बुधवार, 1 अगस्त 2007
माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-दो
मेरे पिछले लेख माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-प्रथम को जिस तरह से आपने अपना प्यार व स्नेह देकर मुझे उत्साहित किया था, उसी के परिणामस्वरूप मैनें इसके विस्तार करने के लिये दूसरी कोशिश कर रहा हूँ.
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर मेरी कहानी किसी की जिंदगी के करीब हो यां किसी को बुरा लगे भी तो मुझे जरूर लिखे. किसी की भावनाएं आहत करने का मुझे कोई हक नहीं है लेकिन् अगर कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा करना आप बडे लोगों का काम है.
.....तूने मुझे माँ की गाली दी,साले देख लूंगा तुझे" यह कहकर राकेश गुस्से से ऑफ़िस से बाहर निकल गया. अमित जो उसका मित्र था आज उससे किसी बात पर अनबन होने पर बात गाली-गलौज पर उतर आयी थी. किसी तरह साथी लोगों ने झगडा शान्त करवाया लेकिन राकेश स्वंय को अपमानित महसूस कर रहा था क्योंकि अमित ने उसे माँ की गाली दी थी.
घर पहुचँते ही दरवाजे पर बीमार माँ के चिल्लाने की आवाज आने लगी. बीवी जो अपने रोते हुये बच्चे को मार-मारकर चुप करवा रही थी. ये देखकर राकेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.
माँ ने चिल्लाते हुये पानी माँगां तो राकेश ने पहले तो अपने आप को गाली दी फ़िर पानी का गिलास भरकर् माँ के हाथ में देते हुये उसको गालियाँ बकने लगा.क्योंकि वो बीमार थी और सारा मल-मूत्र उसे ही साफ़ करना पडता था क्योंकि बीवी मॉडर्न थी और दुनियाँ को दिखाने के लिये माँ की सेवा करना भी जरूरी था.
कुछ समय बीतने के साथ-साथ राकेश भी चिड्चिडा हो गया था क्योंकि वजह थी माँ. एक दिन आधी रात को माँ के कराहनें की आवाज आयी क्योंकि उसको प्यास लगी थी. राकेश ने फ़िर से गालियों की बौछार के साथ माँ को पानी का गिलास देने के लिये कमरे में गया तो माँ दम तोड चुकी थी.
पहले तो वो हतप्रभ हुआ लेकिन जल्दी से जल्दी माँ का क्रियाकर्म करने के लिये उतावला होने लगा. क्योंकि आज उसे तंग करने वाल कोई नहीं था और माँ-बाप की सारी दौलत उसकी हो चली थी.
आज उसे अमित की गाली अम्रत समान लग रही थी
7 Response to "माँ-(मेरा एक महत्वाकांक्षी लेख)-भाग-दो"
सत्य को छूती हुई रचना
मर्म स्पर्शी अंत ।
कमलेश जी, बहुत बढिय़ा कहानी लिखी है।आज की सच्चाई ब्यान करती आप की रचना बहुत ह्रदय स्पर्शी थी। बधाई स्वीकारें।
मार्मिक, धन्यवाद
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अच्छा लिखा है आपने !
सही है, कमलेश जी.
ह्म्म .. रुला गये आप... पर.. यह सच ही है।
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