शनिवार, 25 अगस्त 2007
"हिन्दी चिट्ठाकारी दुनियां में आपका स्वागत है"
ये शब्द सुनने को भले ही अच्छे लगते हैं लेकिन हिन्दी के शीर्ष फ़ीड-एग्रीग्रेटरों जैसे- नारद.अक्षरग्राम,चिट्ठाजगत और ब्लॉगवांणी,याहू 360 को अपने वेबसाईटस् को हिट करने और उसकी झूठी रैंकिंग को प्रदर्षित करने के अलावा और बाकी कार्य का समय ही नहीं है.
हो सकता है मेरी ये बातें सभी लोगों को बुरी लग रहीं हैं लेकिन क्या कभी भी इन्होने सोचा है कि बेकार के वाद्-विवाद् को आगे बढाने से यां अश्लीलतपन लिये भौंडे लेख जिसे हमारे कुछ बुजुर्ग लेखक आज का सच दिखाकर खुश हो रहे हैं क्या वो अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते हैं.
1.कल मसीवजी (क्षमा चाहता हूँ नाम देने के लिये ) ने एक लेख लिखा था कि हिन्दी ब्लॉगरों को नौकरी कब मिलेगी?
मेरा जवाब है अगर लेखन का स्तर ऊँचा होगा और ओछेपन से परे होगा तो नौकरी क्या हिन्दी ब्लॉगजगत खुद एक व्यवसाय होगा।
2.अहमदाबाद के एक महाशय हैं जो खुद एक शिक्षक हैं लेकिन उनकी शिक्षा केवल रतिक्रीडायें और नारी शरीर के व्यख्यान पर ही टिक जाती हैं ये हैं डॉ सुभाष भदौरिया जो आजकल विवाद बने हुये हैं मेरे पिछले चिट्ठे पर उन्होने टिप्पणी की थी कि क्या मुझे उनके द्वारा लिखी गयी कवितायें नहीं दिखती?
उनको भी मेरा जवाब है कि आप वरिष्ठ हैं लेकिन जो आप शिक्षा अपने विधार्थियों को देते हैं क्या वो इसी तरह की होती है? क्या आपको सरकार ने यौन-शिक्षा के लिये फ़्री लाइसेंस दिया हुआ है? यां आप किसी मानसिक प्रवत्ति के शिकार हैं जो औरतो,लड्कियों के शरीर को अपनी अभिव्यक्ति द्वारा ब्लॉगजगत में तहलका मचान चहते हैं.
आपको मेरी ये सलाह है कि पहले आप यह तय कर लें कि हिन्दी ब्लॉगजत जो हिन्दी के प्रचार प्रसार में निरंतर प्रयासरत है वो आपके इन नापाक कदमों को आगे नहीं बढने नहीं देगा अतएव् आप किसी अन्ग्रेजी ब्लॉग्स यां किसी अश्लील वेबसाईट यां किसी जासूसी नॉवल के लिखें आप जरूर सफ़ल होंगें. ये मेरा दावा है.
अब बात काम की....
मैं छोटा हूँ लेकिन कम से कम मैं हिन्दी चिट्ठा जगत के व्यस्थापकों से यह अनुरोध तो कर सकता हूँ कि वो मेरी कुछ बातों पर अमल करेंगें।
1. किसी भी विवाद को आगे ना बढाया जाये जो अनुचित हो.
2. नारी देह के लिये लिखने वालों पर अंकुश हो ताकि हिन्दी चिट्ठाजगत अपनी गरिमां बनाये रखे.
3. सभी फ़ीडएग्रीग्रेटर एकमत हों कोई भी रैंकिंग के चक्कर में ना पडें तो बेहतर होगा इससे सबकी छवि बेहतर होगी और नये लेखक लिखने के लिये प्रोत्साहित होंगें
4. वरिष्ठ लेखकों से नये लेखकों के स्वागत की अपेक्षा सभी को रहती है अतः ऐसी परंपरा बने
5. नियम यां कानून सबके लिये बने कोई छोटा यां बडा ना हो चाहे वो खुद वेबसाईट के संचालक ही क्यों ना हों
मेरा ये प्रयास हिन्दी चिट्ठाजगत में फ़ैलती अश्ललीलता और अनर्गल लेखन का प्रतिरोध हैं अगर कोई बात बुरी लग रही है तो मेरा फ़ोन नं दिया हुआ है
11 Response to ""हिन्दी चिट्ठाकारी दुनियां में आपका स्वागत है""
बहुत अच्छे भैया.. आप खुद को सबका छोटा भाई बता रहे हैं, पर मैं तो आपका भी छोटा भाई हूं। आज पहली बार आपके ब्लौग पर आय हूं और आपका ब्लौग पढ कर बहुत अच्छा लगा।
when ever someone wants to use other bloggers name inhead line it should be for positive purpose . Incase there is some problem that needs to be clarified then heading should not have the name . name should be there only after you have made anpersonal clarification with the person
any one can write any thing but writings cause an turbulence in mind blogging is basically to give vent to that turbulence
If you want to wirte adult content do it but mark it { mature content } if you want to write porn { tag it as porn } so that only who are interested will read
सुंदर। काम की जानकारी ।
सही कथन!!
ह्म्म ये जो प्रयोग आपने चिट्ठे में किया उसमे। आप बाजी मार ले गए, यही चीज मै अपने ब्लॉग पर आज लागू करने की सोच ही रहा था।
किसी भी आविष्कार का आधे से ज्यादा दुरुपयोग होता है। इण्टरनेट पर अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अति-अश्लील साईट भरे हुए हैं, कई तो जबरन घुस आते हैं, आपके इण्टरनेट लगाते ही, कई ईमेल में यों घुस आते हैं, ज्यों घर में मच्छर, चींटियाँ, चूहे। ऐसी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय 'सूपर्णखा' जैसे साईट अब पूर्णतया हिन्दी में भी अनूदित लिप्यन्तरित होकर प्रकट होने लगे हैं। अनेक बेनामी/गुप्त नर-नारी अपने गन्दे/गुप्त की उलटी करके यों छू हो जाते हैं, ज्यों रास्तों, सड़कों, रेल लाइनों के किनारे मलत्याग कर परिवेश वीभत्स बनाना ही "भारतीय संस्कृति" बन गया है?
अनेक फायरवाल, एंटी वायरस, एंटी स्पाई वेयर भी उन्हें रोक नहीं पाते। अनेक देश की सरकारें भी इन पर कोई नियन्त्रण नहीं कर पा रही है। फिर आप और हम किस खेत की मूली हैं? शायद ईश्वर ही मानव-मन को पावन बना पाए!
हां... सही कहा आपने।
बातें सही हैं। सुभाष् भदौरिया अपनी गजल के अलावा तमाम् लेखों में बड़ी सस्ती भाषा इस्तेमाल् करते हैं। आदमी का दिमाग् बड़ा तेज् होता है। हर् अच्छी चीज् का दुरुपयोग् करने के अभिनव् उपाय् खोज् लेता है। अश्लील् लेखन् से अगर् आप् सही में बचना चाहते हैं तो उसको पढ़ना और् उसके बारे में लिखना बंद् कर् दीजिये। जितना चर्चा करेंगे उसका उतना ही प्रचार् होगा।
आप ने बिल्कुल ठीक कहा है।आप के सुझावो के साथ-साथ अगर जो बात अनूप् शुक्ल जी ने कही है वह ज्यादा असर दिखाएगी, इस लिए उस पर भी ध्यान देना चाहिए।
जान दे कर के शान रखते हैं.
हम अजब आन बान रखते हैं.
शब्दभेदी हैं हमको पहिचानो,
दिल में तीरो कमान रखते हैं.
जितना खोदोगे रतन निकलेंगे,
सीने में वो खदान रखते हैं.
ग़ालिबो मीर के हैं हम वारिश,
अपने शेरों में जान रखते है.
ज्ञानियो इस ग़ज़ल पर रौशनी डालो.
खाली पत्थर फेकने से कुछ नहीं होगा.
अब मैं बताता हूँ कि ये उर्दू की मश्हूर बहरे खफीफ मखबून महज़ूफ है.जिस का वज़्न हर मिसरे में
फाइलातुन मफाइलुन फेलुन
2122 1212 22
गालगागा लगा लगा गा गा.
जिसे ग़ालिब मीर मोमिन ने इस्तेमाल किया.
उसके होटों की नाज़ुकी क्या कहिए,
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है.
मीर उन नीम बाज आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है. (मीरतकी मीर)
दिल ये नांदा तुझे हुआ क्या है.
आखिर इस दर्ग की दवा क्या है. (ग़ालिब)
असर उसको जर नहीं होता.
रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता. (मोमिन)
ये ज़ुबा हम से सी नहीं जाती.
ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती.
तुमने ईसा बना दिया मुझको,
अब शिकायत भी की नहीं जाती. (दुष्यन्त कुमार)
ग़ज़ल का शिल्प तुम लोग भला क्या समझोगे.
तुम्हें तो कथ्य का भी इल्म नहीं.
ग़ज़लों पर बोलो महरबानो .खाली गाल कब तक बजाते रहोगे.
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