शनिवार, 29 दिसंबर 2007

आधी रात के चेहरे

घर जब लौटता हूँ तो मुझे वो वक्त मिलता है जिस समय लोग उठने की तैयारी कर रहे होते हैं यां मीठे सपनों में खोये रहते हुये इन सर्द रातों में खुद् को गर्म लिहाफ़ में जकड़े रहते हैं, अक्सर ही मुझे रात के गहरे सन्नाटे में ना जाने क्या कुछ अलग महसूस होता है जो किसी दिन के उजाले में नहीं मिलता मसलन् जैसे किसी चाय वाले के पास इकट्ठा भीड़ एक छोटी सी टी.वी. के सहारे अपनी बाकी रात गुजार रही होती है,वहीं पास के चौराहे पर ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी कुछ शिकार के लिये और कुछ मजबूरी में अपनी जंग लगी रायफ़लों के सहारे ऊंघ रहे हैं।

फ़ुटपाथ के किनारे सोये हुये बेघर परिवार का बच्चा भूख से रो रहा है तो उसकी माँ उसे उठाकर बड़े दुलार से अपने आँचल में समेटकर उसे सुलाने की पूरी कोशिश कर रही है क्योंकि जब पेट में रोटी नहीं है तो आँचल में दूध कैसे होगा?

किसी गली से गुजरो तो किसी जर्जर काया से निकलती खाँसने की आवाज मानो उन्हें मुक्ति दिलाने के लिये बेचैन हो रही हो यां किसी जगह नाली किनारे जलते अलाव और फ़ेकें हुये शराब के गिलास सर्द रातों से लड़ने की जिजीविषा दर्शा रहे हों.

इस रात में कुछ ऐसे भी हैं जो सर्द् होते मौसम की परवाह न करके धुंध को चीरकर अपने लिये दो रोटी की तलाश में निकल पड़े हैं (हॉकर,दूधवाले,सब्जीवाले,वाहन चालक,रद्दीवाले आदि.) लेकिन इन लोगों को मौसम का क्या वो तो एक सूखी लकड़ी की तरह हैं जिसमें किसी मौसम का असर नहीं.

सारा शहर एक अजीब सी जुगनुओं की मीठी धुन में खोया रहता है,कभी-कभी चौकीदारों की सड़क पर बेमन से पटकी हुयी लाठी और आवेश में बजायी सीटी और दूर आपस में एक दूसरे से देश के नेताओं की तरह लड़ते कुत्ते मानों इस रात को और भी रहस्यमयी बना देते हैं............

सड़क कह रही हो मुझे अब तो सोने दो मैं थक चुकी हूँ लेकिन मेरे लिये वो फ़िर से बाहें फ़ैलाये कह रही हैं कि कल फ़िर मुलाकात होगी.

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

कहिये हम किस गली जा रहे हैं ?

अपने वजूद को तलाशती युवा पीढी आज न जाने किस रास्ते को अख्तियार कर ले इस बात का कोई भरोसा नहीं है क्योंकि पैसे की चाह और जल्दी ऊँचा उठने का ख्वाब उन्हे इस मोड़ पर भी ले जाता जहाँ उन्हें सिर्फ़ अराजकता और कुंठा के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता.

इसका ताजा उदाहरण पाकिस्तान भी है तो अमेरिका भी!
भारत भी कम अछूता नहीं है और बाकी सारी दुनियां में भी रोष बढता ही जा रहा है।
बेनजीर की हत्या फ़िदायन और आत्मघाती हमलावर युवा ही थे और ग्लास्गो एयरपोर्ट, लंदन मैट्रो,अमेरिका की यूनिवर्सिटी, भारत की संसद-अक्षरग्राम आदि सब इनके उदाहरण हो सकते हैं

अब असल मुद्दा- ये लोग कैसे बनते हैं हिंसक,कुंठित और द्वेष भावना के शिकार ?

इसका सटीक और एक ही जवाब है वहाँ की सरकारें और उनकी नीतियाँ.

सरकारें और पार्टियों का मकसद युवा पीढी को किसी प्रकार का रोजगार यां सहायता होता है क्योंकि युवा ही देश के कर्णधार होते हैं लेकिन इनका मकसद अब केवल उनको पार्टी हित के लिये मर-मिटने और आत्मघाती बनाया जा रहा है, किसी भी सरकार की युवाओं के लिये कोई रोजगार गारंटी नहीं है अगर है तो वो है आतकवादी और कट्टरपंथी बनने की शर्त पर.

माओवाद जो भारत में दीमक के समान फ़ैल रहा है उसके समानांतर हम बोडो,पाक आतंकियों, दंगईयों और आक्रोशित युवाओं को भी बढते हुये देख रहे हैं, पाकिस्तान और दूसरे अमेरिका विरोधी देशों में अनपढ-बेरोजगार युवकों को केवल आत्माघाती हमलावर और आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे उन देशों की सरकारों का दबदबा कायम रहे और उन्हे बाकी दुनियां से अलग रख सके.

ये सब कहाँ से हो रहा है? कहाँ से पैसा आ रहा है? क्यों ये युवा किसी से नहीं डरते? क्यों सरकारें मूक दर्शक बनी बैठी हैं?

इन सब सवालों के जवाब के लिये सरकारों को अपने गिरेबां मे ही झांकना होगा क्योंकि उन्ही के फ़ैलाये गये अविश्वास के बीज आज आतंकवाद और कुंठा के बबूल के रूप में आगे बढ रहे हैं.

बुधवार, 19 दिसंबर 2007

गरीबी सिर्फ़ अमीरों के लिये है!

अखबारों,समाचार चैनलों,ब्लॉग्स आदि में गरीबी का दुखड़ा रोकर मगरमच्छी आंसूं बहाने वाले ये लोग क्या किसी मायने में गरीब कहलाने के लायक हैं?,किस गरीब ने कोई ब्लॉग देखा है? और अगर देखा भी है तो उसे क्या मिला, किस जरूरतमंद को ये न्यूज चैनल वाले रोटियां बाँट रहे हैं और तो और ये लोग इस पर लिखकर वाह-वाही भी लूट रहें हैं.

क्यों कोई बिहार के लिये आगे नहीं आता, क्यों किसी को उड़ीसा नजर नहीं आ रहा, क्यों असम में गरीबों के ऊपर लाठियां चलाते वक्त हमारे देश के सभी चैनल उसे कवरेज नहीं देते अगर देते हैं तो उस नग्न लड़की के शरीर को!

देश चलाने वाले हमेशा से गरीबी हटाने के तमाम वायदे कर अपनी चुनावी जनसभायें और सत्ता की ओर मार्ग प्रशस्त करके आगे निकल जाते हैं और पीछे रह जाता है तो बस अवाक् खड़ा गरीब और लाचार इंसान जिसे अपने ठगे जाने का एहसास नहीं होता,

किस गरीब के पास सरकार की योजनाओं का लाभ पहुँचता है? यां ये कहिये कि किसी गरीब को सरकार ने ठेंगा दिखाने के अलावा क्या दिया.आज ठंड से ठिठुर रहे किसी गरीब को बीस एक राजनेताओं ने मिलकर एक शॉल क्या ओढा देते है तो वो पब्लिक की नजर और समाचार,पत्र-पत्रिकाओं के हीरो बन जाते है,किस गरीब के पास राशन-कार्ड होता है जबकि किसी अमीर के पास बैंक में खाता खुलवाने के लिये राशन कार्ड भी मिल जायेगा क्यों ?

राजनीते की दुकान चलाने वाले गरीबी का सौदा ही तो करते हैं जिससे बदलें वो विश्वस्तर के लूटखोर बन सकें ताजा उदाहरण दिलीप मंडल जी ने इस ब्लॉग पर दिया है.

क्या आप ये सोचते है कि आप ब्लॉग,समाचार और टी.वी. पर तो बहुत लिख लेते हैं पर जब कोई सचमुच का गरीब आपके द्वार खड़ा होता है तो फ़िर आप क्या करते है?

मैं भी आप लोगों में हूं लेकिन हम लोगों को भ्रष्ट होती सरकार और गरीबी का मजाक उड़ाते लेख लिखने के मोहपाश को छोड़कर किसी सच्चे लेखन की ओर जाना चहिये.

क्योंकि गरीबी के ऊपर लेख लिखने से टिप्पणियों की बौछार तो हो सकती है लेकिन गरीब के आंसू के रूप मे.

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

तस्वीरें जो बोलती हैं-भाग 2

मेरी एक पोस्ट तस्वीरें जो बोलती हैं के लिये मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला जिसके फ़लस्वरूप मैने आज इसका दूसरा भाग पोस्ट करने के लिये फ़िर से देश के जाने-माने छायाचित्रकारों (फ़ोटोग्राफ़रों) के चित्रों की मदद ली है, जैसा कि मैने पहले भी कहा था कि प्रत्येक चित्र के लिये एक ब्लॉग लिख सकता था लेकिन फ़िर आज यही कहूंगा कि इससे इन चित्रों की आत्मां ही मर जायेगी.

हर चित्र के लिये टाइटिल (शीर्षक) असली हैं जिसे खुद छायाकारों ने प्रदान किये हैं.

तो आइये देखें इनकी नजर से अपने प्यारे भारत देश के 'असली' रूप को



















INNOSANCE.:(इनोसैंस):.पवित्रता













SCHOOL .:(स्कूल):. विधालय



















ALONE WITH GOD .:(अलोन् विद् गॉड):. ईश्वर के साथ अकेले














THE REFREASHMENT .:(द रिफ़्रेशमैन्ट):. तरोताजा करना












THE TASTE OF INDIA.:(द टेस्ट ऑफ़ इन्डिया):. स्वाद भारत का















BALANSING ACT .:(बैलैंसिंग एक्ट):.संतुलन कला


















FIRST CLASS .:(फ़र्स्ट क्लास):.प्रथम श्रेणी















DREAM IS NEVER B/W .:(ड्रीम इज नैवर ब्लैक/व्हाइट) :.सपने कभी श्वेत-श्याम नहीं होते


















THE RUN .:(द रन):. दौड़













NEXT IN LINE .:(नैक्स्ट इन लाइन):. अगला कतार में है


















MARKET ON WHEELS .:(मार्केट ऑन व्हील्स):. पहियों पर बाजार


















TIREDNESS .:(टाइर्डनैस):. थकान













POTRAIT OF CROW .:(पोट्रेट ऑफ़ क्रो):. कौए का चित्र



















SATISFACTION .:(सैटिसफ़ैक्शन):. संतुष्टि


















PAN CAKES .:(पैन केक्स):. केक



















GHOST BAGGER .:(घोस्ट बैगर):. प्रेत भिखारी














HOW WE AND ? .:(हाउ वी एन्ड?):. हमारा अंत कैसा होगा?

आँखें

इन आँखों ने क्या-क्या नहीं देखा. बस नहीं देखा तो एक पल भर की खुशी,इन आँखों ने क्या-क्या नहीं खोया,बस नहीं खोया तो इसमें बहने वाले आँसू, इन आँखों को दोष देने से पहले ये जमाना सारे गुनाह छुपा लेता है, इन आँखों के लिये वो अपनों को भी पराया कर देता है फ़िर भी उसे इन आँखों से कुछ हासिल नहीं होता।

इन आँखों ने गुजरात जलते देखा,अयोध्या लुटते देखा,हिन्दू-मुसलमान,सिख-ईसाइयों को अपनों के हाथों कटते-जलते देखा.

जिन हाथों ने जिसे बचपन से पाला उन्ही हाथों मे उसका खून देखा, जिस खेत में झूले झुलाये उन्ही खेत-गाँव में उसकी इज्जत तार-तार होते देखा.

इन्ही आँखों ने देश के संसद पर हमला होते देखा तो इन्हीं सांसदों ने रामसेतु पर हमला किया,

आज देश गरीब हो गया तो मुझे दिखता नहीं ये जमाना कहता है, पर जब गरीब किसान मरता है तो लोग मुझ पर कीचड् उछालते हैं.

आज हर औरत वेश्या और हर आदमी गुलाम बनने को मजबूर हो रहा है लेकिन सब फ़िर भी मुझे कहते है कि मुझे दिखता नहीं.

आज का बच्चा पहले पिस्तौल फ़िर बात करता है,आज की बच्ची पहले गर्भ-निरोधक दवा और फ़िर दोस्ती करे और फ़िर भी मुझे कहे कि मुझे दिखता नहीं है.

आस्तीन में साँप पालकर मुल्क को गद्दारों के हाथ सौंपकर कहते हो कि मुझे दिखता नहीं.



......आखिर इन आँखों को कैसे दिख सकता है जिसने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी है,

क्योंकि मैं कानून की आँखें हूं।

रविवार, 11 नवंबर 2007

ये मेरी पचासवीं पोस्ट है

जरा इस खबर पर भी नजर डालिये और देखिये कि कितना शातिराना अंदाज हैं इन भाई साहब के जो एक सरकारी कर्मचारी बनकर दूसरों के घर में सेंधमारी करता है. इनकी करतूतें वाकई में अविश्वस्नीय हैं.....

गुरुवार, 8 नवंबर 2007

माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-तीन

मेरे पिछले लेख माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-प्रथम एवं माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-द्वित्तीय को जिस तरह से आपने अपना प्यार व स्नेह देकर मुझे उत्साहित किया था, उसी के परिणामस्वरूप मैनें इसके विस्तार करने के लिये कोशिश कर रहा हूँ.
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर मेरी कहानी किसी की जिंदगी के करीब हो यां किसी को बुरा लगे भी तो मुझे जरूर लिखे. किसी की भावनाएं आहत करने का मुझे कोई हक नहीं है लेकिन् अगर कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा करना आप बडे लोगों का काम है.
----------------------------------------------------------------------------------
दीवाली!
आज दीवाली है...... ये सोचकर मन ही मन सुनीता खुश हो रही थी कि उसका बेटा जो दूसरे शहर से आज आ रहा है उसके साथ ही दीवाली मनायेगी.

पर आज उसका बेटा विनय काफ़ी बदला-बदला सा लग रहा था उसने एक दो बार अपने बेटे से पूछने की हिम्मत भी की थी लेकिन उसने टाल दिया कुछ देर के बाद जब उसने विनय को कहा कि बाहर अपने पुराने दोस्तों से मिल आये तो उसने इंकार कर दिया.
अब सुनीता को कुछ संदेह सा हुआ फ़िर भी संयत होकर बेटे को दीवाली पूजन में बैठा ही लिया.बेटे का पूजन में मन नहीं लग रहा था और वो उठकर अपने कमरे में चला गया. आज पहली बार शायद वो अकेला बैठा हुआ था उसके पिता के मरने के बाद उसने अपने बेटे के लिये कोई कमीं नहीं रहने दी थी लेकिन आज!.....
कुछ दिनों के बाद उसका बेटा वापस दूसरे शहर पढ्ने चला गया और पीछे छोड़ गया हजारों सवाल जो उस वक्त सुनीता के मन में कौंध रहे थे.

ठीक एक महीने बाद उसके घर पर फ़ोन की घंटी बजी और फ़ोन सुनते ही सुनीता के पैर काँपने लगे.. मानो धरती अभी फ़ट गयी हो.

आज जो उसे फ़ोन पर पता चला कि उसके बेटे का एक किडनी खराब हो गया था क्योंकि उसे सिगरेट पीने की लत लग चुकी थी.
वो अस्पताल में लेटा हुआ था और जब उसे होश आया तो उसने अपनी माँ के बारे में पूछा. अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था लेकिन वो चाहता था कि माँ उसे एक बार माफ़ कर दे लेकिन अब काफ़ी देर हो चुकी थी
उसकी माँ ने इलाज के पैसों के लिये अपनी एक किडनी बेच दी थी और एक किडनी अपने बेटे के लिये दान कर दी थी. अस्पताल के बेड पर सुनीता का चेहरा आसमान की ओर देख रहा था और मानों कह रहा हो कि

आज दीवाली है....

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

आइये नारद.अक्षरग्राम को बचायें!











सुनकर अटपटा लगा ना ! कभी हम चिट्ठाकार नारद पर अपना चिट्ठा अवतरित होने के लिये लालायित रहते थे कि कब ये चिट्ठा आये और कब हमारा चिट्ठा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचे पर आज मुझे महसूस हो रहा है कि ये प्रमुख हिन्दी एग्रीग्रेटर जिस तकलीफ़ों के दौर में गुजर रहा है वो शायद अन्य एग्रीग्रेटर भी देख रहे व सुन रहे हैं लेकिन उन सबको नारद से क्या लेना-देना ये बात गले नही उतरती है क्योंकि चिट्ठाजगत,ब्लॉगवानी और नारद के बीच में जो स्वस्थ प्रतियोगिता शुरू हुयी थी व जिससे किसी का भला हो ना हो हिन्दी का भला हो रहा था.पर लगता है कि ये सिलसिला थम सा गया है.

नारद.अक्षरग्राम को हम नजर-अंदाज नहीं कर सकते क्योंकि अगर चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी हिन्दी चिट्ठाकारी का शरीर हैं तो नारद.अक्षरग्राम उसकी आत्मा है लेकिन शरीर आत्मा के बिना कैसे जी पा रहा है ये दुखी करने वाली बात है. अगर नारद् को अपडेटिंग की समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है तो हमारे तकनीकी चिट्ठाकारों से निवेदन है कि वो इस काम में आगे आयें और अपना सहयोग प्रदान करें और अगर रखरखाव और समय की कमी महसूस हो रही है तो हम सभी चिट्ठाकारों का कर्तव्य बनता है कि वो बारी-बारी समयानुसार अपना योगदान देकर हिन्दी सेवा में रत इस साइट को नवजीवन दें.

और अगर पैसा आड़े आ रहा है तो शायद हम एक-एक बूंद करके कुछ अपना योगदान तो दे सकते हैं, ये बात तीनों एग्रीग्रेटरों पर समान रूप से लागू हो ताकि हम हिन्दी और चिट्ठाकारी का सिर गर्व से ऊपर उठा सकें और कोई ये ना कहे कि आज किसी भारतीय ने अपनी चलती हुयी वेबसाइट धन और समय की कमी के कारण बंद कर दी.

पैसे के लिये हम कोई बैंक एकाउंट जैसे आई.सी.आई.सी.आई बैंक के एकाउंट की मदद ले सकते है लेकिन जिसके पास उसका डेबिट और क्रेडिट कार्ड दोनों हों जो विदेश में रूपये का डॉलर मे परिवर्तन करने की क्षमता रखता हो.कहने का तात्पर्य है कि हममें से किसी एक को निस्वार्थ आगे आकर इसका हिसाब-किताब रखना होगा और निष्पक्ष तीनों वेबसाइटों के लिये रखरखाव का कर्य करना होगा.

ये एक मजाक नहीं है लेकिन हम इसे एक मिसाल बना सकते हैं जो एक बहुत बड़ा प्रयास होगा हिन्दी हित में. तो क्या आप साथ देंगें ?

पीपुल ऎंड थिंग्स (एस एम एस )

पहली बार एक एस.एम.एस. मिला जो कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह गया, इस एस.एम.एस. ने मुझे वाकई में सोचने को मजबूर कर दिया कि वाकई में ऐसा है।

एस.एम.एस. में लिखा था जो अंग्रेजी में है.:

" People are made to be loved and thing are made to be used.
but Confusion is in the world,
Becouse people are being used and things r being Loved !! "


ये बात काफ़ी गहराई से कम शब्दों मे कही गयी है कि आज इंसान जिस भौतिकतावाद की ओर बढ रहा है उसके कारण वो संवेदनाओं को भूल ही गया है, एक आम इंसान अपने आपको कहीं दूर खोता जा रहा है.

आज हम लोग दो सौ रूपये का पिज्जा बर्गर तो खा सकते है लेकिन दरवाजे के बाहर खड़े किसी बच्चे यां भिखारी को दो रूपये नहीं देते क्योंकि हमें उअसमें बुराई लगती है.

अगर किसी का हक मारकर यां किसी गरीब से रिश्वत लेकर अपने परिवार का पेट पालते हैं तो यह कहाँ का न्याय है लेकिन शायद ये सब नियति बन गया है

अब जन्मदिन आयोजन को ही ले लीजिये मैने दो तरीकों से जन्मदिन आयोजन देखा जो वाकई में अपने आप में अदभुत थे उसमें मैं भी सम्मिलित हुआ था ये मुझे अलग ही एहसास कराता है.....

पहले वाला जन्मदिन आयोजन एक अच्छे पैसे वाले हमारे मित्र के बेटे का था जो एक पांचसितारा होटल में आयोजित था उसमें उन्होने अपने गाँव के सभी लोगों को बुलाया था अब गाँव वाले ठहरे सीधे-सादे गाँव वाले तो उन लोगों के रहन-सहन को वो भाई सहब सहन नहीं कर पा रहे थे लेकिन बर्दाश्त करना जरूरी था खैर अंत में उन भाई साहब नें किसी तरह झेल लिया
अब आखिरी में उन भाई साहब के साहबजादे ने गिफ़्ट में आये हुये कुछ पैन अपने गाँव के बुजुर्गों को भेंट कर दिये ये पैन उस लड़के के दादाजी ने दिये थे जो उस वक्त अमेरिका में रहते थे.
बात आयी-गयी हो गयी और कुछ समय बाद उसके दादाजी हिन्दुस्तान आये और यहीं रहने आये. एक दिन अनायास ही उन्होनें अपने बेटे और पोते से उन पैन जो बारह का सैट था उसके बारे में पूछा लेकिन जब उनके बेटे और पोते की कारगुजारी का पता लगा तो उन्होने अपना माथा पीट लिया. क्योंकि जिस पैन सैट को उनके पढे-लिखे बेटे और पोते ने बेकार की चीज समझकर अपने भोले-भाले गाँववालों को दे दिया था वो सब खालिस सोने के पैन थे. इतना सुनते ही तीनों दादा,बाप और बेटा गाँव की तरफ़ दौड़ पड़े लेकिन अब पछताये क्या होत जब चिड़िया चुग जाये खेत, गाँव वालों ने भी उसे बेकार की वस्तु सनझकर खो-खवा दिया था.

ये तो रही पैसे के भयंकर दुरूपयोग की महानतम कथा लेकिन दूसरे जन्मदिन आयोजन को मैं कभी भी नहीं भूल सकता क्योंकि ये मेरे लिये प्रेरणा दायक था.........

ये भी मेरे एक अमीर दोस्त का खुद का जन्मदिन था और उअसने मुझे केवल मुझे ही बुलावा भेजा मुझे उसके घर जाकर बड़ा अजीब लगा कि जो इतना बड़ा पैसे वाला इंसान है वो अपने जन्मदिन पर कोई आयोजन नहीं कर रहा है और मुझ जैसे बेकार के प्राणी को बुलाकर अपना समय खराब कर रहा है,

कुछ देर के बाद उसने मुझे बाहर चलने के लिये कहा मैं मना नहीं कर सका क्योंकि उसका जन्मदिन जो था खैर उसने अपनी चमचमाती हुयी गाड़ी निकाली और अपनी पत्नी और छोटे बेटे को साथ लिया, मैने समझा हम किसी बाहर होटल में जा रहे हैं लेकिन मेरा पूर्वानुमान बिल्कुल गलत निकला और वो हमें एक नेत्रहीन विधालय में ले गया जहाँ उसने नेत्रहीन बच्चों को एक दिन और एक दिन का खाना-पीना आयोजित किया था.
हकीकत में मेरे दिल में जो श्रध्दा और आश्चर्य के भाव आये थे वो उनकी पत्नी और बच्चे के मन में भी आये थे. लगभग पूरे दिन उन बच्चों को अपने हाथ से खाना परोसना और बिना किसी अपनी तारीफ़ के दिन बिताने वाले उस महान इंसान से पहली बार मिला था जो उस रूप में मेरे दोस्त के रूप में मेरे सामने था. घर वापस लौटते वक्त उनकी पत्नी की आँखों मे आँसूं थे और मेरे चेहरे पर एक अलग भाव था जो मैं व्यक्त नहीं कर सका.
उन्होने रास्ते में अपने बेटे के पूछने पर जब कहा कि इस प्रकार जन्मदिन मनाने का कारण? तो उन्होने अपने बेटे को समझाया कि बेटा भगवान ने तुम्हें तो आँखें दी हैं लेकिन अगर सोचो कि बिना आँखों के क्या तुम इस रंगीन दुनिया को देख पाते . इन बच्चों के मन से मैने आज दुनिया का सबसे बड़ा रंग देखा जो सच्चा था.

ये किस्से आज भी पैसे और मानवता के बीच के फ़ासले का फ़र्क बताते हैं मुझे. मुझे एह्सास होता है कि वाकई में जहाँ पैसा बर्बाद होता है उसका इस्तेमाल जरूरतमंदों के लिये नही होता है, लेकिन जरूरतमंदो का इस्तेमाल पैसे के लिये जरूर होता है|

रविवार, 28 अक्तूबर 2007

चलो हरामखोर हो जाएं (व्यंग्य)

















हरामखोरी.: ये एक शब्द किसी डिक्शनरी में नहीं मिलता बल्कि ये क्वालिटी विरले ही मिलती है.
जिसे घूस,रिश्वत,आलस और सच्चे अर्थों में देश-सेवा का कीड़ा काटा हो वो हरामखोर बनने का सही हकदार है,यां ये कहिये कि एक हरामखोर ही देश की सच्ची सेवा करने और विकास की प्रगति का सही उम्मीदवार है.

हरामखोरी से कई फ़ायदे हैं....नीचे देखें
.:1:. जैसे कोई बेचारा मर्डर केस में फ़ंस गया हो तो वो बेचारा किसी स्पेशलिस्ट हरामखोर वकील के पास जाये तो ही उसका भला होगा अब बूझो कैसे? तो इसका एक हरामखोरी भरा जवाब है कि पहले तो उसका केस अदालत में जायेगा फ़िर सम्मन आयेगा फ़िर तारीख पर तारीख लेते हुये पाँच-दस साल ना बीत जायें तो केस में भी मजा नही आयेगा,और फ़िर सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में अपीलें लेते हुये जब खुद के सठिया जाने की उमर हो जाये तो माफ़ी की याचिका दायर कर दो, एक दो साल कैद होगी जिसमें बड़े-बड़े हरामखोरों के साथ जेल में मुलाकात का महान सौभाग्य प्राप्त हो सकता है, अगर भाग्य अच्छा होगा तो किसी से सैटिंग करके चुनाव में टिकट का आसानी से जुगाड़ हो सकता है जिससे एक महान हरामखोर देशप्रेमी बनने का गौरव प्राप्त हो सकता है।

.:2:. कभी हमने सुना था कि हराम की खाओ और मस्जिद में सो जाओ, अबे ये क्या बला थी. लेकिन अब इस उमर में आकर पता चला है कि हरामखोर कभी भी भूखा नहीं मरता लेकिन मेहनतकश बेचारा दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में ही लगा रहता है.
सच है जिसे दारू पीनी है वो पीकर रहेगा लेकिन जिसे भूख लगती है उसे रोटी नसीब नही.

.:3:. आज बड़े-बड़े हरामखोर देश में खुलेआम घूम-घूमकर देश सेवा का ढोंग कर रहे हैं जिन्होने कभी एक रूपया नहीं कमाया वो करोड़ों रूपये आगामी परियोजनाओं में लगाने की योजनाये बना रहे हैं (अब योजनाये किसके लिये बनती है आप सब अच्छी तरह जानते हैं)

वो कहते है देश का निर्माण करना है लेकिन उसी दिन शाम के अखबार में एक नवनिर्मित पुल के ढहने की खबर आ जाती है, क्या फ़ास्ट प्रोसैसिंग है बाप!इतनी जल्दी योजना और उसके कार्यकाल का पूरा होना हरामखोरी की एक भव्य क्वालिटी है जिसे उच्च अनुभवों के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है।

...................................................................
अगर दुनियां में कोई एक बहुत बड़ा वर्ग है तो वो है हरामखोरी, इस एक शब्द नें आज ग्लोबली यूनिटी की जो मिसाल कायम की है वो वाकई में एक मिसाल है।

मेरा तो मानना है कि अगर हरामखोरी पर शोध किया जाये तो वाकई में इसका प्रोग्रेस रिपोर्ट चौकांने वाले मिलेंगें, आज यह सामाजिक आंदोलन बन चुका है और जिस तेजी से यह फ़ैल रहा है,लगने लगा है कि आने वाले समय में पूरा विश्व हरामखोरमय ना हो जाये!
....................................................................
तो चलो हरामखोर हो जायें!

शनिवार, 27 अक्तूबर 2007

तस्वीरें जो बोलती हैं!

आज मैं भारत की कुछ तस्वीरें पोस्ट कर रहा हूँ लेकिन इन तस्वीरों में जो भारत मुझे दिखायी दिया है उसने मुझे काफ़ी हद तक दुख भी दिया है और कुछ सुखद अनुभूति भी दी है.

इन तस्वीरों को देश के जाने-माने छायाकारों(फ़ोटोग्राफ़रों) ने खींचा है जिसका मुझे कोई क्रेडिट नही चाहिये बस! आप लोग देख सकें ये ही बड़ी बात है।

मैं तो चाह रहा था कि हर चित्र के उपर एक ब्लॉग लिख डालूं लेकिन इससे इन चित्रों की आत्मा ही मर जाती जो इनके बिना कुछ कहे ही दिखायी देती है कि असली भारत में क्या कुछ नहीं है.

और हाँ इन तस्वीरों के शीर्षक इनके असली शीर्षक हैं जो एक अलग ही अहसास लिये हुये हैं आइये देखें........
















Welcome in india (वेलकम इन इन्डिया)- भारत में आपका स्वागत है|














Good morning mumbai (गुडमॉर्निंग मुम्बई) - सुप्रभात मुम्बई!





















Waking up!(वेकिंग अप)- जागना















Morning Brush(मोरनिंग ब्रश) - सुबह का मंजन


















Monalisa smile! (मोनालिसा स्माइल) - मोनालिसा जैसी मुस्कान














Hope(होप)- आशाऐं















Waiting For My Turn(वेटिंग फ़ॉर माई टर्न)- अपने इंतजार में
















Where we are?(व्हेअर वी आर?)- हम कहाँ हैं?



















Bat'tle Warrier(बैटल वॉरियर) - युध्द के मैदान का लड़ाका



















She(शी)- वह















The Fun(द फ़न)- मस्ती,शरारत

















Two Widow's(टू विडो) - दो विधवाऐं
















The Ice candy(द आइस कैंडी)- बर्फ़ का गोला,आइसक्रीम















The Friends(द फ़्रेंड) - मित्र















Memories(मेमोरीस) - यादें










Dying Earth(डाइंग अर्थ) - मरती जमीन



















Who cares?(हू केअर्स?)- परवाह किसे?















Waiting Line(वेटिंग लाइन)- इंतजार की कतार

















The Busy(द बिजी)- व्यस्त

रविवार, 21 अक्तूबर 2007

हम हिन्दुस्तानी (द्वित्तीय भाग)

कभी-कभी इंसान गल्तियां कर बैठता है और कल गलती से मिस्टेक करते हुये जो हमने अपने देशप्रेमी होने की जो मिसाल कायम की थी वो वाकई में गंभीर विषय बन चुका है, काफ़ी लोगों ने हमें इसे आगे जारी रखने का सम्मन भी भेज दिया है तो भाई लोगों प्रस्तुत है हम हिन्दुस्तानी का भाग दो..

नकलः ये हुनर तो हम हिन्दुस्तानियों की वो अमूल्य धरोहर है जिसे संजोये रखनें से ही विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है यां ये कहिये इस विशेष गुण के कारण पूरी दुनिया हमसे परेशान है अब चाहे किसी भी उत्पाद को एक बार देख लें माँ कसम अगली खेप तक वो उत्पाद उस देश में ही आधे रेट में मिलने लगेगा, यहाँ तक कि अगर फ़िल्म,राजनीति,युध्द,पढाई-लिखाई आदि में इस देश में बनाये गये कीर्तीमानों की लिस्ट बनायी जाये तो शायद चॉद पर जाने के लिये किसी अंतरिक्ष यान की जरूरत नहीं होगी.
तो अब मत कहना "नकलची बंदर"

लम्बी-लम्बी छोड़नाः अगर इस गुण के बारे में नहीं लिखा तो शायद मेरा ये लेख बेकार हो जायेगा क्योंकिं जिस विशेष गुण के लिये भारतीय जाने जाते हैं उनमें ये गुण कूट-कूटकर भरा हुआ है-
पता है अम्बानी मेरे साथ पढ चुका है,
शहर का कलक्टर मेरा यार है बेटा जो काम हो बता देना,
कॉलेज से अगर खेल रहा होता तो आज नैशनल टीम में होता,

ये कुछ चंद बातें है अभी तो छोड़ने के रिकार्ड चेक तो कर लीजिये.

गालियां: हिन्दी,पंजाबी,अंग्रेजी और राष्ट्रीय भाषाओं के अलावा एक और भाषा भी है जिसे लोग पानी(मदिरा) पी-पीकर और ज्यादातर बिना पिये ही इस्तेमाल करते हैं,हम राष्ट्रीय भाषा का दर्जा हिन्दी यां अंग्रेजी को दें यां ना दें लेकिन यह भाषा समान रूपों में अपना अधिपत्य बनाये हुये है,
विविधता इसकी मुख्य पहचान है और यह हिन्दुस्तान के चारों ओर समान रूप से पायी जाती है.
आप की भाषा क्या है?

आलसः टाइम नहीं है! इस बात के लिये अगर हम पूरी दुनियां में सबसे आगे हैं जहाँ पूरी दुनिया समय के साथ चलती है वहीं दूसरी ओर हमारे प्यारे भारत में ये कहा जात है कि समय को मत पकड़ो.
आज का काम कल और भविष्य पर टालने की प्रथा तो नेताओं,नागरिको,अदालतों,ऑफ़िसों में भी होता है लेकिन यह रेलवे और सड़क परिवहन के बाद अब उड्डयन सेवा में भी शुमार होने लगा है.
क्या कहा आप के पास टाइम नहीं है?

शनिवार, 20 अक्तूबर 2007

हम हिन्दुस्तानी

पढनें में अजीब लग रहा होगा लेकिन आम हिन्दुस्तानियों की जो आदतें है वो किसी भी दूसरे देश के लोगों के लिये ईर्ष्या का विषय है, कम से कम मैं तो यही समझता हूँ,आप क्या समझते है अपनी राय टिप्पणी के रूप में दें|

ये कुछ खास विशेषताऐं हैं जो हमें अपने अपने हिन्दुस्तानी होने के एहसास को जोड़े रखती हैं, तो चलो आइये देखें कि आखिर क्या हैं ये.....

अखबारः इसका पढनें का मजा सिर्फ़ मांगकर पढने में ही है, जब तक एक-एक करके अलग-अलग पन्ने करके नहीं पढा तो क्या पढा? भले ही उसका अलग पन्ना किसी तीसरे आदमीं के पास हो!

माचिसः
भले ही आप के पास दो हजार रूपये वाला लाइटर हो लेकिन मांगे की एक तीली में जो मजा है वो उस अदने लाइटर में कहाँ? चलो माचिस दो!

समयः आप रोलैक्स घड़ी पहनते है लेकिन दूसरों से टाईम पूछते हैं क्या बात है!
भाई साहब टाईम क्या हुआ है?

थूकदान-मूत्रदानः माफ़ करना दोस्तों ये भी लिखना जरूरी है क्योंकि इसके बिना भारतीय होना भी कोई नहीं चाहता है, ये एक ऐसा राष्ट्रीय कर्तव्य है जिसे निभाना हर कोई अच्छी तरह से जानता है.सार्वजनिक शौचालय जितने साफ़ मिलते है उतनी ही गंदी हमारी दीवारें.
किसी मॉडर्न आर्ट की बारीकियां सीखनी हों तो किसी दीवार पर शोध कर लीजिये.

परचिंतनः अपना दुख बिना सम्हाले दूसरों के दुख में टांग अड़ाने के लिये तो हम भारतीयों ने मिसाल कायम कर दी है, राजनीति-देश-क्रिकेट-महंगाई ये सब इस बीमारी के शुरूआती लक्षण हैं.कौन क्या बन गया? कल क्या था आज क्या हो गया? अम्बानी-टाटा देखों क्या बन गया है? सलमान खान को बेल होगी यां जेल? अरे इन्डिया के कुल इतने ही रन हुये हैं?
इन सब बातों मे समय व्यतीत करना हमारा मुख्य शगल है.

लाइनः लाइन लगाना चाहे वो राशन,सिनेमा टिकट,रेलवे टिकट,बस,बैंक यां जहाँ लाइन लगती हो वहाँ हम लाइन लगाना अपराध समझते हैं और ऐसा करना हम अपनी तौहीन समझते हैं.लेकिन खिड़की पर बैठे क्लर्क को गालियां देना भी नहीं चूकते.

बिना लाइन के जो मजा है वो लाइन में घंटों खड़े होकर कहाँ तो आइये लाइन तोड़ें!

जुगाड़ः ये ठेठ देसी शब्द आज किसी का मोहताज नहीं है, किसी भी रूप में कोई भी काम हो बिना जुगाड़ के नहीं पूरा होता है चाहे वो किसी के अस्पताल में पैदा होने के लिये पैसे बचाने की जुगाड़ हो यां श्मशान में किसी की चिता के लिये लकड़ी की जुगाड़ ये सब यहाँ इसके बिना इस देश में संभव नहीं है.मैं तो समझता हूँ कि अगर मैनेजमेंट की किताबों में जुगाड़ की महिमा का वर्णन किया जाये तो देश के लिये नये-नये रास्ते खुलेंगे.

आज देश की राजनीति और पूरा देश जुगाड़ और इसके कर्णधारों की नियति पर ही तो टिका है

तो भाई लोगों हिन्दुस्तानी होने के लिये माफ़ कीजिये एक अच्छा हिन्दुस्तानी होने के लिये ये चंद योग्यताऐं आप में होनी चाहिऐं, क्या आप भी हिन्दुस्तानी है?

बाकी की आगे के लेखों में क्लास होगी.....

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

मेरे इस ब्लॉग के लिये आप प्रोत्साहन दें तो अच्छा लगेगा

आज से विधिवत मैने हिन्दी विकिपीडिया और अपने ब्लॉग मातृभूमि के लिये अपना योगदान देना शुरू कर दिया है.लेकिन उचित मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के बिना अधूरा है ये ब्लॉग अतः आप सभी लोगों के सहयोग के लिये मैं प्रतीक्षारत हूं इसलिए आप सबके विचार और सुझावों का स्वागत है|

तकनीकी रूप में चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी ने इसे अभी पंजीकृत नही किया है जबकि चिट्ठाजगत के लेबल मैने दो बार और ब्लॉगवानी के लिये मैने ई-मेल भी किया है.
नारद.अक्षरग्राम के लिये जीतू जी को मैने मेल किया तो उन्होने तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हुये पंजीकृत कर दिया लेकिन शायद नारद.अक्षरग्राम भी अपडेटिंग की समस्या से जूझ रहा है यां जीतू जी शेयर बाजार में!

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2007

क्या कूल हैं हम














ब्लॉगिंग से सावधान!कहीं घरवाले ये हाल ना कर दें




















पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा


















आज ना छोड़ूंगा तुझे














चलो आज गाड़ी ही ठीक कर दें














देखा मेरी गाड़ी कितनी तेज है















ये तेरी ऑखें झुकी-झुकी














आज कुछ ज्यादा ही चढ गयी है


















क्या लाइटर है













मेरी बंदरिया को तूने छेड़ा..














आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा


















तूने मेरी चॉकलेट क्यों खायी?












मम्मी अब शैतानी नहीं करूंगा












ओह! मेरा टाइटेनिक डूब रहा है