहेगी कि इस मंच के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़ें क्योंकि ये केवल परहित के लिये बना है.

मेरा उन सबसे अनुरोध है जो इस ब्लॉग से जुड़े हुये हैं और जुड़ना चाहते हैं वो दुबारा मुझे मेल कर सकते हैं और मेरे नये फ़ोन नं पर फ़ोन भी कर सकते हैं जो साइडबार में दिया हुआ है.

अब इसमें एक कैटेगरी और भी जुड़ गयी है "क्या हम आपकी सहायता कर सकते हैं?"जिसमें जो जिस क्षेत्र में माहिर होगा वो अपने क्षेत्र और फ़ोन को सार्वजनिक कर सकता है, जिससे लोग उनसे तकनीकी संबन्धी जानकारियां उनसे फ़ोन व ई-मेल के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं.

बस! अब बड़ों का आशीर्वाद और साथी लोगों का साथ चाहिये जिससे हम युवा बेरोजगार पीढी को कम्प्यूटर शिक्षित कर सकें और खुद भी आत्मनिर्भर हो सकें!

आपका छोटा
कमलेश मदान

युवा © 2008 -- कमलेश मदान--

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

अब विन्डोज एक्स. पी. में अपने यू.एस.बी. ड्राइव को रैम की तरह इस्तेमाल करिये

आपने विन्डोज विस्टा की एक स्पेशल खूबी तो पहचानी ही होगी! अगर नहीं जानते हैं तो मैं बताता हूँ, विन्डोज विस्टा में एक स्पीडबूस्टर नामक सॉफ़्ट्वेयर इनबिल्ट है जिससे आप अपनी यू.एस.बी. ड्राइव को रैम की तरह इस्तेमाल कर सकते है.

ये एक कमाल का सॉफ़्टवेयर है विस्टा में लेकिन जब हम विन्डोज एक्स. पी. इस्तेमाल कर रहे हैं तो कैसे होगा ये सब ?

अब एक्स. पी. में एक सॉफ़्टवेयर विकसित हुआ है जिससे आप अपनी यू.एस.बी. को रैम की तरह ही इस्तेमाल कर सकते हैं बस आप जितनी मैमोरी शेयर करना चाहते हैं वो सैट कर दीजिये! उदाहरण के लिये आपके पास 2 जी.बी. यू.एस.बी. पैन ड्राइव है तो आप उसका 1 या जो आपके मन में आये वो हिस्सा कैचे मैमोरी में शेयर कर दीजिये बस!

नोटः- इंस्टाल करने के बाद क्रैक फ़ाइल्स को C:// ड्राइव में Program files फ़ोल्डर में eboostr फ़ोल्डर में पेस्ट कर दीजिये
-अपने ड्राइव को एड बटन से डालिये फ़िर फ़िर मैमोरी शेयर कर Build Cache Now बटन दबा दीजिये बस!


है न आसान और कमाल का सॉफ़्ट्वेयर !

यहाँ से डाउनलोड करिये !

मंगलवार, 19 अगस्त 2008

मार्केटिंग चालू आहे!

मार्केटिंग--- इस एक शब्द का अर्थ पता करने के लिये मैं कितने दिनों से जूझ रहा था, इस शब्द में कितनी महानता-चतुराई-चापलूसी-मूर्खता-धोखा-षढ्यंत्र है ये सब तो इस एक शब्द को पूरा करने के लिये कम हैं.
मतलब? नहीं समझ आया ना !
तो चलिये कुछ दिनों की दिनचर्या पर नजर ! डालें अरे अपनी नहीं मेरी!!!

सुबह-सुबह पार्क में वाकिंग करने के लिये जब चलने लगा तो एक दिन देखा कि पार्क में कुछ लोगों ने एक छोटी सी मूर्ती विराजमान कर दी है, अब उत्सुकता बढने लगी कि भाई अब भगवान जी पार्क में क्या कर रहे हैं? तो ध्यान से देखने पर पता चला कि कुछ लुक्खा यानी कि बदमाश लोग ही मूर्ती की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे हैं यानी कि स्थापना कर रहे हैं, अजीब सी हालत थी मेरी कि एक तो यह पब्लिक पार्क और ऊपर से ये दादा टाईप के लोग पार्क में जगह घेरने आ गये और कुछ कह भी नहीं सकते।

अब वाकिंग के लिये सिर्फ़ पार्क बचा था वो भी भगवान के "सच्चे" भक्तों ने छीन लिया.
कुछ दिनों के बाद देखा तो वहाँ पर मंदिर निर्माण कार्य शुरू हो चुका था यानी कि पार्क का सत्यानाश!

अब शुरू हो चुका था मार्केटिंग का असली कार्य! इसके लिये उन्होने मोहल्ले के वो लड़के चुने जो केवल मंदिर में लड़कियों को देखने के लिये आते थे, उनसे काम करवाने का मतलब था कि काम का पूरा होना.
अब मंगलवार-सोमवार-और न जाने कितने वारों को झेलना शुरू हो चुका था, धर्म के नाम अधर्म का काम शुरू हो चुका था।
अब तो रोज पकवान और मिठाईयां बनने लगीं थी, न जाने कहाँ-कहाँ से लोग आ रहे थे फ़िर एक दिन.....

एक दिन देखा तो उस पार्क के चारों ओर चहारदीवारी खिंच रही थी. मतलब समझ में नहीं आया कि पार्क में दीवारों का क्या काम?
लेकिन् एक् स्वयंसेवी "सज्जन" से पूछने पर पता चला कि भगवान की असीमित क्रपा से फ़लां-धाम का निर्माण हो रहा है,उसमें करीब अस्सी फ़्लैटों का निर्माण कार्य हो रहा है अगर आप बुकिंग करवाना चाहते हैं तो आपको फ़लां-फ़लां बैंक से डिस्काउंट भी मिल जायेगा।
बस अब तो चक्कर आने लगे कि क्या से क्या हो गया, एक मूर्ती के निर्माण के आगे इतनी कालाबाजारी!
राई का पहाड़ का मतलब क्या होता है कोई सार्थक करना तो इन भक्तों से सीखे।


खैर ये तो एक छोटा सा नमूना है कल की बात थी कि संसद में नोटों की गड्डियों के बहाने अपने अमरसिंह दादा ने तो बाकायदा सांसद खरीद कम्पनी भी शुरू कर दी है, लेकिन् कच्चे सौदे करते हैं वरना बी.जी.पी. के सांसद इतने सस्ते में नहीं पटते. उनको तो बाकायदा एक एजेंसी से संपर्क करना चाहिये जो ज्यादा से ज्यादा प्रचार कर सके.

अभी तो कई और भी हैं जो अम्बानी,टाटाओं और बिरलाओं के जैसे केवल मार्केटिंग का काम जानते हैं और पूछने पर ये ही पता चलता है....

मार्केटिंग चालू आहे.........

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

अतुल्य भारत- मेरी यात्राओं से(भाग-एक)

इस बार् कुछ तस्वीरें दे रहा हूं जो मेरे भारत का सच्चा दर्शन देती हैं, अभी बहुत कुछ बाकी है आगे जो मेरी पोस्टों में देने वाला हूँ।
मुझे काफ़ी अनुभव,आश्चर्यजनक बातें, काफ़ी लोग,कई शहर जो अनजान थे मेरे लिये, कई रातें, सड़कें जो केवल मैं ही था उस पर, पूरा आसमान मिला, हर तरफ़ धरती मिली, नदियां मिलीं, गाँव मिले, शहर मिले,खेत मिले, बंजर धरती मिली, प्यासे लोग मिले तो कहीं बाढ भी मिली।


ये सब आगे अनुभव लिखूंगा फ़िलहाल् आज कुछ तस्वीरें दे रहा हूँ जो अन्जान शहर और अन्जान लोगों की हैं






सोमवार, 7 जुलाई 2008

तो अब! वापसी है ब्लॉग जगत में



लगभग दो-तीन महीने के अंतराल के बाद घर (ब्लॉगजगत) में लौटना सुखद हो रहा है, इस दौरान काफ़ी खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त हुये जो मैने अपनी यात्राओं से सीखीं।



क्या कहा यात्रायें?



जी हाँ ! एकदम से स्वभाव के उलट इस बार मैने एक साथ लगभग इतने दिनों और इतने शहरों की यात्राये की हैं जो मेरे लिये एक आश्चर्यजनक अनुभव था। इसका विवरण मैं आगे जरूर लिखूंगा.



हालांकि इस दौरान मैने ब्लॉगजगत में हो रही उठा-पटक को भी देखा, पंगेबाज की चिट्ठियां भी पढी, समीर जी की स्पेशल आमलेट भी खायी और इससे भी ज्यादा रचना जी की नारी शक्ति भी देखी.
नये नये लेखक भी देखे और यहाँ तक कि मेरे नामराशि वाला ब्लॉग भी देखा जो बिना इजाजत के चल रहा है।



अब आगे शुरूआत तो हो ही चुकी है, वापस अपने घर और ब्लॉगिंग के एक साल पूरे होने जो कबका हो चुका और आज मेरे जन्मदिन पर छोटी सी शुरूआत।

कमलेश मदान

रविवार, 4 मई 2008

भूखे,बेबस और लाचार भारत के लोगों को अच्छा खाने की आदत बढ रही है

कोंडेलिजा राइस- नाम से ही किसी भुखमरी का शिकार ये महिला आजकल भारत के लिये जितनी चिंतायें जता रहीं हैं और उनके सुर में सुर मिला रहे हैं बुश साहब! तो शायद पूरी दुनियां को यकीन हो न हो लेकिन हमारे प्रधानमंत्री और सोनियां जी और शायद उनके चाटुकार अधीनस्थों को तो ये यकीन हो चला है.

जिस देश में रोटी को बरगर और चावल किसी सूप की तरह बेकार के अस्वादिष्ट रूप में खाया जाता हो जिन्हें शायद मसालों,तेल आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी भी न हो वही देश अमेरिका जो अब भारत के लोगों के खाने में नजरें गढाये हुये है, लेकिन वो यह भूल गया है कि भारत में अभी भी शायद 50% घरों में दो वक्त का खाना मुश्किल से जुटता है.
वही इसके पहलू में अपने कांग्रेसी भी हाँ में हाँ मिला रहे हैं क्योंकि बढती महंगाई पर अकुंश नही लग रहा है तो वो लोगों का ध्यान इस ओर खींच रहे हैं कि भारत के लोग अच्छा खाना खाते हैं, लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है.


अब सच्चाई का आंकड़ा शायद कुछ अटपटा है लेकिन इसमें एक राज जरूर छिपा हुआ है कि सरकार नाकाम है उन लोगों पर अंकुश लगाने पर जो खाने की वस्तुओं का भंडारण करते हैं,सरकार नाकाम है बेवजह कमोडिटी यानी ऑनलाइन अनाज और फ़सलों पर जुआ और दाम बढाने से रोकने के लिये, सरकार नाकाम है अमेरिका को सही जवाब देनें और चीन के समक्ष खुद के झुकने को रोकने से...


वो कैसे? आप सब अगर इस रिपोर्ट पर यकीन करें जो अभी-अभी प्रकाशित हुयी है तो मेरे ख्याल से इस देश में अनाज का कोई संकट नहीं है और शायद रिजर्व बैंक भी यही कह रही है कि इस साल रिकार्ड अनाज की पैदावार हुई है, अगर ये सच है तो शायद यां तो ये अनाज गैरकानूनी रूप से भंडारण किया हुआ है यां ये आंकड़ें झूठे हैं.

सच तो यह है कि कांग्रेस अपनी गलतियां और इतिहास फ़िर से दोहरा रही है, क्योंकि जब -जब कांग्रेस की सरकार बनी है तब महंगाई हमेशा बेकाबू रही है,इनका शासनकाल जमाखोरों का स्वर्णकाल रहा है और रहता है, ये एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है.

अब अमेरिका से ये कहलवाना कि भारतीय अच्छा खाना खा रहे हैं तो शायद कम से कम मुझे तो यह मंजूर नहीं होगा कि लगभग आधे भारतीयों को दो वक्त की रोटी आसानी से नहीं मिल रही है,

हाँ इनकी रिपोर्ट मैं वहाँ पर जायज ठहराता हूँ जहाँ जायकेदार खाने के रेस्त्रां और मॉल हैं क्योंकि भारत का क्रीमी लेयर अब वहीं खाने का यां ये कहना कि मुँह मारने का आदी हो रहा है.

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

क्या बुंदेलखंड और बाकी भारत के पानी की समस्या का ये हल हो सकता है?

लगभग एक साल पहले जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी तो इस पोस्ट को एक भयावह रूप में लिखा था क्योंकि ये वाकई में भयावह स्थिति का अनुमान था लेकिन आज मैनें फ़िर से अपने आपको उस स्थान पर रखा जहाँ से ये कहानी शुरू हुयी है........

अब तबाही दूर नहीं ! नाम से जब ये पोस्ट लिखी तो मन में अजीबो-गरीब तरीके के ख्याल आने लगे लेकिन अब यही ख्याल मुझे "नेगेटिव" सोच से पोजिटिव की ओर जाने को मजबूर कर रहा है कि जिस हार्प (High-frequency Active Auroral Research Program) को मैंने मानव की एक विनाशकारी भूल कहा था क्या वो एक वरदान भी बन सकती है?

आज अपना देश पानी के घोर संकट से जूझ रहा है और बुंदेलखंड एवं राजस्थान इसके जीते-जागते उदाहरण हैं, और ये समस्या दिन ब दिन बढती ही जा रही है. मुझे तो लग रहा है कि ये अनुसंधान इस दिशा के लिये भी कार्य कर सकता है शायद इसका उपयोग हम एक वरदान के रूप में भी कर सकते हैं क्योंकि यही तो उसका काम है.

क्रत्रिम वर्षा,बाढ,तूफ़ान,चक्रवात अगर कहीं नुकसानदेह हैं तो शायद ये अपने उन इलाकों के लिये वरदान साबित हो जहाँ पानी और हवा बिल्कुल नहीं हैं मतलब जीवन के लक्षण खत्म हो रहे हों.

कहने को तो सुनामी के पीछे भी शायद इन मौसम अनुसंधानों और उनमें परिवर्तन का ये भी कारण हो सकते हैं लेकिन क्या ये उचित नहीं होगा कि हम इनका उपयोग मानवता की भलाई में करें.


कुछ वीडियोज दे रहा हूँ ताकि इसकी भयावहता और मौसम(क्लाइमेट) परिवर्तन के बारे में आप जान सकें.


हार्प




हार्प कार्य करते हुये







मौसम परिवर्तन करते हुये






नोट: इस अनुसंधान को समझने में मैं केवल खोज और पढ रहा हूँ लेकिन इसका मतलब ये न निकाला जाये कि मैं इसे जानता हूँ,मैं तो केवल इसके फ़ायदे -नुकसान और इसके कारण् आ रहे बदलाव देख रहा हूँ.

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

अपहरण उधोगः कुछ नियम कानून भी हैं इस धंधे में

अब चौंकने की बारी आप की है क्योंकि पहले-पहल जब इस बारे में मैं पिछले कुछ महीनों के अलग-अलग अखबार निकाल रहा था तो कुछ बिंदु यानी पॉइंट मुझे मिले जो आपको चौकांते भी हैं कि कैसे ये धंधा चलता है और क्या-क्या उसूल हैं इस धंधे में........

सबसे पहले ये जान ले कि ये धंधा क्या है और कैसे ये फ़लीभूत हो रहा है?

पिछले लगभग एक दशक से जिस तेजी से जनसंख्या बढी है उसी तेजी से समाज में अमीरी-गरीबी का भी दायरा फ़ैलता जा रहा है.
अमीर और अमीर होते जा रहे हैं एवं गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं तो जाहिर है इनमें अशिक्षा के अभाव और बुनियादी ढांचे में आये लोच के कारण समाज के इस बहुत बड़े तबके में आक्रोश,भय,लालच और जल्दी पैसा कमाने के लिये कोई रास्ता नहीं बचा है

अब वो अपनी सारी कुंठायें और दोष इन अमीरों के ऊपर निकालते रहे (अमीरों के द्वारा बेहताशा धन में बढोत्तरी और अनाप-शनाप खर्च उन्हे अपना ही दुश्मन बनाने लगा है) क्योंकि वो लोग मानते हैं कि ये अमीर लोग बिना किसी काबिलियत के होते हैं और जिसे पैसा मिलना चाहिये उसे वो नहीं मिलता.

इस पहलू को एक और वर्ग भी नजर गड़ाये देखता है और वो वर्ग भी एकदम इसके उलट है क्योंकि इस वर्ग में शामिल हैं नये-नये बेरोजगार नौजवान,नेता,कानून के रखवाले यानी पुलिस और बड़े-बड़े बदमाश जो इन लोगों के ही संरक्षण में पलते हैं

अब बात धंधे के उसूलों की----बहुत ही ईमानदारी से इन उसूलों का पालन किया जाता रहा है लेकिन इसका पालन सिर्फ़ वो ही लोग करते हैंजो इसके मुख्य कर्ता-धर्ता होते हैं. निचले स्तर के सहयोगी इन उसूलों का किस हद तक पालन करते हैं ये आप अभी जान जायेंगें.

उसूल नं0 1- पहला उसूल और शायद आखिरी उसूल भी है शायद ये है कि जिसका एक बार अपहरण हुआ है और वो फ़िरौती की रकम देकर छूटता है तो फ़िर से जीवन में उसका दोबारा अपहरण नही होता ( मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि अभी तक मैने एक ही व्यक्ति का दो यां अधिक बार अपहरण होते नहीं सुना )शायद ये उनकी लाइफ़टाइम गारंटी भी होती है.

नं0 दो---इस काम के लिये उन्ही लोगों को मोहरा बनाया जाता है जो बेरोजगार हों यां जरूरतमंद हों,उन्हे पकड़ (यहाँ पकड़ का मतलब शिकार यां जिसका अपहरण होना होता है इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है,कहीं माल,सैम्पल यां बकरा भी चलन में है) को ढूंढने,उस पर निगाह रखने फ़िर उसका अपहरण करवाने तक उसका लगातार पीछा करना और अपने आकाओं से संपर्क बनाये रखना आदि ये सब काम होता है मतलब ये कि ये काम अब बतौर ठेके यां फ़्रेंचाइजी के तौर पर भी फ़लने-फ़ूलने लगा है.

नं0 तीन--- कभी कभी राजनैतिक-मीडिया-जनता के दबाव में पकड़ को छुड़ाना भारी भी पड़ जाता है, अपहरणकर्ता कभी यां तो उस पकड़ को मार डालते हैं यां फ़िर उसे किसी सड़क किनारे छोड़ जाते हैं, हाँ कभी-कभी एक आध अपने ही साथी को भी मरवा दिया जाता है यां उस बेचारे की भी बलि ले ली जाती है जिसने चन्द रूपयों के लिये पकड़ को उनके हवाले किया था, (जाहिर है इस काम में प्रशासन,राजनेताओं और आजकाल इस काम में आगे आ रहे उधोगपतियों को सब मालूम होता है, लेकिन वो हमेशा जुर्म और कानून की जद से बाहर होते हैं) उन लोगों को मुख्य साजिशकर्ता बताकर ये लौग साफ़तौर पर बच जाते हैं.

नं0 4---कभी-कभी उस पकड़ को पहले से ही धमकी दे दी जाती है,जिससे ये जोखिम उठाने की जरूरत भी नहीं होती है, कभी खुद लोग अपने ही लोगों को पकड़ बनवा देते हैं तो कभी अपने ही लोग पैसे के लिये ये काम करते हैं.

नं0 5--- ये भी एक अजीब सी बात है कि उनके कार्यक्षेत्र में कोई दूसरा दखल नहीं देता है और यदि देता भी है तो उसे भी हिस्सा देना होता है, नीचे से लेकर ऊपर बैठे सभी आला अधिकारियों को इस बात पूरा-पूरा इल्म होता है क्योंकि हिस्सा सबका बराबर बंटता है.
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तेजी से बढते जा रहे इस अपहरण के धंधे नें उधोग का रूप ले लिया है जो काफ़ी चिंता का विषय है, भाई लोगों मैं ये नहीं कह रहा कि आप लोग सिस्टम को बदलने के लिये तैयार रहो बल्कि ये कहना चाहता हूँ कि इस पकड़ा-पकड़ी के खेल से जितना दूर रहोगे उतना ही जिन्दगी सुकून से कटेगी :)

शनिवार, 19 अप्रैल 2008

युवा- एक नया प्रयास

कभी-कभी अनजाने में ही आपको अपनी मंजिल और ध्येय का मार्ग मिल जाता है, बस ! जरूरत होती है उस मार्ग को पहचानना और उस मंजिल को प्राप्त करना.

लेकिन कभी-कभी उसके विपरीत कोई खुद आकर आपको आपका रास्ता दे और जो विपरीत दिशा में चलता हो...तो आपके लिये ये सौभाग्य की ही बात होगी ना!


जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ अपने पंगेबाज दादा उर्फ़ बाबा फ़रीदी उर्फ़ अरून जी की

करीब दो दिन पहले उनसे फ़ोन पर बातचीत हो रही थी बातचीत का विषय अलग था लेकिन उन्होने एक बात अंत में मुझे कही कि "कमलेश आप तो आई.टी. के जानकार हैं और हमारे जैसे लोगों के लिये ये सब बेकार है तो क्यों नहीं आप अपने कार्यक्षेत्र के बारे में लिखते हैं?

और आप यदि आगे आयेंगे तो कितने लोगों का भला होगा ये भी हो सकता है कि आपके साथ और बहुत से लोग भी जुड़ जायें जो इस दिशा में कार्य करने की इच्छा रखते हों लेकिन उन्होने अब तक कुछ किया न हो.

अगर हिन्दी में अंग्रेजी क्म्प्यूटर की तकनीक को सिखाने की हिम्मत करोगे तो शायद हम जैसे लोगों का ही भला हो जाये"

ये बातें जब अरून जी ने मुझसे कहीं तो मुझे अपने ऊपर शर्म भी आ रही थी और मुझे एक नयी मंजिल भी दिखायी दे रही थी, मुझे लग रहा है कि मेरा असली ध्येय तो यही है तो क्यों न मैं इसे कार्यान्वित करके पूरी दुनिया और खासकर अपने भारत के बेरोजगार और कम्प्यूटर अक्षम लोगों की थोड़ी सी मदद कर सकूं.

तो आज से ही इसे मैने मूर्त रूप देने की कोशिश भर की है सुझाव और सदस्यतायें आमंत्रित हैं,

यदि आप अपने कार्यक्षेत्र जैसे सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट,हार्डवेयर,नेटवर्किंग और किसी प्रोफ़ेशन जैसे पब्लिशिंग,एकाउंटिंग जैसे क्षेत्रों में भी सिध्दहस्त हैं तो इस ब्लॉग के सदस्य जरूर बनिये

वैसे इसब्लॉग का नाम है युवा
और इसका यू आर एल है: http://i-yuva.blogspot.com

मेरा सभी शीर्ष ब्लॉग एग्रीग्रेटरों से अनुरोध है कि वो मेरे इस प्रयास को अपनी वेबसाइट में जगह देंगें

नारद,ब्लॉगवाणी,चिट्ठाजगत और हिन्दीब्लॉग्स.कॉम से खास अनुरोध

एक बात औरः केवल हिन्दी में लिखने वालों को वरीयता दी जायेगी क्योंकि हम तकनीक को हिन्दी में बांटना चाहते है, अंग्रेजी के लिये पूरा इंटरनेट पड़ा है.

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

अविनाश ! आपको आईना दिखा रहा हूँ, हो सके तो शर्म करना

अभी तक तो लोगों ने समझा था कि अविनाश कुछ हद तक महत्वाकांक्षी हैं लेकिन अब तो लग रहा है कि उन्होने उस सीमा-रेखा को भी लांघ दिया है जहाँ से इंसान का पतन शुरू हो जाता है.

पहले-पहल आप ही सभी लोगों को लेकर साथ में मुहल्ले का निर्माण करना, फ़िर जिस थाली(ब्लॉग एग्रीग्रेटरों) का खाया उसी में छेद करना.

कुछ विवादित होने का ठप्पा लगा तो खुश होकर अति उत्साह में ब्लॉग जगत के दिग्गजों को नारद के समय अपमानित किया.

हो-हल्ला मचा तो मिमिया कर कुछ समय तक खामोश रहे, अब जबकि ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत ने सहारा दिया तो फ़िर से वही विवाद, कुतर्क,गाजा(ये विषय लगभग 99% भारतीयों को पता ही नहीं), भड़ास से जान बूझकर लड़ाई को खींचना.

फ़िर से मिमिया कर चुप हो जाना क्योंकि हमेशा विरोध में शेर ही सामने पाये गये कभी किसी गीदड़ से टकराहट नहीं हुयी,

अब खीज अपनी ही साथियों पर उतारी जाने लगी क्योंकि वो लोग भी अच्छा और मौलिक लिख रहे थे, क्योंकि कभी आपको मौलिक लिखे नहीं देखा कभी किसी की गजल,किसी सूफ़ी संत का गाना,उधार के लेख ही लिखे पाया.
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ये बात तो माननी पड़ेगी कि आपको टाईटल बनाने में महारत हासिल है, तो क्यों न आप किसी साबुन-तेल बनाने वाली किसी कंपनी में ज्वाइन करते? आपको वहाँ अच्छे पैसे मिल सकते हैं भाई!
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बेटियों का ब्लॉग-- जानते हैं इस ब्लॉग को लेकर कितने लोगों के मन में उत्साह भर गया था और आज भी वो अपना सारा प्यार और दुलार लेख के माध्यम से इस ब्लॉग पर उतारना चाहते हैं? लेकिन आप !
आपने वहाँ भी किसी के लिये उमीद नहीं छोड़ी, वाकई में आप जैसा महत्वाकांक्षी और बेकार इंसान नहीं देखा जिसने अपने आपको बनाने के लिये अपने ही भाई लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया है

आपने जीतू भाई (जितेंद्र- नारद के कर्ता-धर्ता) जी का अपमान किया है यां ये भी कह सकते हैं कि अपने अपमान का बदला लिया है!

जो भी हो फ़िलहाल तो ब्लॉगवाणी,चिट्ठाजगत,नारद और हिन्दीब्लॉग्स.कॉम जैसे महान एग्रीग्रेटर्स जिन्होने हम जैसे अनजान लोगों को हिन्दी में लिखने को प्रेरित किया, आप उन्ही महान लोगों की प्रतिष्ठा को ताक पर रखकर अपनी मनमर्जी चला रहे हैं जो शायद इस हिन्दी चिट्ठा जगत को कतई बर्दाश्त नहीं होगी.

अगर आपमें वाकई इंसानियत थोड़ी बहुत बची हुयी है तो आप सार्वजनिक रूप में जीतू भाई से माफ़ी मांग लें(हम जैसे लोगों की गिनती नहीं है) तो शायद आप अपने अस्तित्व को बचा सकते हैं वरना मुझे लग रहा है कि आपके ब्लॉग्स का कहीं सार्वजनिक रूप से बहिष्कार न हो जाये


आपका प्रिय
कमलेश मदान

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

अविनाश बाबू ! ये तो होना ही था

आज जनसत्ता के कार्यकारी संपादक श्री ओम थानवी का जो पत्र आपने सार्वजनिक किया है आपकी व्याकुलता और हताशा उससे जाहिर हो रही है !

जाहिर है साफ़ तौर पर हर जगह आपकी मठाधीशी और आपका मॉडरेशन तो चलने से रहा! ये स्वतंत्रता यां ये कहिये कि ये जिद आप अपने ब्लॉग पर ही कर सकते हैं किसी अखबार यां किसी निजी लेखन के क्षेत्र में तो आप एसा करने से रहे क्योंकि उनको अपना अखबार भी तो चलाना है भाया!

वैसे एक बात और जब आप दूसरों के लिखे पर कैंची बेफ़िक्र होकर चला सकते हैं तो अपने लेख पर होती कटिंग के लिये इतनी चीख पुकार क्यों? वो भी तो लोग हैं जिनको आपने अपने मोहल्ले में जगह देकर उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया(उनमें से मैं भी हूँ ये सच मैं भी स्वीकारता हूँ) और जब उन्होने आवाज उठाई तो मॉडरेशन का नाम लेकर अपनी सफ़ाई पेश की थी

प्रिय बन्धु,
मेरी आपको निजी सलाह है कि सर्वप्रिय बनने के लिये सैकड़ों त्याग करने पड़ते हैं ! दूसरो के कंधों पर पैर रखकर आगे निकलने से सफ़लता तो मिलती है लेकिन जब कभी वो कंधे अपनी जगह से हट जाते हैं तो औंधे मुँह गिरने का स्वाद मिलता है, जो शायद अभी-अभी मिला है

तो बंधु लोगों को जोड़ो, तोड़ो नहीं सफ़लता-प्रसिध्दि-सर्वव्यापकता अपने आप आपके पास चलकर आयेगी

आपका प्रिय
कमलेश मदान

(कुछ चमचा टाइप लोग भी अभी चीख पुकार कर रहे हैं उनसे आपको आनंद तो मिल सकता है लेकिन आत्म संतुष्टि नहीं!)

गुरुवार, 3 अप्रैल 2008

मार्च माह का अवलोकन: अपना-अपना राग-भाग-एक

अपना-अपना राग -- जी हाँ ये ही शीर्षक इस माह के अवलोकन के लिये काफ़ी था क्योंकि इस मार्च माह में काफ़ी नये चेहरे और ब्लॉग्स देखने को मिले तो वहीं दूसरी ओर सभी ब्लॉगरो नें किसी विवाद को मुद्दा बनाये बगैर अपना राग अलापे रखा!

अब ये भी कह सकते है कि होली की खुमारी और फ़ाल्गुन की सौंधी खुशबू सभी लोगों के दिलो-दिमाग पर छायी हुयी थी खैर चलिये अब आगे चलें.....

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सबसे पहले इस माह की एक दुखद खबर से इस ब्लॉगजत को स्तब्ध कर दिया है वो खबर है अजय रोहिल्ला का हमारे बीच न होना! ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे !

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नोट: इस बार का माह अवलोकन नये और समर्पित ब्लॉगरों,लेखकों के लिये है जिनका स्वागत है इस ब्लॉगजगत की दुनिया में, क्योंकि हिन्दी का लेखन-मोह उन्हें स्वतः इस चिट्ठाजगत में खींच लाया है और सबसे बड़ी खुशी की बात है वो अपनी बात आगे रखकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं,मैं ये नहीं कहता कि हमारे पुराने और वरिष्ठ लेखक इस अवलोकन में नहीं हैं,बल्कि ये कहना चाहूँगा कि हम सभी लोगों का प्रोत्साहन इन नवागत लेखकों का उत्साहवर्धन करता रहेगा जो जरूरी भी है

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शुरूआत हमारी सबसे वरिष्ठ अनीता कुमार जी की लिखी पोस्ट चक दे रेलवे लिखी जो फ़रवरी के बाद मार्च माह की अच्छी शुरूआत लेकर आयी क्योंकि उसके पहले कुछ घंटे तक मोहल्ला-भड़ास का शीतयुद्ध खत्म हुआ था और फ़ायर ब्रिगेड अपना-अपना-अपना काम कर रही थी,

अब आगे....

मार्च माह की ताजगी और स्फ़ूर्ति लिये कुछ नये चेहरे हमारे सामने आये हैं जिनसे इस ब्लॉगजगत में नयी ऊर्जा का संचार प्रतीत हो रहा है! आइये कुछ नजर भर देखें इनको..........सबसे पहले मारवाड़ी समाज के हाथ धोकर पड़े हमारे शम्भूनाथ जी
के ब्लॉग पर चलते हैं,उनके शोध के लिये उन्हे मारवाड़ी समाज रक्षक का नोबेल भी मिल सकता है :D





बहुत कम लेकिन अच्छा लिखने वाले पल्लव चाय-चिंतन करते नजर आते हैं तो मन में खुशी हो जाती है कि चलो भारत भर में सबसे ज्यादा पीने वाले पेय चाय के साथ कोई नयी बात पढने को मिलेगी! चाय के समय ये गिरिराज जी
का ऑफ़-मूड क्यों हो रहा है, समझ नहीं आता. चलो उनका मूड ठीक करते हैं कुछ कनफ़ुसिया कर ! क्या कहा कनफ़ुसिया? जी हाँ रमेंद्र जी
धीरे से कनफ़ुसिया रहे हैं आप भी कनफ़ुसिया लीजिये साहब!



इस माह कुछ नयी बल्कि ये कहना चाहूँगा कि बहुत सी नयी महिला ब्लॉगर्स ने हिन्दी चिट्ठाजगत में दस्तक दी है जो ब्लॉगजगत मे उनके बढते दायरे को दर्शाती है..

रश्मि जी < रूप-अरूप >



स्वाती जी
< स्वाती >



शोभा जी
< अनुभव >


रक्षंदा खान जी
< pretty women >नाम के अनुरूप खूबसूरत भी हैं


लोकरंग बिखेरती प्रतिमा जी
भी हैं तो कहीं दूसरी ओर रंगबिरंगी टोपी लगाये अपनी लहरों में खोई पूजा जी
भी हैं.
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इस माह की प्रमुख घटनायें:-- 1. इस माह में नारद और भड़ास का मिलन कुछ चटपटा लगा, अब बेंगाणी भाई और यशवंत भाई का मिलन इस माह की एक्सक्लूसिव खबरों में ही गिना जायेगा ना!

2. दूसरी बड़ी घटनाओं में एक यह कि इस माह पंगेबाज भाई सहब कुछ होली की मस्ती में ज्यादा पगला गये हैं, कभी तो वो अपने आपको हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर(पंगेबाज) बना देते हैं तो कभी अपने आप को गिनीज बुक का प्रशस्ति पत्र देकर बच्चों जैसे मन बहला लेते हैं लेकिन पंगेबाजियां छूटे नहीं छूटती! भाई पंगेबाज जो ठहरे

भाई शिव जी तो बेचारे दुर्योधन के पीछे नहा-धोकर ही लग लिये हैं, बिना कॉपीराइट करवाये दुर्योधन अपनी डायरी लिखकर आज पछता रहा होगा क्योंकिं जितने पन्ने उस डायरी में हैं मेरा ये अनुमान है उतने पन्नों की रॉयल्टी से ही एक और हस्तिनापुर बन सकता था! बेकार में एक महाभारत हुआ

3. उड़नतश्तरी आगरा से होकर गुजर गयी ये एक अदभुत घटना थी मुझ जैसे एक छोटे से ब्लॉगर के लिये क्योंकि समीरलाल जी को पकड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं
तो वहीं दूसरी ओर यशवंत भाई अहमदाबाद,मुम्बई और दिल्ली में बिना उड़नतश्तरी के हवाई-जहाज में उड़ रहे थे जानकर अच्छा लगा.

बस! अब और आगे नहीं लिखा जा रहा है काफ़ी लम्बी पोस्ट हो जायेगी, इसके लिये मुझे इसके कई भाग बनाने पड़ रहे हैं तो आप कुछ भागों में इस अवलोकन को देखेंगें

मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

क्या ये अपने आलोक पुराणिक जी हैं?जो आज बी.बी.सी. पर चमक रहे हैं

आज बी.बी.सी. न्यूज डॉट कॉम पर एक लेख देखा पहले तो उस लेख को पढ लिया फ़िर अचानक उस लेख के लेखक की तस्वीर देखी तो कुछ दुविधा में आ गया कि ये अपने आलोक पुराणिक जी ही हैं ना ?

ये तो मुझे पता है कि वो आर्थिक विशेषज्ञ हैं लेकिन उनका चेहरा अलग ही दिख रहा है, थोड़ा कन्फ़्यूजिया गया हूँ! आप सभी लोग मदद करें और बतायें कि ये आलोक जी हैं ना




उनका लेख इस लिंक पर है

शुक्रवार, 21 मार्च 2008

उड़नतश्तरी आगरा आगमन

सोमवार के दिन मैं सुबह-सुबह ड्यूटी से लौट कर नींद ले ही रहा था कि अचानक बिजली गुल हो गयी, ठीक उसके बाद मेरा मोबाइल घनघना उठा और एक अपरिचित नंबर देख कर मन में कुछ शंका उठी लेकिन दूसरी तरफ़ से एक ठंडी हवा के झोंके सरीखी आवाज का सामना हुआ "हैलो कमलेश ! आप कमलेश ही बोल रहे हैं ना मैं समीरलाल बोल रहा हूँ"

ये सुनते ही हमारी बाँछें खिल उठी और हमको लगने लगा शायद हम कोई मिल गया के ॠतिक रोशन हो गये हैं जिसकी तरह मेरा भी एलियन से सामना होने वाला था, खैर उन्होने कहा कि "मैं शाम को गोंडवाना एक्स. से दिल्ली से जबलपुर जा रहा हूँ और आगरा से होकर जाउंगा क्या आप मिल सकते हैं प्रतीक पांडेय को भी फ़ोन किया है लेकिन वो इस समय शहर से बाहर हैं, अतः आप मुझसे मिलने स्टेशन पर आ सकते हैं?"

गाड़ी नियत समय पर आयी और बदनीयति से चल भी दी लेकिन समीरलाल जी से कुछ पल बातचीत भी हुयी, मिसेज समीर भी काफ़ी प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला हैं और साथ ही साथ हँसमुख भी हैं, समीर जी ने मुझे जाते-जाते जयशंकर प्रसाद की पुस्तक उपहार स्वरूप भेंट दी जो मुझ जैसे नवोदित ब्लॉगरों के लिये संजीवनी सरीखी है.

उनके बारे में कुछ बातें-घटनाक्रम सहित---


सुबह फ़ोन आने के पहले लाइट का अचानक चले जाना उड़नतश्तरी के आने की सूचक थी


पूरी रात के जागे हुये बंदे की नींद गायब होना भी एक घटना है


भारतीय रेल का स्वर्णिम काल उस दिन सभी ट्रेनें सही समय पर आ रहीं थीं


एक घटना भी स्टेशन पर घटी, मैं जहाँ खड़ा था वहाँ पर भारमापन यंत्र था, समीरलाल जी के आने से पहले ही खराब हो चला और उनके जाने के बाद ही ठीक हुआ ! ये सच्ची घटना थी.



ट्रेन जो कम से कम दस मिनट और ज्यादा से ज्यादा बीस-पच्चीस मिनट रूकती है, उस दिन पाँच मिनट से भी कम समय में चल दी यानी हवा (समीरलाल) का झोंका बन गयीं थीं

अब आगे का घटनाक्रम और चित्र समीर जी अपनी पोस्ट के माध्यम से करेंगें, लेकिन मैं एक बात उनसे पूछना चाहूंगा कि उनके साथ सफ़र कर रहा एक व्यक्ति हमें देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा था यानी कि उसे भी समीरलाल जी ने चिट्ठाकारी के बारे में बताया था यां नहीं आगे की किस्त समीरलाल जी की पोस्ट के माध्यम द्वारा.........

मंगलवार, 18 मार्च 2008

होली पर विशेष

कुछ विशेष रंग जिनके बिना इस बार आपकी होली कुछ फ़ीकी सी लग सकती है, क्योंकि चटख रंग के बिना होली कैसी और बिना होली के आनंद कैसे? ये चटख रंग खून,भूख,अत्याचार,युद्ध,अशांति के घोतक हैं अतः इनका इस्तेमाल आप किसी भी देश में कर सकते हैं चाहे वो भारत हो यां पाकिस्तान बल्कि ये चीन,गाजा,अफ़गानिस्तान,अफ़्रीका आदि देशों में भी धड़ल्ले से इन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसके बिना किसी भी देश की प्रगति संभव ही नहीं है.

ये जो आप तस्वीरें देख रहे हैं वो सारे विश्व की मौजूदा हालत को दर्शाने के लिये काफ़ी है जिनसे कम से कम ये तो पता चलता है कि वैश्वीकरण क्या है और किनकी लाशों की नींव द्वारा बनाया गया है