रविवार, 8 जुलाई 2007

मुझे हसाँओ तो जानूं!

Posted on 5:52:00 pm by kamlesh madaan

लाफ़्टर चैलेंजों और कामेडी सर्कस चलाने वालों सावधान आप सब पर हमारा एंटी-लाफ़्टर मैन आ चुका है और चैलेंज दे रहा है मुझे हसाँओ तो जानूं। जी हाँ ये सच है यकीन नहीं होता खुद ही पढ् लो....

पिछले एक दशक से केरल के सुरेश बैबी हंसना भूल गए है और उन्हें हंसाने के प्रयास में बडे़ से बड़े हास्य अभिनेता, विदूषक और जोकर भी असफल हो चुके है। सुरेश को हंसाने के एवज में सोने का एक सिक्का ईनाम के तौर पर रखा गया है, लेकिन सुरेश की पथरीली मूरत पर हंसी की चमक लाने में सभी के पसीने छूट चुके है।
सुरेश को हंसाने वाले के लिए सोने का सिक्का ईनाम के तौर पर रखा गया है। अभी तक सैकड़ों जोकर, विदूषक और मलयालम फिल्मोद्योग के धुरंधर हास्य अभिनेता हंसना भूल चुके सुरेश पर अपनी क्षमता आजमा चुके है, लेकिन वे खुद मायूस चेहरा लेकर लौटने को मजबूर हुए। राज्य में लगने वाले अधिकांश बड़े मेलों में सुरेश को एक चुनौती के तौर पर पेश किया जाता है। उन्हें सजा-संवारकर मंडप में रखा जाता है और बाहर लिखा होता है कि है हिम्मत तो हंसाकर देखो। सोने का सिक्का पाने की होड़ में सैकड़ों लोग शामिल हो चुके है, लेकिन किसी का भी सुरेश के सामने सिक्का नहीं चल पाया है। 40 वर्षीय सुरेश केरल के त्रिचूर का रहने वाला है। अभी पलक्कड़ की एक प्रदर्शनी में भी सुरेश को चुनौती के तौर पर पेश किया गया है। वह पिछले कई दिनों से ऐसे व्यक्ति का इंतजार कर रहा है जो उसके चेहरे पर हंसी की चमक ला सके। ऐसा नही है कि सुरेश के पेट में गुदगुदी नही होती या वह हंसना नही जानता। दरअसल सुरेश ने नही हंसने के अभ्यास को एक अनूठी कला में तब्दील कर दिया है।

सुरेश ने कहा कि मलयालम फिल्मोद्योग के जाने-माने हास्य अभिनेता मामू कोया और सुपरस्टार दिलीप की जब मेरे सामने दाल नही गली तो छुटभैये जोकर और चुटकुलावाचर मुझे क्या हंसा पाएंगे? जिस दिन मुझे कोई हंसा देगा, उस दिन से मैं मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेना बंद कर दूंगा। पलक्कड़ प्रदर्शनी में रोज ही दर्जनों लोग सुरेश को हंसाने के लिए उसके सामने एक से बढ़ कर एक हास्यास्पद और फूहड़ हरकत करते है, लेकिन मूरत की तरह बैठे सुरेश के चेहरे पर हंसी नहीं कौंध पाई। पिछले कई वर्षो से केरल और दूसरे राज्यों में प्रदर्शनियां आयोजित करते रहने वाले उन्नीकृष्णन ने बताया कि वर्षो पहले सुरेश ने एक ऐसा मलयालम उपन्यास पढ़ा था जिसका नायक कभी हंसता ही नही था। इसी उपन्यास से उसे नहीं हंसने की कला विकसित करने की प्रेरणा मिली। कई लोग तो सुरेश को मनहूस करार देकर भाग खड़े हुए है।

तो अब कहाँ हैं अहसान भाई,नवीन,सिध्दू,शेखर,राजू जैसे जोकर जो इनको हसाँ सकें? इनको हसाँने के चक्कर में फ़जीहत ना करवा बैठना प्यारों !

2 Response to "मुझे हसाँओ तो जानूं!"

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Divine India Says....

आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा…नाम भी काफी सुंदर और अर्थ पूर्ण है…।
जो भीतर से ही जानता हो कि कोई उसका क्या करेगा तो चाहे जगत लाख जुगत कर ले कुछ भी हासिल नहीं होने बाला…।

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Udan Tashtari Says....

फालिज या लकवा वगैरह तो नहीं मार गया बंदे को-और सब इलाज कराने के बजाय प्रदर्शनी में फायदा बना रहे हों. मुझे तो बड़ी चिन्ता सी लग गई है सुरेश की. न जाने किस हाल में होगा, बेचारा.