शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
क्या स्त्रियां हीं स्त्रियों की दुश्मन होती हैं यां कुछ और?
ये पोस्ट लिखते समय मैने बहुत सी बातें आगे रखी जो मेरे निजी अनुभव और काफ़ी कुछ इन दिनों चल रही बहस के कारण म्रे दिमाग में घूम रहीं थीं....
मेरी बेटी जो केवल सवा साल की है अभी-अभी चलना ही सीख रही है, आज उसके साथ मैने एक अनुभव सीखा जो मुझे काफ़ी अन्दर तक कचोटता रहा..
हुआ ये कि मेरी बेटी आज चलते-चलते हँस रही थी और मैने अपनी पत्नी जी से कहा कि उसे काला टीका लगा दो ताकि किसी की नजर ना लग जाये!उस पर मेरी पत्नी ने जवाब दिया कि "काला टीका केवल लड़को को ही लगाते है लड़कियों को नहीं लगाते",
ये बात मेरे दिल में गहरे से चुभ गयी क्योंकि आज के जमाने में ऐसी दकियानूसी बातें वो भी किसी माँ और किसी शिक्षित औरत के मुँह से सुनकर शर्म सी आने लगी क्योंकि जो औरते अभी भी अपने आपको इस समाज में ढाल नहीं पायी हैं वो जी कैसे रहीं हैं? बात मेरी पत्नी की नहीं है बल्कि उन तमाम औरतों की है जो इस निर्गुण को अपनी ही बेटियों में सीख के रूप में देती हैं कि " बेटा मर्दों की बराबरी कभी न करना, अपने पति की बात को नीचा नहीं होने देना,चुपचाप एक कोने में पड़ी रहना-दुख हो तो रो लेना लेकिन अपने घर-ससुराल की इज्जत बनाये रखना"आदि
बचपन से ही बेटों और बेटियों के लिये अलग-अलग खिलौने,पसंद,कपड़े,पहचान ये सब किसी हद तक एक बेटी को उसके लड़की होने का एहसास करवाते रहते हैं
बेटियां जब बड़ी होने लगती हैं तो शर्म और संकोच के कारण अपने शारीरिक विकास की बात केवल अपनी माँ के समक्ष ही रखती है और माएं अक्सर उन्हें कई प्रकार की उलझनों में डाले रखती हैं जिससे वो आगे भी किसी मर्द पर भरोसा नहीं कर सकती है शायद उसे अपने स्त्री होना अपराधबोध लगने लगता है
दूसरी बात हर बाप अपनी बेटियों की परेशानी को जानते हुए भी जेन्डर-गैप के कारण अपनी बेटी का मित्र नहीं बन सकता क्योंकि समाज में ये सब बुरा है लेकिन वो चुपचाप अपनी बेटी-पत्नी की पीड़ा को देखता रहता है लेकिन मुहँ से कुछ नहीं कह सकता क्योंकि कुछ मर्द होने का अभिमान और कुछ सामजिक बंधन उसे उस चक्रव्यूह में डाले रखते हैं जिससे वो उस धर्म को निभाने में पीछे हट जाता है.
अब इस बात को समझना ही काफ़ी मुश्किल होता जा रहा है कि हम किसे दोष दें? क्या इस सामाजिक सिस्टम यां किसी माँ द्वारा किसी बेटी को दी गयी नसीहत को?
5 Response to "क्या स्त्रियां हीं स्त्रियों की दुश्मन होती हैं यां कुछ और?"
दोष किसी का नहीं। यह तो परम्परा का सवाल है। सोच पहले बदलेगी। परम्परा उसले पीछे धीरे धीरे बदलेगी।
आपने बहुत सही बात उठाई।
बात तो सौ फीसदी सही है पर अगर भाभीजी ने पोस्ट पढ़ ली तो आपकी खैर नहीं
क्या काला टीका लड़कियों को नही लगाते है। हम तो ऐसा नही मानते है। हमारी भांजी को तो हमेशा ही काला टीका लगाया जाता था।
jamana badal raha hai. Sab theek ho jayega, dharya rakkhe.
isme koi shq nai ki female hi female ki pragati me badhak hoti pr samye k sath bahut kuch badala hai shayed ye mansikta bhi females ki badal jaye aur vo ladkiyon ka saath de. ek ummidd ka diya jal to rha hai.
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