गुरुवार, 21 मई 2009

Blue Card अगर लागू हो जाये तो फ़ायदा सभी को और नुकसान सिर्फ़ अमेरिका को ही होगा

Posted on 6:56:00 pm by kamlesh madaan


अमेरिका ने जिस तरह ग्रीन कार्ड का नियम बना रखा है और जिस तरह से वो अब विदेशी कामगारों यां विदेशी हुनर को भुनाता आ रहा है , लगत है उसका वर्चस्व अब टूटने को है क्योंकि यूरोपीय संघ के देशों ने blue card को जारी करने की घोषणा कर दी है, लगता है अब भारत में रहने वाले हजारों कुशल लोगों के किस्मत के दरवाजे खुलने वाले हैं

अनुमान है कि अगले 20 वर्षों में यूरोपीय संघ को उच्च योग्यता प्राप्त दो करोड़ कुशल कर्मियों की आवश्यकता पड़ेगी. यह ज़रूरत अन्य देशों के सुयोग्य लोगों के नियंत्रित आव्रजन से ही पूरी की जा सकती है. यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों और यूरोपीय संसद को ऐसे विदेशियों के लिए ब्लू-कार्ड वीसा प्रणाली पर सहमत होने में वर्षों लग गये.

यूरोपीय संघ के किसी देश में रहने और काम करने की अनुमति देने वाला ब्लू-कार्ड 2011 से लागू होगा. यूरोपीय संसद की अनुशंसा के अनुसार, वह केवल ऐसे विदेशियों को मिल सकता है, जिनके पास विश्वविद्यालय स्तर की उच्चशिक्षा डिग्री हो या अपने काम में कम-से-कम पाँच वर्ष का ठोस अनुभव हो. सबसे ज़रूरी बात यह है कि यूरोपीय ब्लू-कार्ड के लिए आवेदन केवल वही लोग कर सकेंगे, जो प्रमाणित कर सकेंगे कि उन्हें नौकरी का प्रस्ताव मिल चुका है और वे जिस देश में जाना-रहना चाहते हैं, वहाँ उन्हें औसत स्थानीय वेतन से कम-से-कम 1.7 गुना अधिक वेतन मिलेगा. उदाहरण के लिए, जर्मनी में औसत वार्षिक वेतन 28 हज़ार यूरो, यानी करीब 30 लाख रूपये है.



सत्ताईस देशों के यूरोपीय संघ ने ब्लू कार्ड के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी है. इसके तहत विकासशील देशों के माहिर पेशेवरों को यूरोप में ज़्यादा काम मिल सकेगा और उन्हें वीज़ा मिलने में आसानी हो जाएगी. संघ के सदस्य देश बुलग़ारिया ने इस प्रस्ताव पर अपनी आपत्तियां वापस ले ली हैं और अब इसके लिए रास्ता साफ़ हो गया है.

यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष होसे मानुअल बारोसो ने सबसे पहले इस प्रस्ताव का ख़ाका तैयार किया. इसके तहत विकासशील देशों के माहिर पेशेवरों को यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में 4 साल तक के लिए रहने और काम करने का वीज़ा आसान शर्तों पर मिल सकेगा. वे अपने परिवारों को आसानी से यूरोपीय देश में ला सकेंगे और यहां घर और गाड़ी जैसी बुनियादी चीज़ों को हासिल करने में आसानी होगी. ज़ाहिर है, भारत में इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा सूचना तकनीक यानी आईटी और कंप्यूटर क्षेत्र के लोगों को मिलेगा.

यूरोपीय संघ के किसी देश में डेढ़ से दो साल तक काम करने के बाद ब्लू कार्ड धारक यूरोपीय संघ के दूसरे देश में जा सकेगा, वहां रोज़गार पा सकेगा और अपने परिवार को भी वहां ले जा सकेगा. हालांकि ब्लू कार्ड जारी करने का आख़िरी फ़ैसला यूरोपीय संघ के सदस्य देश ही करेंगे, यूरोपीय संघ नहीं और उन्हें इस बात को तय करने का अधिकार होगा कि वे देश में कितने प्रवासी कामगारों को प्रवेश की इजाज़त देना चाहते हैं. ब्लू कार्ड के तहत सबसे ज़्यादा मांग तकनीकी कामगारों और अस्पताल कर्मियों की होने की संभावना है.

मूल रूप से अमेरिका के ग्रीन कार्ड सिद्धांत को ध्यान में रख कर ही ब्लू कार्ड की रूप रेखा तैयार की गई है. ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों का मानना है कि विकासशील देशों के ज़्यादातर कुशल कामगार आसान शर्तों की वजह से अमेरिका का रुख़ कर लेते हैं, जिससे यूरोप में कमतर प्रतिभाएं ही आ पाती हैं.यूरोपीय संघ के आंकड़ों के मुताबिक़ ऑस्ट्रेलिया में लगभग 10 फ़ीसदी विदेशी कुशल पेशेवर काम करते हैं तो कनाडा में क़रीब 7.3 फ़ीसदी जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 3.2 प्रतिशत का है और यूरोपीय संघ में महज़ 1.7 फ़ीसदी का.

लेकिन ब्लू कार्ड अमल में आने तक अमेरिकी ग्रीन कार्ड से कई मामलों में कमज़ोर साबित हो सकता है. अमेरिका में ग्रीन कार्ड धारक व्यक्ति को वहां असीमित समय तक रहने का अधिकार है, जबकि यूरोप में ब्लू कार्ड के तहत कोई ज़्यादा से ज़्यादा चार साल ही रह सकेगा. हालांकि इस दौरान वह नये ब्लू कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है. ग्रीन कार्ड पाने वाला व्यक्ति अमेरिका के किसी भी हिस्से में काम कर सकता है, जबकि ब्लू कार्ड के तहत शुरू के डेढ़-दो साल उसे किसी एक देश में ही काम करना होगा.

ब्लू कार्ड जारी करने के नियम कड़े होंगे और इसकी सबसे मुश्किल शर्त होगी आमदनी की. यूरोपीय संघ का कोई भी देश अपनी औसत आय से कम से कम डेढ़ गुना ज़्यादा तनख़्वाह पर ही किसी को ब्लू कार्ड जारी कर सकता है. इसके लिए आवेदन करने वालों के पास कम से कम बैचलर डिग्री होनी चाहिए या पांच साल के काम का अनुभव होना चाहिए. ज़ाहिर है, ब्लू कार्ड के ज़रिए सिर्फ़ दक्ष और माहिर पेशेवरों को आकर्षित करने का प्रस्ताव है, औसत और निचले स्तर के कामगारों को नहीं.

ब्लू कार्ड का जो बुनियादी प्रस्ताव रखा गया था, वह इतना जटिल नहीं था लेकिन यूरोपीय आयोग का मानना है कि यूरोपीय संघ के सत्ताईस देशों की रज़ामंदी से ही ऐसे किसी प्रस्ताव को पास किया जाता है और सत्ताईस देशों में रज़ामंदी बनाने के लिए थोड़ा बहुत बदलाव तो करना ही पड़ता है.उम्मीद है कि नवंबर में इस प्रस्ताव पर यूरोपीय संघ के गृह मंत्रियों की बैठक में आख़िरी मुहर लग जाएगी, लेकिन सफ़र अभी लंबा है. प्रस्ताव पास होने के ढाई साल बाद ही इसे अमल में लाया जा सकेगा.

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