रविवार, 12 अगस्त 2007
60 साल भारत: युवा पीढी को क्या मिला?
"आज देश के युवा हाथों में लैपटॉप और हाथों मे सिगरेट लिये घूम रहे हैं शायद उनको ये आभास नहीं कि वो क्या हैं और कहाँ जा रहे हैं?"
'32 प्रतिशत भारतीय माइक्रोसॉफ़्ट का कार्यभार संभाले हुये हैं'
ये ताजा सच पूरी दुनियां के साथ जुडा है जहाँ तकनीकी द्क्ष युवाओं की कमी है वहीं भारत से लगभग लाखों युवाओं की खेप भारत से बाहर जाने को विवश है कारण?
आसान से सवाल का जवाब उतना ही मुश्किल है जितना एक मरे हुये को जिन्दा करना. दर-असल में देश में बढती बेरोजगारी और फ़ैलते आक्रोश की जिम्मेदार देश का मौजूद व्यक्तिगत ढाँचा और अव्यवस्था है जिससे लाखों युवा यां तो बाहर जाने को विवश हैं यां वो बेरोजगार हैं. जिनके पास नौकरी है वो इन बाहरी प्रपंचो के छलावे को समझ नहीं पा रहे हैं और खुद देश सेवा के बजाय इन कम्पनियों के पिट्ठू बने हुये हैं।
आज हर युवा बीस-बाईस साल पढाई करके क्या इस लायक ही रह गया है कि वो पाँच-सात हजार रूपये कमाने के लिये क्रेडिट कार्ड बेचे?
क्या वो किसी आई.टी कम्पनी में चार हजार की नौकरी के लायक रह गया है?
अभी नौकरी लगी नहीं और मोबाईल और मोटरसाईकिल की मांग करने लगे?
ये तो अभी कुछ ही सवाल हैं पर फ़ेरहिस्त लम्बी हो सकती है. लेकिन इन सबके बीच जवाब सिर्फ़ बस एक जवाब निकलकर आ सकता है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों नें अपने मकडजाल में देश और देश के युवाओं को इस कदर फ़ांस रखा है कि युवाओं को अपनी क्षमता का पता ही नही लग पाता और ये युवा ज्यादा कमाने के चक्कर में ओवरटाईम करके,चोरी-डकैती,अपहरण जैसे उधोग चला रहे हैं।
आज किसी भी पेशेवर आई.टी की एवरेज तन्ख्वाह पाँच् हजार से बीस हजार है तो वहीं इनकी विदेशों में एक हजार डॉलर से पाँच्-छः हजार डॉलर हो सकती है. मतलब दस गुना ज्यादा तो वो भला क्यों इस देश के बारे में सोचेंगे? बेरोजगारी भत्ता पाँच सौ रूपये यां उससे अधिक मिलने से इन युवाओं का क्या भला होगा? इतने तो हमारे देश के नेताओं के कुत्तों के एक दिन का खर्च है, क्या हमारे देश के कर्णधारों की कोई जिम्मेदारी नहीं है कि वो अपने देश के विकास को इन नौजवान पीढी के कन्धों पर डाल दें?
माओवाद्-नक्सलवाद, आतंकवादी गतिविधियां ये सब उस आक्रोश का ही भयानक परिणाम है जिसके फ़लस्वरूप देश अराजकता की आग में धधक रहा है.क्या इस ओर इन नेताओं का ध्यान नहीं जाता यां मीडिया को कुछ दिखायी नहीं दे रहा जो बडे-बडे स्टारों की शादियों,अपराधों को हाइलाईट करने में लगी है.
अविश्वस्नीय निवेश और बडी-बडी भारतीय कम्पनियां भी इन युवाओं का दोहन कर रहीं हैं. जिससे युवा उत्कंठा का शिकार होकर भागने को मजबूर है.
जापान-चीन जैसे देश सच्ची अर्थव्यवस्था के वो उदाहरण हैं जिससे इस देश के लोगों को सीख लेनी चाहिये. आज इनका अनुसरण करके ही आगे बढा जा सकता है ना कि देश का बेढागर्क करने वाले इन नेताओं या राज्नीति का साथ देकर क्योंकि वो लोग कभी भी देशहित के बारे में नहीं सोचते।
2 Response to "60 साल भारत: युवा पीढी को क्या मिला?"
बहुत अच्छा लिखा है।
sahi baat hai . log apne ko anyon se adhik dikhane ke chakkar me kahi ka nahi rahte
Atul
एक टिप्पणी भेजें