सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

आज की शाम कॉलेज के कॉफ़ी-हाउस के नाम

Posted on 7:20:00 pm by kamlesh madaan

आज सैकड़ा हो गया पोस्ट लिखते-लिखते तो सोचा कि कहाँ लिखूं तो मन में आया कि कहीं दूर न जाकर बस वहीं से शुरू करते हैं जहाँ लोग अपनी जिंदगी के सबसे यादगार दिन बिताते हैं.....
तो बस चल दिये अपनी गाड़ी को उस कॉफ़ी शॉप से दूर पार्किंग करके क्योंकि उन दिनों मेरे पास साइकिल जैसा साधन भी नहीं था और बस रिक्शा यां दोस्तों का रहमो-करम(लिफ़्ट) काम आता था.

सो चल दिये अपनी मंजिल की तरफ़! वहाँ पहुँचते ही लगा कि हम जी रहे हैं दुबारा उन दिनों को, लगा ये शाम का सन्नाटा मुझे उन दिनों का शोर सुनायी दे रहा है.
कॉलेज नहीं बदला,न ही वो कैंटीन यानी कॉफ़ी हाउस लेकिन समय बदल गया था और मेरा वर्तमान.

अपने लिए वही क्रीम-रोल और दो समोसे के साथ हाई-स्वीट विद हॉट एस्प्रेसो का ऑर्डर जब दे रहा था तो लगा कि आज उधार मांगना पड़ेगा क्योंकि अचानक मेरा हाथ मेरी जेब की तरफ़ जाने लगा था जो उन दिनों की आदतों में शुमार था(क्योंकि अक्सर उधार खाना पड़ता था लेकिन हमेशा इस कॉफ़ी वाले ने मना नहीं किया)

आज वो वहाँ नहीं थे बस एक तस्वीर में माला के पीछे थे(यानी मर चुके थे)नारायण अंकल यानी कि बिहारी दादा. काउंटर पर बैठे लड़के का परिचय मिला तो पता चला कि वो उनका बेटा है. बेटा कैसे? (बिहारी अंकल ) का कोई बेटा तो नहीं था फ़िर ये?....पता चला कि बिहारी अंकल ने जिस-जिस को बचपन से पाला था यानी कि वो कुल तीन लोग थे उन सबमे आपस में उन्होने कैंटीन का जिम्मा अपने जीते -जी दे गये थे.

खैर फ़्लैश-बैक में चलते हैं, ..............मुझे याद है वो दिन जिस दिन मैने इस कॉलेज में पहला कदम रखा था नयी उमंगों के साथ थोड़ा रैगिंग का भी डर था, मेरे पहुँचते ही कॉलेज के कुछ सीनियर्स ने मुझे घेर लिया लेकिन उनमें से दो लड़के मेरे परिचित थे इसलिये मेरी रैगिंग तो टल गयी लेकिन बदले में मुझे उनको उसी कॉफ़ी-हाउस में दावत देनी पड़ी जो उस दिन का सौ रूपये के बराबर बिल बना.

लेकिन अब मैं अपने कॉलेज का एक आजाद पंछी यानी(जूनियर को पंछी) बन गया था.
लड़कियों में मैं उपस्थिति (अटैंशन) ले चुका था और बिहारी दादा के उधार-खाते में मेरा एकाउंट बन गया था...


आगे विस्तार से बताउंगा
क्रमशः.......

2 Response to "आज की शाम कॉलेज के कॉफ़ी-हाउस के नाम"

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विष्णु बैरागी Says....

जिन दिनों को आप याद कर रहे हैं वे जीवन के स्‍वर्णिम दिन होते हैं-कभी न भुलाए जा सकने वाले।
पोस्‍ट-शतक की बधाइयां। शतकों की शतक बनाइए। शुभ-मानाएं भी।

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PD Says....

शुद्ध ब्लौगरीय पोस्ट..
बढ़िया कहानी चल रही है.. आगे बढाईये.. :)