गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

फ़रवरी माह के नये सितारे (एक अवलोकन)

एक बार फ़िर से चिट्ठा अवलोकन का समय आ चुका है क्योंकि फ़रवरी माह का अंतिम दिन कल है लेकिन समय की कमी के कारण इसे एक दिन पहले ही प्रकाशित करने की मजबूरी है, पिछली चिट्ठा अवलोकन जो मेरे ब्लॉगर मित्रों की पोस्ट और शायद उसका अनुचित कारण ये भी हो सकता है..... के नाम से प्रकाशित हुई थी उनमें कुछ नाम और चिट्ठों की चर्चा की कमीं रह गयी थी आशा करता हूं कि इस बार ये कमी भी पूरी हो जाये लेकिन बढते चिट्ठाकारों और पोस्टों की संख्या के कारण मुख्य चिट्ठे ही शामिल हो पायेंगे! आप सभी लोगों से क्षमा चाहता हूँ

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पहली पोस्ट एक जन्मदिन के रूप में मिली को वाह मनी ब्लॉग की थी कमल जी को शुभकामनाओं के साथ बने रहने के लिये धन्यवाद क्योंकि मैं समझता हूँ कि उनके पाठक दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ रहे हैं, आगे रवि रतलामी जी जिनकी चर्चा मैं कभी भी नहीं कर सका लेकिन वो हम सब के आदर्श और पथ-प्रदर्शक भी हैं उन्होने भी चिट्ठाकारों के लिये 13 यक्ष प्रश्न.... पूछ कर सबको हैरत और एक अच्छा रास्ता दिया आगे बढने का.

यूं तो फ़रवरी माह काफ़ी उतार चढाव वाला था लेकिन यह महीना बेटियों और चोखेरबालियों के लिये भी जाना जायेगा जिन्होने अपने बेटी और महिला यां औरत होने के अहसास को जगाये रखा, हालांकि भड़ास में भी काफ़ी उथल-पुथल भी मची इस बात को लेकर कि यशवंत जी ने चोखेर बाली में प्रवेश किया लेकिन उनका आना जाने के बराबर रहा और इस अप्रत्याशित कदम के कारण ब्लॉगजगत में काफ़ी हो-हल्ला भी मचा.

नीलिमा जी जहाँ अपनी फ़ेमेनिज्म से बाहर नहीं निकल पा रहीं थी और उनकी गोल रोटियां चुगली कर रहीं थीं वहीं दूसरी ओर निशा जी हमें नये-नये पकवान बनाना सिखा रहीं थीं.


अभी दो ही दिन गुजरे थे कि समीर जी अचानक से अपनी उड़नतश्तरी में प्रकट हुये और अपने लोटे के गायब होने की सूचना दर्ज करायी तो दूसरी ओर पंगेबाज भाई जो एकदम से सीरियस होकर पंगेबाजी कर रहे थे उनको शायद अपने बचपन का कोई कीड़ा मिल गया था जो वो अपने सभी ब्लॉगर बंधुओं को दिखा-दिखाकर खुश हो रहे थे(यानी कि अपने बचपन में खो गये थे),भाई कीर्तीश जो अपने कार्टून्स के द्वारा काफ़ी पैनापन लिये रहे चाहे वो नैनो हो यां किडनी कांड सबके लिये वो चहेते बने रहे,तो वहीं दूसरी ओर आलोक पुराणिक जी अपने छात्रों के निबन्ध टीप-टीप कर टॉप पर बने रहे! कमाल का बैलेंस है भिड़ू
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हालांकि 23 जनवरी को ही बेटियों के ब्लॉग की नीवं पड़ गयी थी लेकिन फ़रवरी आने तक इसका स्वरूप और काफ़ी विस्तार हो चुका था अविनाश जी ने एक साहसिक और बेटियों को समर्पित ब्लॉग बनाया जो चर्चा का विषय भी बना और एक बाप-बेटी की हसरतों और उनके संवादों का आइना भी बना, वहीं 4 फ़रवरी को जनवरी की महिलाओं के ऊपर कटाक्ष और वाद-विवाद ने चोखेर बाली नामक ब्लॉग को जन्म दिया जो नारी शक्ति और एक मिसाल का सूचक बनता जा रहा है धन्यवाद बेटियों! धन्यवाद चोखेरबालियों

फ़िर मोहल्ले में चलना होगा क्योंकि दीप्ति दुबे जी बोल रही हैं इस बार जो दलित और सवर्णो की चिंगारी इस पोस्ट में उठी थी उसे दिलीप मंडल जी ने अपने आंकड़ों और वाद-विवाद ने शोला बनाकर रख दिया, हालाकि ये विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा तो वहीं दूसरी ओर भड़ास में भी आपसी मतभेद की छिटपुट घटनायें हुयीं कुछ लोगों ने अपने ही साथियों को भड़ास के स्तर गिराने और चोला बदलने के विवाद को उठाया लेकिन भड़ास! भड़ास है फ़िर से एक नया हिट फ़ार्मूला लेकर आया वो भी आधासच के जरिये (आधासच एक स्पेशल ब्लॉग है जिसे हाइनेस मनीषा और उनकी अन्य साथी संचालित करती हैं )


लेकिन मोहल्ला और भड़ास में एक ही कमी दिखी वो है किसी एक पोस्ट के ज्यादा देर तक टिके रहने की इस बात को लेकर यशवंत जी और संजय जी ने भी पोस्ट लिखी और मैने भी एक समाधान भी दिया था! अब देखें आगे क्या इस पर अमल होता है यां नहीं ये तो वक्त बतायेगा.
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अब कुछ नये और कुछ सक्रिय चेहरों की जिन्हे हम जानते है और नहीं भी

शुरूआत अजदक वाले प्रमोद जी से करते है इस बार की उनकी सक्रियता और चुहलबाजियां लोगों ने चटखारे ले-लेकर पढीं तो वहीं दूसरी ओर हमारे बीच एक वरिष्ठ और उम्दा कहानीकार सूरजप्रकाश जी भी आये जिनकी कहानियों ने ब्लॉगजगत में एक कमी को पूरा सा कर दिया है आशा करते है वो इसी तरह अपने लेखन को आगे बढायेंगे,
रविश कुमार जी के कस्बे का चित्रण इस बार अच्छा लगा तो वहीं दूसरी ओर अविनाश जी की दिल्ली दरभंगा की छोटी लाइन भी देखने को मिली,कहीं किसानों के लिये हमारे पंकज अवधिया जी जुटे रहे हैं तो कहीं दूसरी ओर सेलगुरू नये-नये मोबाइल फ़ोन दिखा-दिखा कर हम सबका दिमाग खराब कर रहे हैं.

चलो इस बार मैथिली जी के जिन्दगी-लाइफ़ की टक्कर में हमने भी अपना स्टाइल ब्लॉग मैदान में उतार दिया है(वैसे मैथिली जी के मैं कहीं आगे-पीछे भी नहीं टिकता हूँ)
इस बार खराशें में अपनी मनमोहक मुस्कान लिये सुरजीत दिखायी दिये तो दूसरी ओर जीतू जी भी हर तरफ़ से कमाई के चक्कर में लगे रहे क्यों न लगें आखिर एडसैंस वालों ने नया मकान गिफ़्ट जो दिया है(माफ़ कीजियेगा मजाक कर रहा हूँ वरना जीतू जी मुझे मारने(मिलने) दौड़े चले आयेंगे और फ़िर बतायेंगे कि उनके चिट्ठे पर एडसैंस का क्या हो रहा है?)

खैर ममता जी ने भी डबल जश्न मनाया एक तो ब्लॉग की सालगिरह का और दूसरा दो सौ वें चिट्ठे की पोस्टिंग का! बधाई....
यमराज जी भी अचानक प्रकट हुये तो कॉपीराइट को लेकर हमारे तीसरे खंबे वाले दिनेशराय द्विवेदी जी भी डराते रहे

हमारे ज्ञान दद्दा जी ने चुपके-चुपके इस बार के रेल बजट में अपना ट्रांसफ़र यानी कि विभाग की अदला-बदली करके ब्लॉगजगत को ज्ञान बिड़ी की सप्लाई में कटौती करने का एलान किया है ,देखते हैं कब तक चलेंगें

जाते-जाते.......
एक बात और कहना चाहूँगा कि यह माह भी महिला चिट्ठाकारों और बेटियों,महिलाओं और चोखेरबालियों के नाम रहा लगभग हर बीस में से आठ-नौ औसतन महिला चिट्ठे यां उनसे जुड़ी खबरों,वाद-विवाद का अनुपात रहा जो ब्लॉगजगत में महिलाओं की बढती हिस्सेदारी को प्रबल करता है.


कमलेश मदान

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

मार्लबोरो लाइट (Marlboro Light)

मार्लबोरो लाइट- ये कहानी है एक ऐसी पीढी की जिसने .आधुनिकता की अंधी दौड़ में खुद को पीछे कितना धकेल दिया है, ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपना चेहरा कितनी बार बदला और हर बार उसका चेहरा पहले से ज्यादा बदसूरत होता चला गया.

आज अपने ऑफ़िस के बाहर एक छोटी सी अच्छी खासी दुकान पर चाय -नाश्ता करने गया तो कुछ ही देर में एक जींस टी-शर्ट पहने एक लड़की प्रकट हुयी,आँखों पर बड़ा सा साठ के दशक का चश्मा चढाये हुये, बड़े ही इत्मीनान से बोलती है "फ़ोर मार्लबोरो लाइट प्लीज".


बस यहीं से कहानी बनाने का आइडिया मिला.......


नोट: ये कहानी लड़कियों और युवा वर्ग में बढते नशे और डिप्रेशन के फ़लस्वरूप लिखी गयी है, इसके पात्र और घटनायें काल्पनिक है अतः कोई भी वाद-विवाद और इस कहानी को अन्यथा ना ले!


अब कहानी की ओर चलें

अनन्या! हाँ उसका नाम अनन्या ही था, पैदा हुयी थी तो माँ-बाप को तो जैसे सारी खुशियाँ एक साथ मिल गयीं थीं, सबकी आँखों का तारा थी वो
उसकी हर फ़रमाइश,हर इच्छा पलक झपकते ही पूरी हो जाती थी.
कुछ बड़ी हुयी तो बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया, बस यहीं से उसकी जिंदगी में दोहराव आने लगा, खालीपन उसकी जिंदगी को एक अनजानी दिशा की ओर धकेल रहा था.
जिंदगी में बदलाव,लोगों के प्रति नजरिया,शारीरिक बनावट और बढती उम्र उसे और भी उलझन में डाले हुये थे, समझ नहीं आता था कि अब क्या करे-क्या न करे?
जैसे तैसे बोर्डिंग से पीछा छुड़ाकर कॉलेज में दाखिला लिया था, पर यहां भी अकेलापन उसका पीछा कर रहा था लेकिन अब उसको उन बातों से लड़ने की शक्ति और समझ आ चुकी थी, दोस्तों की संगत में सिगरेट और शराब उसको अच्छे लगने लगे थे.
सोचती थी जिंदगी के मजे नहीं लूटे तो क्या किया?बस! यही सोच उसे और कमजोर करने लगी,

बात-बात पर चिड़चिड़ापन,मानसिक थकान,लड़ाई झगड़े उसकी पहचान बन चुके थे,भ्रम में थी कि दुनियां से टक्कर लेना कितना आसान है,
कॉलेज के बिगड़े रईसों के ग्रुप की शान थी वो, इसी दौरान जिंदगी के सारे अनछुये पहलुओं को जान गयी थी, अब अनन्या बड़ी हो गयी थी यां ये कह सकते हैं कि "यूथ" लेबल वाली हो गयी थी.

अपने अतीत को तो उसने शायद अपने कपड़ों जैसे चिंदी-चिंदी कर रखा था बस बचा था एक नाम जो उसके माँ-बाप ने बड़ी हसरतों से उसे दिया था.

अभी कल ही की तो बात है एक डिस्को में रेव-पार्टी के दौरान पुलिस के छापे में उसका भी नाम शहर के अखबार में आया था काफ़ी (बद)नाम हुयी थी माँ-बाप ने तो घर से निकाल दिया, लेकिन उसको तो मानों कानों में जूँ तक नहीं रेंगी.

कुछ समय बाद अखबार के एक कोने में एक फ़ोटो दिखायी देता है और साथ में उसके बारें में भी लिखा है कि एक लड़की ने बिल्डिंग के सातवें फ़्लोर से कूदकर आत्म-हत्या कर ली है, मरने का कारण नशीली गोलियों का सेवन बताया गया था लेकिन सुसाइड नोट में उसने लिखा था कि "मैं आजाद होना चाहती हूँ"


वो अनन्या ही थी!.............. अब वो आजाद थी!

रविवार, 24 फ़रवरी 2008

सूचना का अधिकार (Right to Information Act)

सूचना का अधिकार (Right to Information Act): सरकारी पैसा,कामकाज और सूचना पाना जो पहले कभी ना-मुमकिन हुआ करता था आज हर आदमी के बस की बात हो चुका है.

इस अधिकार को ना केवल आम आदमी बल्कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाल हर शख्स कर स्कता है और अपने हक के बारे में जानकारी और आँकड़े जुटा सकता है.

लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी होता है इस अधिकार को जन-साधारण त पहुँचाने और उनको उनके अधिकारों के बारे में इंगित करने की.तो आइये पहले हम खुद ही इस बारें में पता लगाते हैं कि क्या है ये सूचना का अधिकार और कैसे ये आम आदमी का अधिकार है

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है।

सूचनाऍ कहाँ से मिलेगी ?

-केन्द्र सरकार,राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय में लोक सूचना अधिकारियों को नामित किया गया है।
-लोक सूचना अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें.

कौन सी सूचनाऍ नही मिलेंगी ?

-जो भारत की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो.

-जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल,अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो.
-जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड
-जिससे किसी व्यक्ति के निजी जिन्दगी में दखल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो.

स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाऍ कौन सी है ?

-हर सरकारी कार्यालय की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें

-अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण ।
-अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन ।
-विभाग के दस्तावेजों की सूची ।
-विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा ।
-लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा।
-लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता

सूचना पाने की प्रक्रिया क्या है?

-सूचना पाने के लिए सरकारी कार्यालय में नियुक्त लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा करें । आवेदन पत्र जमा करने की पावती जरुर लें ।
-आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना जरुरी है ।
-प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रुप मे सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना जरुरी है

सूचना देने की अवधि क्या है ?

सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी
-साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन
-जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे
-तृतीय पक्ष 40 दिन
-मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन

सूचना पाने के लिए आवेदन कैसे बनाऍ ?

-लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता ।
-आवेदक का नाम एवं पता ।
-चाही गई जानकारी का विषय ।
-चाही गई जानकारी की अवधि ।
-चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण ।
-जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे-प्रतिलिपि /नमूना/लिखित/निरिक्षण ।
-गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं ।
-आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर ।
-आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक ।

सूचना न मिलने पर क्या करे ?
-यदि आपको समय सीमा में सूचना नहीं मिलती है, तब आप अपनी पहली अपील विभाग के अपीलीय अधिकारी को, सूचना न मिलने के 30 दिनों के अन्दर , कर सकते हैं ।
-निर्धारित समय सीमा में सूचना न मिलने पर आप राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को सीधा शिकायत भी कर सकते हैं ।
-अगर आप पहली अपील से असंतुष्ट है तब आप दूसरी अपील के फैसले के 90 दिनों के अन्दर राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को कर सकते हैं ।

सूचना न देने पर क्या सजा है ?

लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर गलत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है

अपील कैसे करे ?


-अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता।
-लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता ।
-आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं ।
-अपील का विषय एवं विवरण ।
-अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं ।
-किस आधार पर मदद चाहते हैं ।
-अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता ।
-आदेश , फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि

सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क

विवरण केन्द्र सरकार


आवेदन
शुल्क रु. 10/-

अन्य शुल्क ए-4 या ए-3 के कागज के लिए रु. 2/ प्रति पेज
बड़े आकार का कागज/नमूना के लिए वास्तविक मूल्य
फ्लापी या सीडी के लिए रु. 50/-

रिकार्ड निरिक्षण का शुल्क पहला घंटा -नि.शुल्क, तत्पश्चात हर घंटे के लिए रु. 5/-

अदायगी नकद / बैंक ड्राफ्ट / बैंकर्स चैक / पोस्टल आडर्र के रुप में


नोट: गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नही देना पड़ता हैं


ज्यादा जानकारी के लिये पता है और वेबसाईट भी है

केन्द्र सूचना आयोग ब्लाँक न. 4, पाँचवी मंजिल, पुराना जे.एन.यू. कैम्पस,

नई दिल्ली-110 067, वेबसाइट: cic.gov.in , फोन/फैक्स -011-26717354


आप भारत का राजपत्र भी देख सकते हैं बस यहाँ क्लिक करें,ये पी.डी.एफ़. में है और चाहे तो सेव यां प्रिन्ट भी कर सकते हैं.

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

क्या स्त्रियां हीं स्त्रियों की दुश्मन होती हैं यां कुछ और?

ये पोस्ट लिखते समय मैने बहुत सी बातें आगे रखी जो मेरे निजी अनुभव और काफ़ी कुछ इन दिनों चल रही बहस के कारण म्रे दिमाग में घूम रहीं थीं....

मेरी बेटी जो केवल सवा साल की है अभी-अभी चलना ही सीख रही है, आज उसके साथ मैने एक अनुभव सीखा जो मुझे काफ़ी अन्दर तक कचोटता रहा..

हुआ ये कि मेरी बेटी आज चलते-चलते हँस रही थी और मैने अपनी पत्नी जी से कहा कि उसे काला टीका लगा दो ताकि किसी की नजर ना लग जाये!उस पर मेरी पत्नी ने जवाब दिया कि "काला टीका केवल लड़को को ही लगाते है लड़कियों को नहीं लगाते",

ये बात मेरे दिल में गहरे से चुभ गयी क्योंकि आज के जमाने में ऐसी दकियानूसी बातें वो भी किसी माँ और किसी शिक्षित औरत के मुँह से सुनकर शर्म सी आने लगी क्योंकि जो औरते अभी भी अपने आपको इस समाज में ढाल नहीं पायी हैं वो जी कैसे रहीं हैं? बात मेरी पत्नी की नहीं है बल्कि उन तमाम औरतों की है जो इस निर्गुण को अपनी ही बेटियों में सीख के रूप में देती हैं कि " बेटा मर्दों की बराबरी कभी न करना, अपने पति की बात को नीचा नहीं होने देना,चुपचाप एक कोने में पड़ी रहना-दुख हो तो रो लेना लेकिन अपने घर-ससुराल की इज्जत बनाये रखना"आदि

बचपन से ही बेटों और बेटियों के लिये अलग-अलग खिलौने,पसंद,कपड़े,पहचान ये सब किसी हद तक एक बेटी को उसके लड़की होने का एहसास करवाते रहते हैं

बेटियां जब बड़ी होने लगती हैं तो शर्म और संकोच के कारण अपने शारीरिक विकास की बात केवल अपनी माँ के समक्ष ही रखती है और माएं अक्सर उन्हें कई प्रकार की उलझनों में डाले रखती हैं जिससे वो आगे भी किसी मर्द पर भरोसा नहीं कर सकती है शायद उसे अपने स्त्री होना अपराधबोध लगने लगता है

दूसरी बात हर बाप अपनी बेटियों की परेशानी को जानते हुए भी जेन्डर-गैप के कारण अपनी बेटी का मित्र नहीं बन सकता क्योंकि समाज में ये सब बुरा है लेकिन वो चुपचाप अपनी बेटी-पत्नी की पीड़ा को देखता रहता है लेकिन मुहँ से कुछ नहीं कह सकता क्योंकि कुछ मर्द होने का अभिमान और कुछ सामजिक बंधन उसे उस चक्रव्यूह में डाले रखते हैं जिससे वो उस धर्म को निभाने में पीछे हट जाता है.

अब इस बात को समझना ही काफ़ी मुश्किल होता जा रहा है कि हम किसे दोष दें? क्या इस सामाजिक सिस्टम यां किसी माँ द्वारा किसी बेटी को दी गयी नसीहत को?

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

क्या मेरे इस सुझाव पर ब्लॉगवाणी,नारद और चिट्ठाजगत ध्यान देंगें...

आज भड़ास पर प्रकाशित लेख तब ब्लागवाणी पर बाकी ब्लागों का क्या होगा? पढकर थोड़ी चिंता तो हुई लेकिन बिना विकल्प खोजने से पहले उनका निराशावादी होना अटपटा सा लगा!

पहले-पहल यशवंत जी को धन्यवाद जो उन्होने इस समस्या को उठाया और दूसरे भाई संजय जी को भी धन्यवाद जिन्होने इस व्यापक समस्या को गति प्रदान की लेकिन अब मैं यह कहना चाहूँगा कि केवल अपनी वेबसाईट बनाने से और खुद को किसी एग्रीग्रेटर से प्रथक कर लेनें से किसी भी ब्लॉग का भला नहीं होना.

अगर गूगल में सर्च करे और आपका ब्लॉग पहले दिखायी देता है..यदि गूगल से सर्च के बाद ब्लॉग का नाम दिखायी न दे तब?

इस सवाल का जवाब खुद ब खुद सामने है कि इन शीर्ष ब्लॉग एग्रीग्रेटरों ने सभी लोगों और क्म्यूनिटीज ब्लॉग्स को एक स्थायी मंच प्रदान किया है जो एक सराहनीय कदम है.

मैं समझता हूं कि किसी एग्रीग्रेटर ने अभी तक पैसे के लिये काम नहीं किया है और शायद पैसा उनकी प्राथमिकता नहीं है वो तो बस एक पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना काम किये जा रहे हैं.

और रही बात अपडेट और जगह की तो इसका सीधा सरल उपाय है नीचे



तब ब्लागवाणी पर बाकी ब्लागों का क्या होगा?

>>मरकी<< जी हाँ मरकी ही है इस का विकल्प और सबसे बढिया उपाय जो कम जगह में ज्यादा काम करता है, इसके लगने से ऐसा लगेगा जैसे कोई न्यूज अपडेट हो रही हो और किसी भी चिट्ठे पर क्लिक करते ही चिट्ठा खुल जाये!

है न सबसे आसान काम!

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

इलाहाबाद! मेरी नजर से और ज्ञानदत्त दद्दा से मुलाकात

तो लो भाई आखिर हम इलाहाबाद हो ही आये! माघ के इस पवित्र माह में इलाहाबाद जाना तो एक सुखद अनुभूती तो थी ही लेकिन साथ ही साथ पांडे जी से मुलाकात के लिये मन मचल रहा था, अब आगे क्या हुआ......

पहले इलाहाबाद के बारे में : वाकई में इलाहाबाद एक सुंदर शहर है जिसमें न तो कोई महानगरीय शोर-गुल है न तो कोई झाम-झंझट, अपनी धरोहर और संस्क्रति को सहेजकर रखना कोई इलाहाबाद से सीखे,ऐसा लगा कि हम इटली सरीखे देश की यात्रा कर रहे हों.

ज्यादा कुछ नहीं घूम पाये क्योंकि किसी शादी के सिलसिले में गये थे और काफ़ी व्यस्त कार्यक्रम था जिसमे एक ही दिन में वाराणसी की यात्रा भी शामिल थी पर जब सुबह पाँच बजे आगरा से इलाहाबाद पहुँचे तो सुबह-सुबह स्टेशन पर भीड़ देखकर लगा कि मैं शायद गलत स्टेशन पर उतर गया हूँ लेकिन यह इलाहाबाद था और माघ मेला अपने चरम पर था, इसके बाद सात-आठ बजे जब स्नानादि से निव्रत्त होकर बाजार में आये तो लगा गलियां सिर्फ़ रतलाम में ही नहीं हैं बल्कि इलाहाबाद भी एक गलियों का शहर है, सुबह-सुबह पूरी-सब्जी(शायद उसे वहाँ फ़ुल्की कहते हैं) और मक्खन-मलाई का कुल्हड़ का स्वाद चखा तो मन प्रसन्न हो उठा इसके बाद कुछ हमारे शुभचिंतकों ने हमें छोटी-छोटी और काफ़ी छोटी जलेबियां खिलायीं जो इतनी स्वादिष्ट थी कि मन तो कर रहा था कि वहीं अपना घर लेकर सुबह शाम इन्ही व्यंजनों में अपना समय व्यतीत करें,

ग्यारह बजे के आसपास हम लोग बस के द्वारा वाराणसी की ओर चले कुछ देर में ही शास्त्री पुल के ऊपर जब बस पहुँची तो लगा कि जैसे हमारे आने का मकसद पूरा हो उठा क्योंकि संगम का विहंगम द्रश्य देखने को मिला.

सबसे पहले हमने पांडे जी का फ़ोन यां मोबाइल नं जानने की कोशिश की और असफ़ल रहे फ़िर हमने उनके ब्लॉग पर टिप्पणी के रूप में अपना मोबाइल नं और परिचय दिया शायद मुझे लगा कि अगर वो ब्लॉग को देखेंगे तो मुझे जरूर फ़ोन करेंगें हो सकता है कि अगले दिन भी करें लेकिन पांडे जी बहुत ही सक्रिय ब्लॉगर है और तुरन्त लगभग एक घंटे में उनका जवाब एस.एम.एस. के रूप में आ गया जो मेरे लिये इस यात्रा में किसी रोमांच से कम नहीं था.

अब आगे....
खैर अगले दिन भी लौटने में देरी हो गयी कारण था कि एक स्कूली छात्रा को एक ट्रक नें रौंद दिया जिससे हाइवे पर जाम लग गया था ( इसका जिक्र उन्होने अपने कल के ब्लॉग पर भी किया है) जिसके कारण मेरे आगरा लौटने का समय कुछ ही शेष रह गया था अतः मैने पांडे जी को फ़ोन मिलाय तो वो अभी ऑफ़िस नहीं पहुँचे थे फ़ौर उन्होने मुझे अपने दफ़्तर की लोकेशन भी समझा दी, फ़िर भी मैं उनसे मिलने को नहीं जा सका और इस बारे में मैने उनसे खेद भी प्रकट किया क्योंकि इलाहाबद जाकर उनसे नहीं मिल सके थे.

खैर मिलना तो अब लगा रहेगा लेकिन कुछ बातें पांडे जी की अच्छी लगीं और कुछ बुरीं,

उनकी सबसे बड़ी अच्छाई ये है कि वो बहुत सुह्र्दय और म्रदभाषी हैं किसी को भी तुरंत अपने जाल में फ़साना उन्हे बखूबी आता है(माफ़ कीजियेगा यहाँ जाल का मतलब मीठे शब्दों के जाल से है), उनका तुरंत मेरी टिप्पणी का जवाब देना उनके सक्रियता की बड़ी निशानी है.

उनकी बुराई! ये बुराई मुझे उनकी अच्छाई सी लगी लेकिन मुझे उसमें अपनापन नहीं मिला लगा जैसे वो इतिश्री कर रहे हों.. दर-असल में वो मेरी हर बात का जवाब अंग्रेजी में दिये जा रहे थे और मैं हिन्दी बोले जा रहा था कभी मुझे अपने हिन्दी होने पर गुस्सा आ रहा था और कभी मुझे उनके आज के युवाओं के साथ कदम दर कदम मिलाकर चलने से खीझ हो रही थी. अब कर भी क्या सकता था उनके शहर में महमान था तो सहन करना ही था. ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी मुझे नहीं आती लेकिन हिन्दी को बढावा देने के लिये मै कहीं भी इसके प्रयोग से बचता हूँ.

पांडे जी आप सुन रहे हैं ना! छोटे को माफ़ कर देना.

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

आज मेरा नया ब्लॉग शुरू हुआ है

दोस्तों और मेरे आदरणीय चिट्ठाकरो-पाठकों! आज मैने अपना नया ब्लॉग क्या स्टाइल है! शुरू किया है, जिसमें आपको नये-नये फ़ैशन ट्रेंड्स,युवाओं की पसंद,घर-ऑफ़िस का वातावरण,बाजार,नये उत्पाद और भी बहुत कुछ तो क्लिक करें और मुझे आगे बढने के लिये पथ-प्रदर्शित करें

आपका
कमलेश मदान


विशेष अनुरोधः
नारद-ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत एवं हिन्दी ब्लॉग्स के मुख्य कार्यकारिणी सदस्यों से अनुरोध है कि वो इस चिट्ठे को अपने-अपने एग्रीग्रेटरों से जोड़ देवें,मैं आप सभी लोगों का आभारी रहूँगा.

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

तस्वीरें जो बोलती हैं-भाग 3

लीजिये फ़िर से भारत को तस्वीरों के माध्यम से देखने-समझने के लिये प्रस्तुत है मेरी ये पोस्ट.

पहले और द्वित्तीय भाग के बाद आज फ़िर से उसी श्रंखला को दोहराने का मन हो चला तो मेरे द्वारा सहेजकर रखी गयीं इन तस्वीरों को पोस्ट के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.

नोट- ये तस्वीरें भारत के जाने-माने छायाकारों की हैं जिनके शीर्षक (टाईटल) उन्हीं की देन हैं,मैं फ़िर से कहूंगा कि प्रत्येक तस्वीर से एक पोस्ट बनायी जा सकती थी लेकिन ऐसा करने से शायद उस तस्वीर की आत्मा ही मर जाती
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Feast for a mini Sadhu---फ़ीस्ट फ़ॉर ए मिनी साधु---एक छोटे साधु का त्यौहार




















Snow Fall---स्नो फ़ॉल---बर्फ़ का गिरना















Shy and Curious---शाय एंड क्यूरियस---शर्मीली और अभिलाषी
















Siva's Gate--सिवा'स गेट---शिव का द्वार




















Pan Sales Banaras--पान सेल्स बनारस---पान की बिक्री बनारस में















LunchTime-लंचटाईम---नाश्ते का समय


















Temple entrance-टैम्पल एंटरैंस---मंदिर का प्रवेश द्वार






















Floating veg--फ़्लोटिंग वेज---तैरती सब्जियां





















Power Supply--पावर सप्लाई---बिजली वितरण
















Shaving Heads---शेविंग हैड्स---मुंडाते हुये सिर




















Tension---टेंशन---चिंता















The believers--द बिलीवर्स---श्रद्दालु
















This is my Kingdom---दिस इस माय किंगडम---ये मेरा राज्य है
















In GuruDwara---इन गुरूद्वारा---गुरूद्वारे में















Childhood Dreams---चाईल्डहुड ड्रीम्स---बचपन के सपने

















Customer is Customerकस्टमर इस कस्टमर---ग्राहक ग्राहक होता है
















3 Generationsथ्री जनरेशन्स---तीन पीढियां

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

सवालः आप एक औरत को किस रूप में देखना चाहते हैं और क्यों?

लगभग पिछले एक महीनें से मेरे चिट्ठे-विश्लेषण और चिट्ठाकरों की बहस और विवाद अब नयी शक्ल लेता जा रहा है अब लग रहा है कि सभी महिला ब्लॉगर्स जो अपने द्वारा निर्मित मंच "चोखेर बाली" से एक अलग दिशा बना रही हैं जो शायद सार्थक भी हो, कुछ वरिष्ठ चिट्ठाकरों और महिला चिट्ठाकारों के अनसुलझे सवाल और उससे भी उलझे जवाब, कुछेक लोगों का स्वागत , कुछ का उपहास,कुछ की सलाह और कुछ की मूकदर्शिकता.... ये सब कुछ तो अधूरापन लिये हुये हैं जो एक स्त्री,औरत और लड़की होने को सार्थक नहीं कर पाया है. अब तक सभी लोगों ने अपनी-अपनी बात रखी लेकिन निष्कर्ष (( 0 )) निकला लेकिन ये बाते अपने पीछे और काफ़ी सवाल छोड़ गये हैं जिनमें से मैं कुछ सवाल कुछ अंतराल पर सभी ब्लॉगर्स,खासकर महिला ब्लॉगर्स से भी पूछना चाहूंगा.

आज का सवाल
आप एक औरत को किस रूप में देखना चाहते हैं और क्यों?

नोटःक्रपया अपने जवाब मुझे टिप्पणी के रूप में दें तो ज्यादा अच्छा यां तो कोई ब्लॉग भी लिख सकते हैं.

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

लो! अब यहाँ भी राजनीति की बू आने लगी

मेरे सभी भड़ासी,मोहल्लेवालों,हिन्दी चिट्ठाकारों, रचनाकारों,ब्लॉगर भाईयों को मैं ये संदेश देना चाहता हूँ कि कुछ अराजकता अब हमारे चिट्ठासमुदाय में भी फ़ैल रही है, क्या आप उस विरोध के स्वरों को दबानें में मेरी मदद करेंगें?

बेनामी ने कहा…

भईया थोड़ा संतुलन बना कर लिखना चाहिये ना… बाल ठाकरे का प्रश्न आज भी अनुत्तरित है कि "यदि बिहारी इतने ही मेहनती, ईमानदार, कर्मठ हैं तो ये सारी बातें वे बिहार में क्यों नहीं लगाते" या शायद बिहार को उन्होंने शहाबुद्दीनों के हवाले कर दिया है? पटना को मुम्बई नहीं बना सकते तो कम से कम मुम्बई को पटना तो मत बनाओ भाई.



मेरी कल की पोस्ट आमची मुम्बई! एक दुःस्वप्न पर एक बेनामी भाई ने सीधे बिहार और उत्तर भारतीयों को खुल्लम-खुल्ला कह दिया है कि उन लोगों को अपने ही प्रदेश में काम करना चाहिये, अब भाई कोई इनको कौन समझायेगा कि मुम्बई इन भाई साहब और राज ठाकरे जैसे छुटभैये नेताओं की बपौती नहीं है जो आप किसी को भी महाराष्ट्र से बेदखल कर दोगे, अरे भाई क्या भारत में रहने के लिये मुम्बई ही मिला है हमको? अगर हमने पलायन करना शुरू कर दिया ना तो खाने लाले ना पड़ जायें तो हमको उत्तर भारतीय कहना.

माना कि हमें अपने ही प्रदेशों में काम नहीं लेकिन हम अपनी सरकारों के कारण ऐसे हैं शहाबुद्दीन जैसे कीड़े तो इसी सरकारों की उपज हैं जो हमेशा धरती को खोखला करते रहते हैं, लेकिन उससे भी घटिया सोच आपने पाल रखी है जो हम उत्तर भारतीयों को नसीहत देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.
अगर इतना ही दम है आपकी बातों में तो सामने आकर बात करनी थी ना कि उन चन्द बीमार मानसिकता वाले लोगों की तरह छिपते-छिपाते फ़िर रहे हो बेचारे टैक्सी-रिक्शा और नौकरीपेशा लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं.

सबसे बड़ी बात ये है कि आपने उत्तर भारतीयों की सहनशीलता को ललकारा है जो कदापि शायद किसी को मंजूर होगी क्योंकि हम लोग आप लोगों की तरह गिरी हुई मानसिकता वाले नहीं हैं जो आपने अभी-अभी पूरे देश को दिखायी है.

सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

आमची मुम्बई! एक दुःस्वप्न

तो अब नाम मिटाने की बारी अब मुम्बई वालों ने सम्हाल ली है, अब उत्तर भारत को भगाने की तैयारी कर रहा मुम्बई दिल्ली से चार कदम आगे निकल चुका है जहाँ ये सब बातें अभी हो ही रही हैं.

मैने पिछले लेख राजधानी में बिहारी में भी बताया था कि किस तरह की मानसिकता इन महानगरीय लोगों नें पाल रखी है, जिसमें वो सिर्फ़ अपने स्वार्थ को आगे रखकर बल्कि इनके चुप रहने के गुण को अपना हथियार बनाकर इनका शोषण कर रहे हैं.

वो ये नहीं भूल पाते हैं कि वो खुद कमाकर खा नहीं सकते और कोई दूसरा आकर कमा ले तो इनको जलन होती है,
वो ये भूल जाते हैं कि जिस मुम्बई पर उन्हें इतना गर्व है वो हम उत्तर भारतीयों की ही मेहनत और इमानदारी की देन है.

अभी एक-आध साल पहले सोनू निगम ने एक गीत गाया था कि "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, मुम्बई देता सबको काम"
कहाँ हैं वो ईश्वर अल्लाह, कहाँ हैं वो मुम्बई जो किसी के लिये भी बाहें खोले खड़ी रहती है?

"मुम्बई स्पिरिट" ये शब्द शायद मुम्बई का ही दिया हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये शब्द नहीं बल्कि पूरे देश की छवि इसमें दिखायी देती है.कैसी स्पिरिट मुझे तो कहीं दिखायी नहीं देती!

एक बार देखा था और अब घबरा रहा हूँ कि मुम्बई मैं उत्तरांचल नगर और बिहारी टेकरी जैसे अधिक घनत्व वाले इलाके हैं जहाँ उत्तर भारतीयों की संख्या दो-ढाई करोड़ के ऊपर है अब ये ही सोचकर डर लग रहा है कि वो कहाँ जायेंगें?

कुल मिलाकर इन नेताओं को आये दिन देश को आग में धकेलने और उस पर सियासी रोटियां सेकनें में जो मजा आता है वो शायद इस देश को पीछे धकेलने में सहायक हो सकती है क्योंकि धीरे-धीरे देश उन्नति करता है और एक तेज धक्का उसे हर बार पीछे धकेल देता है,

गोधरा,अयोध्या,गुजरात,हैदराबाद और अब मुम्बई ये सब काफ़ी हैं जिनसे हुये जख्मों से रिसता इस देश का खून रूक तो नहीं रहा लेकिन घाव और गहरे होते जा रहे हैं.

रविवार, 3 फ़रवरी 2008

नया शब्द "रचनात्मक स्वतंत्रता" अपने आप में कमाल है

पिछले दिनों हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी को अचानक क्या सूझा कि उन्होने हमारे देश के उच्च कलाकारों को कुछ नसीहत दे दी अब भारत में नसीहत और उसको मानने वाले रेगिस्तान में सुई ढूंढने के बराबर है तो उल्टे उन्ही को एक करारा जवाब मिला जो काफ़ी कुछ ऑस्कर में भेजे जाने वाला डॉयलोग था "आप हमारी रचनात्मक आजादी हमसे छीन रहे हैं."

हाँ तो भाई लोगों सावधान हो जाओ! अब ये कलाकार लोग एक अलग दुनिया बना रहे हैं वो जिसे रचनात्मकता का नाम दे चुके हैं, अब ये मत पूछना कि ये किस बला का नाम है? और ये कैसे मिलेगी तो भाई लोगों सुनो.......

इसके लिये कुछ नियम हैं जो आप जल्दी सीख सकते हैं

नियम-
1. इसके लिये कैमरे के आगे रहना जरूरी है.
2. सिगरेट,शराब, स्मैक सार्वजनिक जगहों पर पियें जो ज्यादा रचनात्मक है.
3. क्या कहा हत्या,डकैती भी रचनात्मक हो सकते हैं? हो सकते हैं जी हो सकते हैं सरकार इस पर भी विचार कर रही है.
4. अब अंग-प्रदर्शन को तो रचनात्मकता का सर्टिफ़िकेट मिल ही चुका है,बलात्कार अभी लाइन में है.
5. भाई! देश के लोगों और देश का मजाक उड़ाना रचनात्माकता का उच्च-स्तर है जो विरले ही मिलता है इसे भी ट्राई कर सकते हैं
6. देश में कमाओ और बाहर मौज उड़ाओ ये अभी-अभी नियम शामिल हुआ है.
7. सब के बारे में बुरा सोचने लगोगे तो सफ़लता खुशी से दौड़ी चली आयेगी तुम्हारे पास.
8. शराब-सिगरेट का प्रचार की-रिंग और कैसेट के माध्यम से करो उसमें ज्यादा रचनात्मकता है.
9. कलाकार हो तो क्या किसी क्रिकेट टीम को नहीं खरीदा? लगता है अभी नये-नये हो.
10.दूसरी तीसरी शादी, लिव इन रिलेशनशिप ये रचनात्मकताएं बाहर से इम्पोर्ट की हुयी हैं इनका प्रयोग सावधानी से करें.

ये सब चुपचाप ही करना क्योंकि अगर ब्लॉग्स पर भारत सरकार की नजरें टेड़ी हो गयीं तो शायद हमारी "रचनात्मक आजादी " पर भी ना सवाल उठ खड़ें हो जाये.