शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008
अपहरण उधोगः कुछ नियम कानून भी हैं इस धंधे में
अब चौंकने की बारी आप की है क्योंकि पहले-पहल जब इस बारे में मैं पिछले कुछ महीनों के अलग-अलग अखबार निकाल रहा था तो कुछ बिंदु यानी पॉइंट मुझे मिले जो आपको चौकांते भी हैं कि कैसे ये धंधा चलता है और क्या-क्या उसूल हैं इस धंधे में........
सबसे पहले ये जान ले कि ये धंधा क्या है और कैसे ये फ़लीभूत हो रहा है?
पिछले लगभग एक दशक से जिस तेजी से जनसंख्या बढी है उसी तेजी से समाज में अमीरी-गरीबी का भी दायरा फ़ैलता जा रहा है.
अमीर और अमीर होते जा रहे हैं एवं गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं तो जाहिर है इनमें अशिक्षा के अभाव और बुनियादी ढांचे में आये लोच के कारण समाज के इस बहुत बड़े तबके में आक्रोश,भय,लालच और जल्दी पैसा कमाने के लिये कोई रास्ता नहीं बचा है
अब वो अपनी सारी कुंठायें और दोष इन अमीरों के ऊपर निकालते रहे (अमीरों के द्वारा बेहताशा धन में बढोत्तरी और अनाप-शनाप खर्च उन्हे अपना ही दुश्मन बनाने लगा है) क्योंकि वो लोग मानते हैं कि ये अमीर लोग बिना किसी काबिलियत के होते हैं और जिसे पैसा मिलना चाहिये उसे वो नहीं मिलता.
इस पहलू को एक और वर्ग भी नजर गड़ाये देखता है और वो वर्ग भी एकदम इसके उलट है क्योंकि इस वर्ग में शामिल हैं नये-नये बेरोजगार नौजवान,नेता,कानून के रखवाले यानी पुलिस और बड़े-बड़े बदमाश जो इन लोगों के ही संरक्षण में पलते हैं
अब बात धंधे के उसूलों की----बहुत ही ईमानदारी से इन उसूलों का पालन किया जाता रहा है लेकिन इसका पालन सिर्फ़ वो ही लोग करते हैंजो इसके मुख्य कर्ता-धर्ता होते हैं. निचले स्तर के सहयोगी इन उसूलों का किस हद तक पालन करते हैं ये आप अभी जान जायेंगें.
उसूल नं0 1- पहला उसूल और शायद आखिरी उसूल भी है शायद ये है कि जिसका एक बार अपहरण हुआ है और वो फ़िरौती की रकम देकर छूटता है तो फ़िर से जीवन में उसका दोबारा अपहरण नही होता ( मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि अभी तक मैने एक ही व्यक्ति का दो यां अधिक बार अपहरण होते नहीं सुना )शायद ये उनकी लाइफ़टाइम गारंटी भी होती है.
नं0 दो---इस काम के लिये उन्ही लोगों को मोहरा बनाया जाता है जो बेरोजगार हों यां जरूरतमंद हों,उन्हे पकड़ (यहाँ पकड़ का मतलब शिकार यां जिसका अपहरण होना होता है इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है,कहीं माल,सैम्पल यां बकरा भी चलन में है) को ढूंढने,उस पर निगाह रखने फ़िर उसका अपहरण करवाने तक उसका लगातार पीछा करना और अपने आकाओं से संपर्क बनाये रखना आदि ये सब काम होता है मतलब ये कि ये काम अब बतौर ठेके यां फ़्रेंचाइजी के तौर पर भी फ़लने-फ़ूलने लगा है.
नं0 तीन--- कभी कभी राजनैतिक-मीडिया-जनता के दबाव में पकड़ को छुड़ाना भारी भी पड़ जाता है, अपहरणकर्ता कभी यां तो उस पकड़ को मार डालते हैं यां फ़िर उसे किसी सड़क किनारे छोड़ जाते हैं, हाँ कभी-कभी एक आध अपने ही साथी को भी मरवा दिया जाता है यां उस बेचारे की भी बलि ले ली जाती है जिसने चन्द रूपयों के लिये पकड़ को उनके हवाले किया था, (जाहिर है इस काम में प्रशासन,राजनेताओं और आजकाल इस काम में आगे आ रहे उधोगपतियों को सब मालूम होता है, लेकिन वो हमेशा जुर्म और कानून की जद से बाहर होते हैं) उन लोगों को मुख्य साजिशकर्ता बताकर ये लौग साफ़तौर पर बच जाते हैं.
नं0 4---कभी-कभी उस पकड़ को पहले से ही धमकी दे दी जाती है,जिससे ये जोखिम उठाने की जरूरत भी नहीं होती है, कभी खुद लोग अपने ही लोगों को पकड़ बनवा देते हैं तो कभी अपने ही लोग पैसे के लिये ये काम करते हैं.
नं0 5--- ये भी एक अजीब सी बात है कि उनके कार्यक्षेत्र में कोई दूसरा दखल नहीं देता है और यदि देता भी है तो उसे भी हिस्सा देना होता है, नीचे से लेकर ऊपर बैठे सभी आला अधिकारियों को इस बात पूरा-पूरा इल्म होता है क्योंकि हिस्सा सबका बराबर बंटता है.
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तेजी से बढते जा रहे इस अपहरण के धंधे नें उधोग का रूप ले लिया है जो काफ़ी चिंता का विषय है, भाई लोगों मैं ये नहीं कह रहा कि आप लोग सिस्टम को बदलने के लिये तैयार रहो बल्कि ये कहना चाहता हूँ कि इस पकड़ा-पकड़ी के खेल से जितना दूर रहोगे उतना ही जिन्दगी सुकून से कटेगी :)
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