मंगलवार, 22 मई 2007
अब तबाही दूर नहीं !
कल्पना करें कि अगर एक लाख युध्द सैनिक युध्द के मैदान में हों कि अचानक् तेज गति से बारिश हो जाये यां बिजली कडकने लगे, और फ़िर कुछ देर में एक ऐसे तूफ़ान का सामना करना पडे जिसकी रफ़्तार इतनी तेज हो कि सब कुछ् तबाह हो जाये यां फ़िर एकाएक मौसम सर्द हो जाये तो फ़िर ये सैनिक इन अविश्वस्नीय बदलावों के बीच अपनी जान बचाने के बाद क्या युध्द के लिये जीवित रह पायेंगे? नहीं ! लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा सम्भव है?
तो जवाब है हॉ !
आज अमेरिका को इस बात के लिये तैयार रहना होगा कि अगर वो अपने (हार्प) यानी कि High-frequency Active Auroral Research Program के अनुसंधान को तुरंत नहीं बन्द करता है तो ये मुमकिन है कि आने वाला कल की तस्वीर का पहलू कुछ ज्यादा ही भयानक होगा ।
सन् 1970 में जब अमेरिका और संयुक्त् राष्ट्र संग के दिवंगत् राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़िब्नियूं ब्रिजेंस्की ने अपनी किताब "बिटविन टू ऐज़्" में इस बात का संशय जताया था कि "तकनीक किसी भी देश को लीडर बना सकती है किन्तु प्रक्रति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पूरी मानव जाति के लिये एक डरावना दुःस्वप्न है जिसमें पूरी मानव जाति का अस्तित्व खत्म हो सकता है।
एक प्रख्यात् साइंसदान डॉ रोसेलिक् बर्टल ने यह दावा करते हुये सबको चौंका दिया था कि " अमेरिकी सेना मौसम चक्र को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल के लिये प्रयासरत है जिससे वो इस दुनियां में अपनी बादशाहत स्थापित कर सके।". उनके इस् बयान के बाद संयुक्त् राष्ट्र में आपातकालीन् बैठक 'नवम्बर 2000' में बुलायी गयी जिसमें प्रमुख् मुद्दा था प्रक्रति में बदलाव को समझना और उस तकनीक पर पूरी तरह से नियंऋण् में रखना ।
इसके कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को एक भयंकर चक्रवात का सामना करना पडा जिसमें अमेरिका को बहुत अधिक जानमाल और करोडों के जान-माल का नुक्सान हुआ था । लोगों की नज़र में यह एक प्राक्रतिक आपदा थी लेकिन यह जानकारों की नजर में एक परीक्षण था जिसमें अमेरिका शत्-प्रतीशत् सफ़ल हुआ था. अमेरिका नें खंडन किया कि जिन अनुसधांनों से यह प्रयोग किया गया वो एक कम क्षमता वाले सौर ऊर्ज़ा केन्द हैं।
आईये अब जानते हैं कि आखिर यह(हार्प)अनुसधांन किस तरह से विनाशकारी है। दर-असल यह उच्च क्षमता वाले ऊर्ज़ा सयोंज़न केन्द्र हैं जिसके द्वारा सौर ऊर्ज़ा को केन्द्रित् करके उसे अधिक विकराल रूप में हवा,नमीं,दाब के साथ कहीं भी केन्द्रित् करके प्रेषण किया जा सकता है। यह अत्यधिक गर्मीं भी कर सकता है,तेज बारिश् भी कर सकता है साथ ही यह चक्रवात्,ऑधीं,बिज़ली और भूकम्प का भी उत्पादन कर सकता है। इसकी परिधि मैं आनें पर वायुयान,तेज गति मिसाईल यहॉ तक कि रडार भी नष्ट् हो सकती है।यह कहीं भी सूर्य की प्रचन्ड किरणों को भी विकराल् रूप में फ़ैलाने में सहायक भी है जिससे किसी भी देश अथवा प्रायोजित् स्थान् पर सूखा ला सकता है,पानी की कमीं यॉ अनेक जानलेवा बीमारियों को भी यह पैदा कर सकता है।
हार्प को मिलिट्री का "पेन्डोरा बाक्स" भी कहा जाता है जिसके प्रयोग के चलते ये दुनियां का सबसे खतरनाक हथियार साबित हुआ है
अब लगनें लगा है कि वो दिन दूर नहीं जब अमेरिका जैसे विकसित देश को अपना प्रभुत्व साबित करने के लिये इसका प्रयोग करनें में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। जिसके डर से अनेकों राष्ट्रों को उनकी गुलामी करनी पडेगी या उनके कोपभाजन के रूप में भयानक तबाही झेलनी पडेगी ।
7 Response to "अब तबाही दूर नहीं !"
Quite frightening.
A v scary scenario!
ghughuti basuti
ओड़िशा से लेकर हिमाचल प्रदेश तक ऐसे तूफान आकर अकल्पित विनाश करने लगे हैं। क्या यह उन्हीं के आक्रमण हैं या परीक्षण?
क्या हम ऐसी कोई तकनीकी विकसित नहीं कर सकते, जो मिसाइलों, हार्पों आदि को उसी तरह निगल ले, सोख ले, जैसे ब्लेक होल सूर्य जैसे तारों को...?
भयावह!!
बहुत ही चिन्ता का विषय है जल्द ही इसका विकल्प ढूँढना होगा...वैसे भी प्रक्रति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना हमेशा घातक सिध्द हुआ है जिसमें कभी-कभी प्रेषण कर्ता पर भी भारी असर हो जाता है मगर हमे इससे बचाव को सोचना चाहिये ये तो हमारे देश के वैज्ञानिक ही बता सकते है कि उन्होने इससे बचने का कोई उपाय खोज लिया है या अभी तक इन्तजार कर रहे है कि कब अमेरिका हार्पो का इस्तेमाल करेगा और हम पूरी मानव जाति का विनाश होते देखेंने।
सुनीता चोटिया(शानू)
पेंटागन ने आप को बता दिया। कमाल कर दिया आपने, बहुत खूब। भइया ब्लाग लिखो, कहां कहां से उड़ाकर टीप रहे हो।
एक अंतरिक्ष यान इस पृथ्वी पर उतरेगा, उससे कुछ यंत्र उतरेंगें, वे अपनी लैब को संदेश भेजेगें कि यहां पानी के कुछ आणविक अवशेष दिखाई पड़्ते हैं लगता है कि यहां कभी जीवन था।
एक टिप्पणी भेजें