रविवार, 11 नवंबर 2007
गुरुवार, 8 नवंबर 2007
माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-तीन
मेरे पिछले लेख माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-प्रथम एवं माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-द्वित्तीय को जिस तरह से आपने अपना प्यार व स्नेह देकर मुझे उत्साहित किया था, उसी के परिणामस्वरूप मैनें इसके विस्तार करने के लिये कोशिश कर रहा हूँ.
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर मेरी कहानी किसी की जिंदगी के करीब हो यां किसी को बुरा लगे भी तो मुझे जरूर लिखे. किसी की भावनाएं आहत करने का मुझे कोई हक नहीं है लेकिन् अगर कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा करना आप बडे लोगों का काम है.
----------------------------------------------------------------------------------
दीवाली!
आज दीवाली है...... ये सोचकर मन ही मन सुनीता खुश हो रही थी कि उसका बेटा जो दूसरे शहर से आज आ रहा है उसके साथ ही दीवाली मनायेगी.
पर आज उसका बेटा विनय काफ़ी बदला-बदला सा लग रहा था उसने एक दो बार अपने बेटे से पूछने की हिम्मत भी की थी लेकिन उसने टाल दिया कुछ देर के बाद जब उसने विनय को कहा कि बाहर अपने पुराने दोस्तों से मिल आये तो उसने इंकार कर दिया.
अब सुनीता को कुछ संदेह सा हुआ फ़िर भी संयत होकर बेटे को दीवाली पूजन में बैठा ही लिया.बेटे का पूजन में मन नहीं लग रहा था और वो उठकर अपने कमरे में चला गया. आज पहली बार शायद वो अकेला बैठा हुआ था उसके पिता के मरने के बाद उसने अपने बेटे के लिये कोई कमीं नहीं रहने दी थी लेकिन आज!.....
कुछ दिनों के बाद उसका बेटा वापस दूसरे शहर पढ्ने चला गया और पीछे छोड़ गया हजारों सवाल जो उस वक्त सुनीता के मन में कौंध रहे थे.
ठीक एक महीने बाद उसके घर पर फ़ोन की घंटी बजी और फ़ोन सुनते ही सुनीता के पैर काँपने लगे.. मानो धरती अभी फ़ट गयी हो.
आज जो उसे फ़ोन पर पता चला कि उसके बेटे का एक किडनी खराब हो गया था क्योंकि उसे सिगरेट पीने की लत लग चुकी थी.
वो अस्पताल में लेटा हुआ था और जब उसे होश आया तो उसने अपनी माँ के बारे में पूछा. अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था लेकिन वो चाहता था कि माँ उसे एक बार माफ़ कर दे लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी
उसकी माँ ने इलाज के पैसों के लिये अपनी एक किडनी बेच दी थी और एक किडनी अपने बेटे के लिये दान कर दी थी. अस्पताल के बेड पर सुनीता का चेहरा आसमान की ओर देख रहा था और मानों कह रहा हो कि
आज दीवाली है....
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर मेरी कहानी किसी की जिंदगी के करीब हो यां किसी को बुरा लगे भी तो मुझे जरूर लिखे. किसी की भावनाएं आहत करने का मुझे कोई हक नहीं है लेकिन् अगर कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा करना आप बडे लोगों का काम है.
----------------------------------------------------------------------------------
दीवाली!
आज दीवाली है...... ये सोचकर मन ही मन सुनीता खुश हो रही थी कि उसका बेटा जो दूसरे शहर से आज आ रहा है उसके साथ ही दीवाली मनायेगी.
पर आज उसका बेटा विनय काफ़ी बदला-बदला सा लग रहा था उसने एक दो बार अपने बेटे से पूछने की हिम्मत भी की थी लेकिन उसने टाल दिया कुछ देर के बाद जब उसने विनय को कहा कि बाहर अपने पुराने दोस्तों से मिल आये तो उसने इंकार कर दिया.
अब सुनीता को कुछ संदेह सा हुआ फ़िर भी संयत होकर बेटे को दीवाली पूजन में बैठा ही लिया.बेटे का पूजन में मन नहीं लग रहा था और वो उठकर अपने कमरे में चला गया. आज पहली बार शायद वो अकेला बैठा हुआ था उसके पिता के मरने के बाद उसने अपने बेटे के लिये कोई कमीं नहीं रहने दी थी लेकिन आज!.....
कुछ दिनों के बाद उसका बेटा वापस दूसरे शहर पढ्ने चला गया और पीछे छोड़ गया हजारों सवाल जो उस वक्त सुनीता के मन में कौंध रहे थे.
ठीक एक महीने बाद उसके घर पर फ़ोन की घंटी बजी और फ़ोन सुनते ही सुनीता के पैर काँपने लगे.. मानो धरती अभी फ़ट गयी हो.
आज जो उसे फ़ोन पर पता चला कि उसके बेटे का एक किडनी खराब हो गया था क्योंकि उसे सिगरेट पीने की लत लग चुकी थी.
वो अस्पताल में लेटा हुआ था और जब उसे होश आया तो उसने अपनी माँ के बारे में पूछा. अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था लेकिन वो चाहता था कि माँ उसे एक बार माफ़ कर दे लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी
उसकी माँ ने इलाज के पैसों के लिये अपनी एक किडनी बेच दी थी और एक किडनी अपने बेटे के लिये दान कर दी थी. अस्पताल के बेड पर सुनीता का चेहरा आसमान की ओर देख रहा था और मानों कह रहा हो कि
आज दीवाली है....
Posted on 11:12:00 pm
सदस्यता लें
संदेश (Atom)