बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

मार्लबोरो लाइट (Marlboro Light)

Posted on 8:20:00 pm by kamlesh madaan

मार्लबोरो लाइट- ये कहानी है एक ऐसी पीढी की जिसने .आधुनिकता की अंधी दौड़ में खुद को पीछे कितना धकेल दिया है, ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपना चेहरा कितनी बार बदला और हर बार उसका चेहरा पहले से ज्यादा बदसूरत होता चला गया.

आज अपने ऑफ़िस के बाहर एक छोटी सी अच्छी खासी दुकान पर चाय -नाश्ता करने गया तो कुछ ही देर में एक जींस टी-शर्ट पहने एक लड़की प्रकट हुयी,आँखों पर बड़ा सा साठ के दशक का चश्मा चढाये हुये, बड़े ही इत्मीनान से बोलती है "फ़ोर मार्लबोरो लाइट प्लीज".


बस यहीं से कहानी बनाने का आइडिया मिला.......


नोट: ये कहानी लड़कियों और युवा वर्ग में बढते नशे और डिप्रेशन के फ़लस्वरूप लिखी गयी है, इसके पात्र और घटनायें काल्पनिक है अतः कोई भी वाद-विवाद और इस कहानी को अन्यथा ना ले!


अब कहानी की ओर चलें

अनन्या! हाँ उसका नाम अनन्या ही था, पैदा हुयी थी तो माँ-बाप को तो जैसे सारी खुशियाँ एक साथ मिल गयीं थीं, सबकी आँखों का तारा थी वो
उसकी हर फ़रमाइश,हर इच्छा पलक झपकते ही पूरी हो जाती थी.
कुछ बड़ी हुयी तो बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया, बस यहीं से उसकी जिंदगी में दोहराव आने लगा, खालीपन उसकी जिंदगी को एक अनजानी दिशा की ओर धकेल रहा था.
जिंदगी में बदलाव,लोगों के प्रति नजरिया,शारीरिक बनावट और बढती उम्र उसे और भी उलझन में डाले हुये थे, समझ नहीं आता था कि अब क्या करे-क्या न करे?
जैसे तैसे बोर्डिंग से पीछा छुड़ाकर कॉलेज में दाखिला लिया था, पर यहां भी अकेलापन उसका पीछा कर रहा था लेकिन अब उसको उन बातों से लड़ने की शक्ति और समझ आ चुकी थी, दोस्तों की संगत में सिगरेट और शराब उसको अच्छे लगने लगे थे.
सोचती थी जिंदगी के मजे नहीं लूटे तो क्या किया?बस! यही सोच उसे और कमजोर करने लगी,

बात-बात पर चिड़चिड़ापन,मानसिक थकान,लड़ाई झगड़े उसकी पहचान बन चुके थे,भ्रम में थी कि दुनियां से टक्कर लेना कितना आसान है,
कॉलेज के बिगड़े रईसों के ग्रुप की शान थी वो, इसी दौरान जिंदगी के सारे अनछुये पहलुओं को जान गयी थी, अब अनन्या बड़ी हो गयी थी यां ये कह सकते हैं कि "यूथ" लेबल वाली हो गयी थी.

अपने अतीत को तो उसने शायद अपने कपड़ों जैसे चिंदी-चिंदी कर रखा था बस बचा था एक नाम जो उसके माँ-बाप ने बड़ी हसरतों से उसे दिया था.

अभी कल ही की तो बात है एक डिस्को में रेव-पार्टी के दौरान पुलिस के छापे में उसका भी नाम शहर के अखबार में आया था काफ़ी (बद)नाम हुयी थी माँ-बाप ने तो घर से निकाल दिया, लेकिन उसको तो मानों कानों में जूँ तक नहीं रेंगी.

कुछ समय बाद अखबार के एक कोने में एक फ़ोटो दिखायी देता है और साथ में उसके बारें में भी लिखा है कि एक लड़की ने बिल्डिंग के सातवें फ़्लोर से कूदकर आत्म-हत्या कर ली है, मरने का कारण नशीली गोलियों का सेवन बताया गया था लेकिन सुसाइड नोट में उसने लिखा था कि "मैं आजाद होना चाहती हूँ"


वो अनन्या ही थी!.............. अब वो आजाद थी!

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