बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

राम-राम सा! (व्यंग्य)

Posted on 5:15:00 pm by kamlesh madaan

इन दिनों रामलीला का मंचन हमारे महल्ले में हो रहा है तो हम भी देखने पहुँच गये पाँच रूपये की मूंगफ़ली के साथ,सो हम आगे आकर पालथी मारकर बैठ गये और मुँह फ़ाडकर मंचन देखने लगे,पता चला कि रावण के दरबार में हनुमान जी जमकर खडे हुये है,तो हमें हँसी आ गयी. ऐसे में सभी लोग हमें मुडकर देखने लगे उनके देखना ही था कि स्वंय हनुमान जी भी हमें देखने लगे कि शायद हमने कोई मूर्खता कर दी है, बस ऐसी विकट परिस्थिति में हमनें भी अपने आपको संभाला और जोर से चिल्लाये "जय श्री राम".

मेरे इस कर्तनांद से पूरा महल्ला गुंजायमान हो गया था कि कुछ ही देर में पुलिस की गाडियां और मिलिट्री की फ़ोर्स वहाँ आ गयी.
पता चला कि जब पूरा महल्ला गुंजायमान हो रहा था ति पास के महल्ले के नेता जो वर्तमान सरकार के चाटुकार हैं उन्होने शहर में दंगा भडकने की स्थिति में पुलिस को सूचित कर दिया था(शायद उनको लग रहा था कि हम बीजेपी के सेतुसमुद्रम के अनुयायी हैं) कि हम लोग शहर में अशान्ति ना फ़ैला दें

अब तो पूरी रामलीला ही किसी महाभारत के युध्द सरीखी लग रही थी. पूरी की पूरी रामलीला का विनाश हो चुका था.

कुछ देर के व्यवधान के बाद रामलीला का दोबारा मंचन करना तय हुआ सो इस बार कुछ मंचन और कथा में भी फ़ेरबदल करना पडा (जब सरकार सेतुसमुद्रम को नकार सकती है तो हम क्या कहानी में तनिक फ़ेरबदल नहीं कर सकते हैं)
तो भई लोगों पुलिस और मिलिट्री की भारी सुरक्षा के बावजूद हम लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहे थे. ना जाने कब इन ससुरों का दिमाग घूम जाये और ये अपनी असुरी शक्तियां हम निरीह प्राणियों पर आजमा लें.

अब नाट्य मंचन मे संवाद इस प्रकार थे....
द्र्श्यः(रामचंद्र जी समुद्र किनारे लंका के लिये रास्ता बनाने के लिये विचार एकत्रित कर रहे थे, नल-नील,जामवंत,सुग्रीव,हनुमान आदि उनके साथ चिंता में हो लिये थे क्योंकि अब सेतु बनवाने के लिये श्रीलंका की सरकार से समुद्र अधिग्रहण का नोटिस आ चुका था और किसी भी प्रकार से समुद्र पर अतिक्रमण मनाही थी.)

रामचंद्र जीः मेरे प्यारे प्राणप्रिय साथियों काफ़ी कष्टों के बाद हम जब अपनी सीते के लिये समुद्र के इस ओर हैं और हमारी सीता हमसे बस कुछ ही दूरी पर है तो अब हमें कुछ रास्ता ढूंढना चाहिये जिससे हम सीते को उस पापी रावण से मुक्ति दिला सकें!
सुग्रीवः भगवन! काफ़ी बडी समस्या आ चुकी है, अभी-अभी प्राप्त खबरों से पता चला है कि श्रीलंका सरकार औफ़ रावण ऑर्गनाईजेशन ने सारे समुद्री रास्तों पर अतिक्रमण बैन कर रखा है.
रामचंद्र जीः तो प्यारे हनुमान अब तुम ही बताओ कि क्या किया जाये मेरी सीते तक पहुँचने के लिये?
हनुमानः भगवन म्रेरे अनुसार एक ही कारगर उपाय है कि हमें किसी प्राईवेट कम्पनी को हायर यां ये कहिये कि किसी कम्पनी यां ब्रांड का ब्रांड एम्बैस्सडर बनना चाहिये किससे उसके नाम यां डिजायन किये लोगो को हम पत्थरों पर चिपकाते चले जायेंगे और हमारे पत्थर आसानी से समुद्र में तैर जायेंगें!
रामचंद्र जीः काफ़ी अच्छा विचार लाये हो हनुमान. अब आगे भविष्य में कानूनी कार्यवाही हम पर होने से रही! क्योंकि इन पत्थरों पर हमारा कोई ब्रांडनेम नहीं है और कोई भी सबूत आने वाले युगों तक नहीं होगा क्योंकि हमारे खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत भी तो नहीं मिलेंगें, लेकिन!....
हनुमानः लेकिन क्या प्रभु? फ़िर से कोई दुविधा है इस कार्य में?
रामचंद्र जीः समस्या ये है मेरे प्यारे हनुमान कि हम श्रीलंका सरकार के नियम कैसे तोडें और ना तुमने और ना ही मैने कोई एन्जीनियरिंग की है सेतु बनाने के लिये?
हम इस कार्य में दक्ष नहीं हैं तो अब आगे क्या होगा?
हनुमानःआप तनिक चिंता ना करें भगवन उसका भी प्रबंध कर लिया गया है प्रायोजकों की लिस्ट में एक एन्जीनियरिंग कॉलेज भी है और वहाँ के विध्यार्थी कोई प्रक्टिकल करना चाहते थे तो मैने उनसे बात कर ली है वो उसके बदले में हमें और रकम देने की बात कर रहें हैं,
रही बात श्रीलंका सरकार की तो वो लोग भी 50 परसेंट की स्पांसरशिप की रकम डकारने के लिये राजी हो चुके हैं जो रावण् को बिना बताये ली जा रही है

अब समुद्र के रास्ते सेतु बनाने के लिये सारे रास्ते खुल चुके थे और बाकायदा रामचंद्र जी और उनकी टीम को बहुत सारे स्पांसर भी मिल रहे थे, जल्दी ही लग रहा था कि अब लंका दूर नहीं!

4 Response to "राम-राम सा! (व्यंग्य)"

.
gravatar
बेनामी Says....

कलयुग की रामायण! वाकई आँखे खोल देने वाली है इन नेताओं की

.
gravatar
रवीन्द्र प्रभात Says....

काफ़ी गंभीर अनुभूति, अत्यंत उत्कृष्ट और प्रशंसनीय भी.

.
gravatar
Udan Tashtari Says....

काफी दिन बाद लौटे. पूरी इन्जिनियरिंग करके आये हैं लगता है. सही है आज का सेतु निर्माण.