मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

पीपुल ऎंड थिंग्स (एस एम एस )

Posted on 4:46:00 am by kamlesh madaan

पहली बार एक एस.एम.एस. मिला जो कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह गया, इस एस.एम.एस. ने मुझे वाकई में सोचने को मजबूर कर दिया कि वाकई में ऐसा है।

एस.एम.एस. में लिखा था जो अंग्रेजी में है.:

" People are made to be loved and thing are made to be used.
but Confusion is in the world,
Becouse people are being used and things r being Loved !! "


ये बात काफ़ी गहराई से कम शब्दों मे कही गयी है कि आज इंसान जिस भौतिकतावाद की ओर बढ रहा है उसके कारण वो संवेदनाओं को भूल ही गया है, एक आम इंसान अपने आपको कहीं दूर खोता जा रहा है.

आज हम लोग दो सौ रूपये का पिज्जा बर्गर तो खा सकते है लेकिन दरवाजे के बाहर खड़े किसी बच्चे यां भिखारी को दो रूपये नहीं देते क्योंकि हमें उअसमें बुराई लगती है.

अगर किसी का हक मारकर यां किसी गरीब से रिश्वत लेकर अपने परिवार का पेट पालते हैं तो यह कहाँ का न्याय है लेकिन शायद ये सब नियति बन गया है

अब जन्मदिन आयोजन को ही ले लीजिये मैने दो तरीकों से जन्मदिन आयोजन देखा जो वाकई में अपने आप में अदभुत थे उसमें मैं भी सम्मिलित हुआ था ये मुझे अलग ही एहसास कराता है.....

पहले वाला जन्मदिन आयोजन एक अच्छे पैसे वाले हमारे मित्र के बेटे का था जो एक पांचसितारा होटल में आयोजित था उसमें उन्होने अपने गाँव के सभी लोगों को बुलाया था अब गाँव वाले ठहरे सीधे-सादे गाँव वाले तो उन लोगों के रहन-सहन को वो भाई सहब सहन नहीं कर पा रहे थे लेकिन बर्दाश्त करना जरूरी था खैर अंत में उन भाई साहब नें किसी तरह झेल लिया
अब आखिरी में उन भाई साहब के साहबजादे ने गिफ़्ट में आये हुये कुछ पैन अपने गाँव के बुजुर्गों को भेंट कर दिये ये पैन उस लड़के के दादाजी ने दिये थे जो उस वक्त अमेरिका में रहते थे.
बात आयी-गयी हो गयी और कुछ समय बाद उसके दादाजी हिन्दुस्तान आये और यहीं रहने आये. एक दिन अनायास ही उन्होनें अपने बेटे और पोते से उन पैन जो बारह का सैट था उसके बारे में पूछा लेकिन जब उनके बेटे और पोते की कारगुजारी का पता लगा तो उन्होने अपना माथा पीट लिया. क्योंकि जिस पैन सैट को उनके पढे-लिखे बेटे और पोते ने बेकार की चीज समझकर अपने भोले-भाले गाँववालों को दे दिया था वो सब खालिस सोने के पैन थे. इतना सुनते ही तीनों दादा,बाप और बेटा गाँव की तरफ़ दौड़ पड़े लेकिन अब पछताये क्या होत जब चिड़िया चुग जाये खेत, गाँव वालों ने भी उसे बेकार की वस्तु सनझकर खो-खवा दिया था.

ये तो रही पैसे के भयंकर दुरूपयोग की महानतम कथा लेकिन दूसरे जन्मदिन आयोजन को मैं कभी भी नहीं भूल सकता क्योंकि ये मेरे लिये प्रेरणा दायक था.........

ये भी मेरे एक अमीर दोस्त का खुद का जन्मदिन था और उअसने मुझे केवल मुझे ही बुलावा भेजा मुझे उसके घर जाकर बड़ा अजीब लगा कि जो इतना बड़ा पैसे वाला इंसान है वो अपने जन्मदिन पर कोई आयोजन नहीं कर रहा है और मुझ जैसे बेकार के प्राणी को बुलाकर अपना समय खराब कर रहा है,

कुछ देर के बाद उसने मुझे बाहर चलने के लिये कहा मैं मना नहीं कर सका क्योंकि उसका जन्मदिन जो था खैर उसने अपनी चमचमाती हुयी गाड़ी निकाली और अपनी पत्नी और छोटे बेटे को साथ लिया, मैने समझा हम किसी बाहर होटल में जा रहे हैं लेकिन मेरा पूर्वानुमान बिल्कुल गलत निकला और वो हमें एक नेत्रहीन विधालय में ले गया जहाँ उसने नेत्रहीन बच्चों को एक दिन और एक दिन का खाना-पीना आयोजित किया था.
हकीकत में मेरे दिल में जो श्रध्दा और आश्चर्य के भाव आये थे वो उनकी पत्नी और बच्चे के मन में भी आये थे. लगभग पूरे दिन उन बच्चों को अपने हाथ से खाना परोसना और बिना किसी अपनी तारीफ़ के दिन बिताने वाले उस महान इंसान से पहली बार मिला था जो उस रूप में मेरे दोस्त के रूप में मेरे सामने था. घर वापस लौटते वक्त उनकी पत्नी की आँखों मे आँसूं थे और मेरे चेहरे पर एक अलग भाव था जो मैं व्यक्त नहीं कर सका.
उन्होने रास्ते में अपने बेटे के पूछने पर जब कहा कि इस प्रकार जन्मदिन मनाने का कारण? तो उन्होने अपने बेटे को समझाया कि बेटा भगवान ने तुम्हें तो आँखें दी हैं लेकिन अगर सोचो कि बिना आँखों के क्या तुम इस रंगीन दुनिया को देख पाते . इन बच्चों के मन से मैने आज दुनिया का सबसे बड़ा रंग देखा जो सच्चा था.

ये किस्से आज भी पैसे और मानवता के बीच के फ़ासले का फ़र्क बताते हैं मुझे. मुझे एह्सास होता है कि वाकई में जहाँ पैसा बर्बाद होता है उसका इस्तेमाल जरूरतमंदों के लिये नही होता है, लेकिन जरूरतमंदो का इस्तेमाल पैसे के लिये जरूर होता है|

1 Response to "पीपुल ऎंड थिंग्स (एस एम एस )"

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Udan Tashtari Says....

कमलेश भाई

सच कहूँ तो आप अति संवेदनशील हैं. कैसे गुजर कर रहे हैं इस जमाने में. जरा बदलिये वरना मुश्किलें बढ़ती जायेंगी.

आप तो अभी युवा हैं. हम अड़ जाये तो भी चल जायेगा...आपको जमाने के रंग में रंगने की गलत ही सलाह, मगर दे रहा हूँ अग्रज होने के नाते.

बाकि तो आप समझदार हैं. जूझने की शक्ति को मैं नहीं ललकार रहा. उसका हमेशा स्वागत है.