रविवार, 28 अक्तूबर 2007

चलो हरामखोर हो जाएं (व्यंग्य)

Posted on 4:00:00 am by kamlesh madaan

















हरामखोरी.: ये एक शब्द किसी डिक्शनरी में नहीं मिलता बल्कि ये क्वालिटी विरले ही मिलती है.
जिसे घूस,रिश्वत,आलस और सच्चे अर्थों में देश-सेवा का कीड़ा काटा हो वो हरामखोर बनने का सही हकदार है,यां ये कहिये कि एक हरामखोर ही देश की सच्ची सेवा करने और विकास की प्रगति का सही उम्मीदवार है.

हरामखोरी से कई फ़ायदे हैं....नीचे देखें
.:1:. जैसे कोई बेचारा मर्डर केस में फ़ंस गया हो तो वो बेचारा किसी स्पेशलिस्ट हरामखोर वकील के पास जाये तो ही उसका भला होगा अब बूझो कैसे? तो इसका एक हरामखोरी भरा जवाब है कि पहले तो उसका केस अदालत में जायेगा फ़िर सम्मन आयेगा फ़िर तारीख पर तारीख लेते हुये पाँच-दस साल ना बीत जायें तो केस में भी मजा नही आयेगा,और फ़िर सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में अपीलें लेते हुये जब खुद के सठिया जाने की उमर हो जाये तो माफ़ी की याचिका दायर कर दो, एक दो साल कैद होगी जिसमें बड़े-बड़े हरामखोरों के साथ जेल में मुलाकात का महान सौभाग्य प्राप्त हो सकता है, अगर भाग्य अच्छा होगा तो किसी से सैटिंग करके चुनाव में टिकट का आसानी से जुगाड़ हो सकता है जिससे एक महान हरामखोर देशप्रेमी बनने का गौरव प्राप्त हो सकता है।

.:2:. कभी हमने सुना था कि हराम की खाओ और मस्जिद में सो जाओ, अबे ये क्या बला थी. लेकिन अब इस उमर में आकर पता चला है कि हरामखोर कभी भी भूखा नहीं मरता लेकिन मेहनतकश बेचारा दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में ही लगा रहता है.
सच है जिसे दारू पीनी है वो पीकर रहेगा लेकिन जिसे भूख लगती है उसे रोटी नसीब नही.

.:3:. आज बड़े-बड़े हरामखोर देश में खुलेआम घूम-घूमकर देश सेवा का ढोंग कर रहे हैं जिन्होने कभी एक रूपया नहीं कमाया वो करोड़ों रूपये आगामी परियोजनाओं में लगाने की योजनाये बना रहे हैं (अब योजनाये किसके लिये बनती है आप सब अच्छी तरह जानते हैं)

वो कहते है देश का निर्माण करना है लेकिन उसी दिन शाम के अखबार में एक नवनिर्मित पुल के ढहने की खबर आ जाती है, क्या फ़ास्ट प्रोसैसिंग है बाप!इतनी जल्दी योजना और उसके कार्यकाल का पूरा होना हरामखोरी की एक भव्य क्वालिटी है जिसे उच्च अनुभवों के बाद ही प्राप्त किया जा सकता है।

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अगर दुनियां में कोई एक बहुत बड़ा वर्ग है तो वो है हरामखोरी, इस एक शब्द नें आज ग्लोबली यूनिटी की जो मिसाल कायम की है वो वाकई में एक मिसाल है।

मेरा तो मानना है कि अगर हरामखोरी पर शोध किया जाये तो वाकई में इसका प्रोग्रेस रिपोर्ट चौकांने वाले मिलेंगें, आज यह सामाजिक आंदोलन बन चुका है और जिस तेजी से यह फ़ैल रहा है,लगने लगा है कि आने वाले समय में पूरा विश्व हरामखोरमय ना हो जाये!
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तो चलो हरामखोर हो जायें!

4 Response to "चलो हरामखोर हो जाएं (व्यंग्य)"

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काकेश Says....

अच्छा है.

टैम्प्लेट भी अच्छा लग रहा है.

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ALOK PURANIK Says....

सच्चे मन से दुआ करें, कि मुल्क के नेता सच्ची में हरामखोर हो जायें।
ये ससुरे जब काम करते हैं, तो टेंशन हो जाता है। बोफोर्स तोप से चारा घोटाला, गुजरात के गड़बड़झाले से लेकर शेयर बाजार घोटाले तक में नेताओं की कर्मठता छिपी है।
हरामखोर नेताओं का मुल्क ठीक होगा। हरामखोर नेता और मेहनतकश जनता, भारत की प्रगति का राज इस सूत्र में छिपा है जी।